अच्छाई का अहंकार
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हर मनुष्य का अपने बारे में यही विचार होता है कि वह बहुत अच्छा है । जो कुछ भी उसको जीवन में मिला है वो इसलिए मिला है क्योंकि वो इसके काबिल था और उसके अंदर कोई भी बुराई नहीं है । लेकिन किसी किसी को अपनी अच्छाई का भी अहंकार हो जाता हैं कि मैंने ज्यादा अच्छे काम किये हैं तो मैं ज़्यादा अच्छा और ऊँचा व्यक्ति हूँ ।

आज की कहानी भी इसी बारे में हैं जब एक व्यक्ति इसी अहंकार में डूबा था । जिसे खुद के विषय में यह गलतफहमी थी कि उसे हर चीज का ज्ञान है, वह अमीरी-गरीबी के आधार पर लोगों से भेदभाव भी करने लगा था । जानते हैं कैसे उसे स्वयं के अज्ञान से गौतम बुद्ध ने मुक्त कराया ।

अच्छाई का अहंकार | गौतम बुद्ध की प्रेरणादायक कहानी

बात बहुत पुराने समय की है। किसी गांव में एक भीमदेव नाम का एक व्यक्ति था । उसके पास धन की कोई कमी नहीं थी । जब भी वह किसी गरीब व्यक्ति को देखता उसके मन में यह भाव आता, इन लोगो ने पिछले जन्म में बहुत बुरे कर्म किए होंगे तभी तो इनकी ये दुर्दशा है । वह हर दिन मंदिर जाया करता और मंदिर के पास बैठे भिखारियों को दान भी दिया करता था ।

एक बार की बात है भीमदेव के नौकर ने उससे कहा, “साहब मुझे कल की छुट्टी चाहिए ।”

भीमदेव बोला- क्यूँ क्या बात हो गई ? तुम्हे छुट्टी क्यों चाहिए?

नौकर बोला- मुझे गौतम बुद्ध के पास जाना है, उनके पास जाकर मुझे शांति मिलती है।

भीमदेव बोला- तुम भी उन्हे सुनने जाते हो, तुम्हें तो उनकी ज्ञान भरी बाते समझ नही आती होंगी?

नौकर बोला- नही! मुझे सब समझ आता है, उन्हें समझना उन लोगों के लिए जटिल है, जो अपना अंहकार लेकर जाते है। जो उनके सामने झुक कर जाते है उन्हे बड़ी आसानी से उनकी बात समझ में आ जाती है।

भीमदेव बोला – तुम कही भी चले जाओ, मुझसे ज्यादा नही जान पाऊँगे । ज्ञान का अधिकार ईश्वर ने मुझे दिया है तभी तो उनकी कृपा से मैं धनवान हूँ और तुम निर्धन हो ।

नौकर बोला- ज्ञान का धन और निर्धनता से क्या लेना देना ?

यह सुनकर भीमदेव को क्रोध आ गया । वे सोचने लगा ये नौकर हो कर मुझे ज्ञान दे रहा है। अपने क्रोध को भीतर दबाते हुए भीमदेव कहने लगा, “ठीक है जहाँ जाना है जाओ ।”

भीमदेव के मन में भी आया कि मैं भी बुद्ध के पास जाऊँ पर फिर वह ये सोचकर रुक गया कि क्या मुझे शोभा देगा मैं उसी जगह पर जाऊँ जहाँ मेरा नौकर जाता है। नौकर और मालिक एक साथ अगल बग़ल में बैठ कर ज्ञान सुनेंगे? नही नही ! ऐसा सोचकर उसने खुद को रोक लिया ।

अगले दिन नौकर बुद्ध के पास प्रवचन सुनने चला गया। उसी दिन भीमदेव का दोस्त उससे मिलने आया। उसने भीमदेव से कहा, “मैं बुद्ध के वचन सुनने जा रहा हूँ तुम भी साथ चलो ।” भीमदेव ने मना कर दिया पर दोस्त के बहुत ज़ोर देने पर उसे जाना पड़ा ।

दोनों ने वहा पहुँचकर बुद्ध को प्रणाम किया।
भीमदेव ने देखा अमीर-गरीब सभी वहां साथ में बैठे है उसका नौकर भी वही मौजूद था। उसका दोस्त भी बगल में बैठ गया, लेकिन भीमदेव खड़ा रहा।

