मन को शांत करने का तरीका: सुकून और शांति की खोज | Hindi Story
मन को शांत करने का तरीका : बहुत समय पहले की बात है, बिहार के राजगीर नामक गाँव में एक व्यक्ति रहता था जिसका इस संसार से मन भर चुका था, जो इस संसार के मोह माया को त्याग देना चाहता था।
उसने एक दिन यह फैसला किया कि वह अब इस संसार की हर मोह माया को त्याग देगा। उस व्यक्ति ने संन्यासियों का जीवन को देखा था और उसने अब यह तय कर लिया था कि वह अब एक संन्यासी की जीवन व्यतीत करेगा। वह तुरंत अपने घर के पास में रह रहे एक बौद्ध भिक्षु के पास गया और उनसे कहा, “मुझे एक संन्यासी जीवन जीना है। मैं इस संसार की मोह माया त्याग को देना चाहता हूं।”
इस पर वह बौद्ध भिक्षु उस व्यक्ति से पूछते हैं, “क्या तुम सच में संन्यासी की जीवन जीना चाहते हो?”
इस पर वह व्यक्ति बौद्ध भिक्षु से कहता है, “जी हाँ, मैंने यह निर्णय लिया है कि अब मुझे इस संसार की मोह माया को त्यागना है।”
उस व्यक्ति की बात सुनकर बौद्ध भिक्षु कहते हैं, “ठीक है, लेकिन तुम्हें मेरी एक बात माननी होगी।”
इस पर वह व्यक्ति कहता है, “मैं आपकी सारी बातें मानने को तैयार हूं।”
तब बौद्ध भिक्षु उस व्यक्ति से कहते हैं, “आज के बाद तुम मुझसे कभी नहीं मिलोगे। जब मुझे तुम्हारी जरूरत होगी, मैं ख़ुद ही तुम्हें बुला लूंगा। हमारे आश्रम में हजारों संन्यासी रहते हैं, तुम्हें उन्हीं की तरह रहना है और उन्हीं की तरह खाना है, उन्हीं की तरह वस्त्र पहनना होगा, और उन्हीं की तरह जीवन जीना होगा जैसे वे जी रहे हैं।”
इस पर वह व्यक्ति कहता है, “ठीक है गुरुवर, मैं तैयार हूं।” इतना कह कर वह बौद्ध भिक्षु को प्रणाम करता है और वहां से आश्रम की ओर चला जाता है।
आश्रम में जाने के बाद, उसे एक कमरा मिलता है जहां वह रहने लगता है। साथ ही, उसे चावल कूटने का काम मिलता है।
वह हर दिन आश्रम में रह रहे 1000 संन्यासियों के लिए चावल कूटने का काम करने लगता है। इसी तरह उसके दिन बीतने लगे।
उसे लगता है कि जब गुरूजी को उसकी जरूरत होगी, तब उसे बुलायेंगे। इसी इंतजार में, वह व्यक्ति वहाँ रहने लग जाता है।
सुबह से लेकर शाम तक, उस व्यक्ति का काम सिर्फ चावल कूटना ही था। उसने इस काम को करते-करते धीरे-धीरे 12 साल बीता दिए, लेकिन अब तक उस भिक्षु ने उसे बुलाया नहीं।
आश्रम में रहते रहते, अब चावल कूटने वाले व्यक्ति के मन में कोई विचार नहीं थे और न कोई समस्या उसके मन में थी।
वह अकेले रहते-रहते अपने विचारों पर नियंत्रण पा चुका था। उसे जीवन जीने का सही मतलब समझ में आ चुका था, उसके मन में अब एक अलग ही सुकून और शांति थी।
12 साल बाद, बौद्ध भिक्षु काफी बूढ़े हो चुके थे और उन्हें लग रहा था कि अब उनका अंतिम समय आ गया है और उन्हें अपना एक उतराधिकारी चुनना होगा। इसलिए, उन्होंने पूरे आश्रम में घोषणा करवा दी।
उतराधिकारी का चुनाव – Hindi Story
