ताली कभी भी एक हाथ से नहीं बजती | गौतम बुद्ध की शिक्षाप्रद कहानी

ताली कभी भी एक हाथ से नहीं बजती - गौतम बुद्ध की शिक्षाप्रद कहानी
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जिस तरह ताली कभी भी एक हाथ से नहीं बजती उसी तरह एक अकेला व्यक्ति लम्बे समय तक किसी गलत या सही काम को खुद आगे नहीं बढ़ा सकता । इसके लिए उसको, उसके ही जैसे लोगों की जरूरत पड़ती है ।

ताली कभी भी एक हाथ से नहीं बजती | गौतम बुद्ध की शिक्षाप्रद कहानी

एक बार बुद्ध यात्रा करते हुए एक गांव पहुंचे । गांव में एक चरित्रहीन स्त्री थी, जो कि बुद्ध को देखकर बहुत आकर्षित हुई । वह रोज उन्हें देखती और हमेशा उनसे बात करने की कोशिश किया करती लेकिन उसे कभी मौका नहीं मिलता, क्योंकि कोई ना कोई हमेशा बुद्ध के आस-पास रहता था । एक दिन ऐसा आया कि बुद्ध अकेले थे, मौका पाकर वह बुद्ध के पास पहुंची ।

स्त्री बोली- क्या, आप इस गांव में नए हैं? आपका यहाँ कैसे आना हुआ?
बुद्ध बोले-
मेरा तो यही कार्य है, गाँव-गाँव जाकर लोगों को ज्ञान देना ।
स्त्री बोली- आप दिखने में बहुत आकर्षक है, बिल्कुल एक राजकुमार की तरह । आपने युवावस्था में ही यह गेरुआ वस्त्र क्यों धारण कर लिया ?

बुद्ध बोले- मेरे जीवन के तीन सवाल थे । जिसका जवाब खोजने के लिए, मैंने गेरुआ वस्त्र धारण किया था । एक बीमार आदमी, एक बूढ़ा व्यक्ति और मृत्यु । इन तीन सवालों के जवाब मिलने के बाद मैं समझ गया, कि जीवन में सब कुछ नश्वर है कुछ नहीं बचाने वाला, यह शरीर तो एक दिन मुत्यु को प्राप्त हो जायेगा, इसलिए मैंने संसार का मोह छोड़ दिया है ।

बुद्ध की बातें सुनकर वह स्त्री बड़ी प्रभावित हुई । उससे किसी पुरुष ने कभी इस प्रकार की बाते नहीं सुनी थी । उसने बुद्ध के सामने हाथ जोड़े और कहने लगी- आप आकर्षक के साथ-साथ बड़े बुद्धिमान भी हो । मैं आपको अपने घर भोजन के लिए निमंत्रण देना चाहती हूंँ ।
बुद्ध बोले- ठीक है, मैं आपके घर भोजन पर जरूर आऊँगा ।

जब बुद्ध और उस स्त्री की बातें चल ही रही थी । तभी सरपंच और कुछ गांव वाले बुद्ध के नजदीक आने लगे, उन्होंने दोनों को एक साथ देख लिया ।
स्त्री ने जैसे-ही लोगों को अपनी तरफ आते देखा, जल्दी से वह भागते हुए निकल गई ।
सरपंच और गांव के कुछ लोग बुद्ध के पास पहुँचे ।

सरपंच बोले- आप और उस स्त्री के बीच क्या बाते हो रही थी ?
बुद्ध बोले-
उस स्त्री ने मुझे भोजन के लिए, अपने घर पर आने का निमंत्रण दिया है ।

ऐसा सुनते ही सरपंच और गांव वाले एक-दूसरे की तरफ देखने लगे ।
सरपंच बोले- बुद्ध! आप इतने महान हो । कृपा करके, उस स्त्री से दूर रहो ।
बुद्ध बोले- लेकिन क्यूँ?

सरपंच बोले- क्या बताऊँ ! मुझे बताने में भी शर्म आती है । वह स्त्री चरित्रहीन है, आप जैसे महापुरुष उसके यहाँ भोजन पर जाए, यह तो बड़े अपमान की बात है ।
बुद्ध बोले- क्या, तुम्हारे पूरे गांव में सिर्फ वही स्त्री चरित्रहीन है।
सरपंच बोले- हाँ बुद्ध, उसने बहुत सारे लोगों का घर तोड़ा है । वह सभी पुरुषों को अपने रूप के जाल में फंसा कर, मोहित कर देती है। उसकी धूर्तता और नीचता की कोई हद नहीं है, इसलिए मैं आपको, आपके भले के लिए ही बता रहा हूंँ ।

बुद्ध बोले- सरपंच जी! क्या आप मुझे एक हाथ से ताली बजा कर दिखा सकते हैं !!
सरपंच बोले- यह आप क्या कह रहे हो, एक हाथ से ताली कैसे बज सकती है ?

बुद्ध बोले- चलो! आपको इस बात का तो ज्ञान है, कि ताली कभी एक हाथ से नहीं बजती । यदि वह स्त्री चरित्रहीन है, तो इसका अर्थ यह है कि तुम्हारे गांव के पुरुष भी चरित्रहीन है ।
बुद्ध की यह बात सुनकर सरपंच और गांव के लोग सभी शर्मिंदा हो गए ।

बुद्ध बोले- कोई भी गलत कार्य बहुत दिनों तक चल ही नहीं सकता, जब तक की कोई दूसरा उसे समर्थन न दे । इसलिए किसी एक पर दोष लगाना पूरे तरीके से गलत है । वह स्त्री भले ही मुझसे कुछ भी चाहती हो, लेकिन मेरा गाँव-गाँव जाकर यात्रा करने का कारण, अपनी शिक्षा को फैलाना है । और यह हर किसी के लिए है, चाहे वह चरित्रवान हो, चाहे चरित्रहीन हो।
उनकी यह बातें सुनकर सभी ने बुद्ध के सामने हाथ जोड़ लिए।

इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि कोई भी अच्छा या बुरा कार्य तभी आगे बढ़ता है, जब लोगों की सहमति उसमें शामिल होती है । इसलिए हम एक पक्ष को पूरा सच और दूसरे पक्ष को पूरा झूठ नहीं कह सकते ।

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