बुद्ध भीमदेव से बोले- तुम खड़े क्यूँ हो? बैठ जाओ।
भीमदेव बोला-
इन लोगो का स्तर मुझसे नीचा है इसलिए आप पहले इन्हें ज्ञान दे दीजिये। इन सब के जाने के बाद आप मुझे ज्ञान देना।

बुद्ध बोले- ठीक है! लेकिन पहले तुम हमें बताओ की तुम्हारा स्तर कितना और कैसे ऊँचा है ?
भीमदेव बोला- मेरा स्तर इन लोगो के स्तर से ऊचां है क्योंकि यहाँ बैठे जितने भी अमीर या गरीब लोग है मेरे धन के आगे सब गरीब ही है। मैं इनसे ज्यादा धार्मिक हूँ और दान भी करता हूँ।

बुद्ध मुस्कुराकर भीमदेव की बात सुन रहे थे और समझ चुके थे कि यह अहंकार के सागर में डूबा हुआ व्यक्ति है।

इसके बाद बुद्ध ने कहा- ठीक है तुम एक माह तक रोज़ आना। मैं तुम्हारे लिए अपने जैसा आसन लगवा दूँगा, अब तो तुम्हें कोई आपत्ति नही?

बुद्ध के सारे शिष्य और बैठे हुए सारे लोगो ने कुछ नही कहा क्योंकि वह समझ चुके थे, बुद्ध भीमदेव को कुछ समझना ही चाहते होंगे।

बुद्ध के बगल में भीमदेव का आसन लगवाया गया, जिसके बाद भीमदेव रोज बुद्ध के पास आने लगा ।

एक दिन सभी लोग रोज की तरह बुद्ध के पास प्रवचन सुनने आ गए । भीमदेव और उसका नौकर भी वहां उपस्तिथ थे । उस दिन बुद्ध ने सभी लोगो को कही चलने को कहा । बुद्ध के साथ साथ सभी लोग पैदल पैदल चलने लगे ।

चलते चलते दोपहर हो गयी और वे सब थक गये । रास्ते में दूर दूर तक कोई भी इंसान, घर, तालाब कुछ भी नहीं दिखाई दे रहा था । सभी लोगो को बहुत प्यास लग रही थी और यह परेशानी सबके चेहरे से साफ़ पता चल रही थी । सभी लोगो ने बुद्ध की तरफ देखा, महात्मा बुद्ध मुस्कुराते हुवे आगे बढ़ते जा रहे थे और उनको देखकर लग नहीं रहा था की वे बाकि सब लोगो की तरह थक गए है ।

बहुत दूर चलने के बाद उन सबको एक पेड़ दिखाई दिया । पेड़ के पास में एक कुआँ था जहां एक आदमी पानी भर रहा था । बुद्ध कुए की ओर चल पड़े, बाकि सब भी बुद्ध के पीछे पीछे चलते गए ।

बुद्ध कुए के पास जाकर उस आदमी से बोले, “सुनो भाई! मेरे शिष्यों को प्यास लगी है । क्या आप मेरे शिष्यों की प्यास बुझा सकते है?” उस आदमी ने बुद्ध से कहा, “जी जरूर!”

इसके बाद वो आदमी बाल्टी के द्वारा कुए से पानी निकालने लगा और सभी लोग एक एक करके झुककर पानी पीने लगे ।
इसके बाद उस आदमी ने बुद्ध से कहा, “श्रीमान, आप भी पानी पी लीजिये ।”
बुद्ध ने उस आदमी से कहा, “आपका बहुत बहुत धन्यवाद! किन्तु मेरी प्यास बुझ चुकी है ।”

इसके बाद बुद्ध उस दिशा में चलने लगे जिस दिशा से वे सब लोग आ रहे थे । यह देखकर बाकी सब लोग हैरान हो गए, उनके मन में तरह तरह के सवाल उठने लगे कि हम लोग किस लिए आये थे? और अब हम वापस कहा जा रहे है? कुछ के मन में सवाल उठा कि क्या हम वापस वहीं जा रहे है जहाँ से हम आये थे?

