दोखेबाजों के लिए शायरी 

दिल के ज़ख्म भरते-भरते कब वो दिल ज़ख़्मी कर गए पता ही नहीं चला

वो आयने में खुद को कैसे बर्दाश्त करते होंगे, उन्हें तो सख्त नफरत थी धोखेबाजों से !

बारिशे हो ही जाती है मेरे शहर में, कभी बादलो से तो कभी आँखों से !

जो धोखा करना सीख जाते है जनाब, हर सख़्श उन्हें धोखेबाज़ लगते है।

यकीन था कि तुम भूल जाओगे मुझे, खुशी है कि तुम उम्मीद पे खरे उतरे !

एक आईना ही है जिसने आज तक, किसी इंसान को धोखा नहीं दिया !