“जो कोई भी उतराधिकारी बनना चाहता है, वह देर रात मेरे कमरे के बाहर चार पंक्तियां लिखकर जाएगा। और उसे उन पंक्तियों में बताना होगा कि जीवन जीने का सही तरीका क्या है और इस जीवन को किस तरह से जीना चाहिए। इस जीवन का सत्य लिखना होगा, लेकिन एक बात याद रखनी है – उसे अपने अनुभवों के द्वारा लिखना होगा। किताब में कहीं सुनी हुई बातों को नहीं लिखना है या किसी से नकल कर के भी नहीं लिखना है। जो भी यह बताने में सफल हो जाएगा, वही मेरा उतराधिकारी होगा।”
आश्रम में जितने भी लोग रहते थे, वे सब उस बौद्ध भिक्षु का आदर करते थे और उन्हें कोई भी धोखा नहीं देना चाहते थे। सभी भिक्षुओं की इच्छा थी कि वह उनका उतराधिकारी बनें, लेकिन कोई भी इस काम को करने को तैयार नहीं था।
उन हजार बौद्ध भिक्षुओं में से एक विद्वान बौद्ध भिक्षु बहुत ही हिम्मत जुटाकर अंधेरी रात में दीवार के बाहर लिख दिया कि “मन एक दर्पण की तरह हैं उसमे धूल जम जाती हैं, उस धूल को साफ़ कर दो तो सत्य अनुभव का अनुभव हो जाता हैं”
उस बौद्ध भिक्षु के कहने का तात्पर्य था कि हमारा मन दर्पण के समान है, जिसमें अनेक विचार और कलंक रूपी धूल जमें हुए होते हैं। जब हम अपने मन को साफ़ करते हैं, तो हम सत्य का अनुभव करते हैं। अर्थात्, जब हम अपने मन की धूल को हटा देते हैं, तो हम सत्य को अनुभव करते हैं।
यह चार पंक्तियां उस शिष्य ने बड़ी हिम्मत जुटा कर अपने गुरुवर के कमरे के बाहर लिख दिया। अगली सुबह जब बौद्ध भिक्षु उठे और कमरे के बाहर लिखी चार पंक्तियों को पढ़ा और कहा किस मूर्ख ने लिखी है।
मेरी दीवार को किसने खराब कर दिया है उसे पकड़कर अभी मेरे पास लाओ।
जब आश्रम में सभी लोगों ने पता किया तो पता लगा वह विद्वान शिष्य उन पंक्तियों को लिखने के बाद रात्रि में ही उस आश्रम को छोड़ दिया था क्योंकि वह विचार उसके अपने नही थे और विद्वान शिष्य ने जाते-जाते अपने कुछ मित्रों से कह दिया था। सुबह अगर गुरुवर को मेरी चार पंक्तियां पसंद आई तो मेरा पता बता देना और अगर इन चार पंक्तियों को पढ़ने के बाद गुरुवर गुस्सा हो जाए तो तुम सब मेरा पता उन्हें कभी भी मत बताना। आश्रम के सभी लोग चिंता में पड़ गए कि कितनी अच्छी पंक्तियां तो लिखी है उससे फिर भी गुरुवर को अच्छा क्यों नहीं लगा।
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सभी कह रहे हैं कि चलो देखते हैं, गुरुवर को ऐसा उतराधिकारी कौन मिलेगा जो उनके सवालों का सही जवाब उस दीवार पर लिख सकेगा। कौन होगा जिसके पास इससे भी अच्छे विचार होंगे?
कुछ लोग चावल कूटने वाले व्यक्ति के कमरे के बाहर इन सब बातों को कर रहे थे। चावल कूटने वाला व्यक्ति उन सभी बातों को सुनता है और जोर-जोर से हंसता है। लोग उससे पूछते हैं कि इसमें हंसने वाली क्या बात है।
“तुम्हें इसमें क्या गलत लगता है? गुरुवर सही तो कह रहे हैं, यह किस नासमझ ने लिखा है?” इस बात को सुनकर, चावल कुटने वाले संन्यासी पर गुस्सा हो जाता हैं। उस चावल कुटने वाले से कहते हैं, “तुम्हें क्या पता? तुम तो 12 सालों से सिर्फ चावल कूटने का काम कर रहे हो। तुम्हें किस बात का ज्ञान है? ना तुम्हें शास्त्रों का ज्ञान है, और ना ही गुरुदेव ने तुम्हें ज्ञान दिया। अगर तुम्हें इतना ही ज्ञान है, तो तुम ही क्यों नहीं अच्छे शब्द बता देते?”