बुद्ध आगे आगे चलते जा रहे थे और सभी लोग बिना कोई सवाल किये पीछे पीछे चल रहे थे । भीमदेव को तो काफी गुसा भी आ रहा था की आज वो प्रवचन सुनने आया था लेकिन प्रवचन के चक्कर में आज प्यासा ही मर जाता ।

शाम होते होते सभी लोग वापस वही आ गए जहाँ वे सभी लोग प्रवचन सुनने आते थे ।

सभी लोग कुछ हैरान थे लेकिन सिर्फ भीमदेव था जो गुस्से में था । वहाँ पहुँचते ही भीमदेव महात्मा बुद्ध से बोला, “अगर कही जाना ही नही था तो क्यों पुरे दिन चलवाते रहे? आज तो प्यास के मारे मेरी तो जान ही जाने वाली थी ।”

बुद्ध मुस्कुराएं और उन्होंने कहा, “जब तुम पहली बार यहां आये थे तो तुमने स्तर की बात की थी, की तुमारा स्तर बाकियो की तुलना में अधिक है । लेकिन यात्रा के दौरान जब सभी लोग थक चुके थे और सभी प्यासे थे तब तुम्हारा स्तर बाकियो के समान ही था । तुम भी उतने प्यासे थे जितना की बाकि सब लोग ।” उस समय तुम्हारा धन या तुम्हारा अहंकार क्या तुम्हारी प्यास बुझा सकता था?

यह सुनकर भीमदेव का गुस्सा शांत हो गया । इस बार बुद्ध की बातें भीमदेव के दिल पर असर कर गयी ।

आगे बुद्ध ने कहा, “कुए के पास पहुँचकर जब तुमने झुक कर पानी पिया तब जाकर तुम्हारी प्यास बुझ पाई । अगर तुम वहां भी अपने अहंकार की बात मानकर नहीं झुकते तो प्यासे ही रह जाते । इसी तरह अगर किसी इंसान को ज्ञान की लालसा है तो उसे अपने अहंकार को दूर रखकर विनम्रता से झुकना होगा तभी उसे ज्ञान की प्राप्ति होती है”


भीमदेव के मन का मैल धीरे-धीरे कटने लगा, वह हल्का महसूस करने लगा ।

बुद्ध ने कहा- जीवन में ज्ञान की प्राप्ति तब होती है जब वह अपने अहंकार को त्याग दे उसे अमीर-गरीब, ऊंचे-नीचे से कोई फर्क ना पड़े । वह हर मनुष्य को ऐसे देखें जैसे वह स्वयं को देखता है । जब मनुष्य को सचमुच ज्ञान होता है, तब वह समय की धारा से आगे निकल जाता है उसे समय का भान ही नहीं होता ।

भीमदेव को ऐसे लगा कि जैसे यह बातें उसी के लिए है और वह सच में कुछ समझने लगा है । उसने अपना आसन छोड़ दिया और बुद्ध के चरणों में गिर गया और रोने लगा ।

बुद्ध ने कहा-अरे क्या हुआ तुम रो क्यों रहे हो?
भीमदेव ने कहा- सब सच ही कहते हैं, आप ज्ञान के भंडार है। आपने मेरे अहंकार को चूर-चूर कर दिया है । मैं सच में समझने लगा हूँ कि भले ही मनुष्य अमीर या गरीब हो, लेकिन उसकी समस्याएं लगभग एक ही होती है । अहंकार के कारण ही सारे दुख उत्पन्न होते हैं इससे संबंधित सारे गुण रहस्य आप मुझे बता चुके हैं। मैं इस आसन पर बैठने योग्य नहीं हूँ । मुझे अपनी शरण में ले लो ।
बुद्धम शरणम गच्छामि

यह कहानी हमें यह बताती है, हमारे दुख का मूल कारण अहंकार ही है । अहंकार होने से हम दूसरों को खुद से नीचा समझने लगते हैं । जिससे कि ज्ञान प्राप्ति के सारे मार्ग बंद हो जाते हैं इसलिए हमें खुद को किसी भी प्रकार के अहंकार से दूर रखना चाहिए ताकि हम भी बुद्ध की शरण में जा सके ।

उम्मीद करते है आपको हमारी गौतम बुद्ध की प्रेरणादायक कहानी “अच्छाई का अहंकार” पसन्द आयी होगी । आप हमें social media पर भी follow कर सकते हैं CRS SquadThink Yourself और Your Goal


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1 thought on “अच्छाई का अहंकार | गौतम बुद्ध की प्रेरणादायक कहानी

  1. I genuinely savored the work you’ve put forth here. The outline is refined, your authored material trendy, however, you seem to have obtained some trepidation about what you wish to deliver next. Assuredly, I will revisit more regularly, akin to I have nearly all the time, provided you maintain this upswing.

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