1. जब भी धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होती है, तब मैं अवतरित हो जाता हूँ।
1. जब भी धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होती है, तब मैं अवतरित हो जाता हूँ।
2. कर्म करने में ही संतोष और खुशी है, फल की चिंता न करो।
2. कर्म करने में ही संतोष और खुशी है, फल की चिंता न करो।
3. मन, वचन, और कर्म से दूसरों की भलाई का सर्वोत्तम प्रयास करो।
3. मन, वचन, और कर्म से दूसरों की भलाई का सर्वोत्तम प्रयास करो।
4. जो कुछ भी हुआ, अच्छा हुआ। जो हो रहा है, अच्छा हो रहा है। जो होगा, वो भी अच्छा होगा।
4. जो कुछ भी हुआ, अच्छा हुआ। जो हो रहा है, अच्छा हो रहा है। जो होगा, वो भी अच्छा होगा।
5. भगवान की भक्ति बिना आसक्ति और अनुराग के की जानी चाहिए।
5. भगवान की भक्ति बिना आसक्ति और अनुराग के की जानी चाहिए।