वह व्यक्ति हंसते हुए कहता है, “ठीक है, जरूर बता दूंगा। लेकिन मैंने इतने सालों से लिखने का अभ्यास नहीं किया है, तो लिखना मैं भूल गया हूँ। मैं बातों को जरूर बता दूंगा, लेकिन किसी को मेरी बातें लिखनी होंगी। और यह भी याद रखना है कि मुझे उतराधिकारी बनने का कोई शौक नहीं है।” इस पर वह लोग कहते हैं, “ठीक है, बताओं क्या लिखना है।”
तब वह व्यक्ति कहता है, “लिखों: ‘कैसा दर्पण, कैसा धूल। ना कोई दर्पण, ना कोई धूल। जो इसे जान लेता है, वह सत्य को प्राप्त कर लेता है।’”
इसका तात्पर्य यह है कि एक व्यक्ति जो अपने मन की पवित्रता को समझता है और जो अपने अंदर की धूल को हटाता है, वह सत्य को समझ लेता है।
गुरुदेव ने आधी रात को चावल कुटने वाले व्यक्ति के पास आकर कहा, “तुम यहां से चले जाओ। अगर नहीं, तो आश्रम के हजारों लोग तुम्हें निकाल देंगे। तुम मेरा उतराधिकारी बनना चाहो या ना चाहो, उससे कोई फर्क नहीं पड़ता। तुम उतराधिकारी बनो या नहीं, लेकिन जो शब्द तुमने कहे थे, वही सत्य है और जीवन के अनुभवों को दर्शाते हैं। मन ही मन मैंने तुम्हें अपना उतराधिकारी मान लिया है। यदि यह बातें उन हजारों लोगों को पता चल जाती हैं, तो वे तुमसे ईर्ष्या करेंगे और तुम्हें नुकसान पहुंचाएंगे। यह लोग बर्दास्त नहीं कर पाएंगे। एक चावल कुटने वाला व्यक्ति उतराधिकारी कैसे बन सकता है? जिसे कोई ज्ञान नहीं है, जिसने कभी शास्त्र पढ़ा नहीं है।”
यहां पर शास्त्र पढ़ने वाले सभी लोग सिर पीटते रह जाएँगे। इसलिए तुम यहां चले जाओ, कहीं और अपनी दुनिया बनाओ और वहां के लोगों को ज्ञान से भर दो।
उस व्यक्ति से गुरु ने कहा, “सालों पहले महात्मा बुद्ध ने अपने एक शिष्य से कहा था कि जब तुम्हारे मन के सारे विचार शांत हो जाएंगे, तब तुम्हारे अंदर विचार आना बंद हो जाएगा। उस दिन तुम्हें सत्य का अनुभव हो जाएगा। तुम सत्य का अनुभव करोगे, खुद का भी और इस ब्रह्मांड को भी समझ पाओगें, और यही बुद्धत्व पाने का पहला कदम है।”तुमने आज इस बात को सत्य कर दिया।
मन को शांत करने का तरीका – Hindi Story
मन को शांत करने का पहला तरीका यह है खुद के विचारों को अच्छे से समझना कि आखिर आपके अंदर कौन से विचार उत्पन हो रहे हैं, आखिर आपके अंदर क्या चल रहा हैं, उन्हें अच्छे तरीके से जागरूकता के साथ समझने की कोशिश करना न कि अपने विचारों को दबाने की कोशिश करना।
अगर आप अपने मन के विचारो को दबाने की कोशिश करते हैं तो मन और तेज़ी से भटकने लगता हैं। जब भी आपको लगे आपका मन जल्द ही भटक जाता हैं तो तुरन्त आप उस पर ध्यान देना शुरु कर दे, और अपने विचारों पर ध्यान दे लगातर कोशिश के बाद आप पायेंगे की आपके अंदर विचारों को जागरूक करके देखने की एक आदत सी लग गई है।
उसी के साथ आप यह भी देख पायेंगे कि आपके मन में बुरे विचार अत्यधिक उत्पन हो रहे हैं, आपके मन में जो भी विचार उत्पन हो रहे हैं, वह सकारात्मक भी हो सकते हैं, नकारात्मक भी हो सकते हैं उनसे आपकों कोई भी छेड़खानी नही करनी है बस आपको अपने प्रयास पर काम करते रहना है यह अभ्यास आप लागतार करते रहे तो एक समय आने के बाद आप अपने विचारों को नियंत्रित करने में सफल हो जायेंगे। तब जा कर आपको असली सुकून और शांति की प्राप्ति हो जायेंगी, तब आपको किसी भी प्रकार की चिंता नही सताएगी क्योंकि आप ख़ुद पर विजय प्राप्त कर लिए हैं और अब आप अपने विचारों को नियंत्रित कर सकते है।
उम्मीद करते हैं आपको हमारी Inspirational Hindi Story “मन को शांत करने का तरीका: सुकून और शांति की खोज” पसंद आयी होगी ।
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