बोलने की चाह का सफर: एक शर्मिला युवक की कहानी | Motivational Story
एक शर्मिला युवक: बहुत समय पहले की बात है, किसी नगरी में एक युवक रहता था। वह स्वभाव से बहुत ही शर्मीला किस्म का व्यक्ति था। वह इतना शर्मिला था कि कोई भी नया व्यक्ति उसके सामने आता, तो वह बोलने में हिचकिचाता था और उसकी जुबान ही नहीं खुलती थी। यहां तक कि जब किसी व्यक्ति से बात करते समय भी वह घबराता था। उसे बात करने में भी शर्म आती थी, और उसे अपनी समस्याओं को किसी के साथ साझा करने में दिक्कत होती थी, जिस कारण अपनी समस्यायों के कारण खुद ही परेशान रहता था, और उसका जीवन ठीक तरीके से नहीं चल रहा था।
धीरे-धीरे समय बीतता गया, लेकिन उस युवक की शर्माने की आदत और भी बढ़ती चली गई। इससे वह युवक अत्याधिक निराश, परेशान, और चिंतित हो गया। उसे यह समझ नहीं आ रहा था कि वह इस समस्या से कैसे छुटकारा पा सकता है।
उसके घरवाले भी अब उसकी समस्या के बारे में सोच कर बहुत चिंतित हो गए थे, क्योंकि उन्हें लग रहा था कि वह अपने जीवन में कुछ कर ही नहीं पाएगा।
आत्मविश्वास की कमी-हंसी का पात्र बना दिया
जहां भी जाता, लोग उसके भोलेपन का फायदा उठाते और उसे परेशान करते। वह इतना भोला था कि कुछ भी कह नहीं पाता और लोग उसे कुछ भी कह देते थे। इसके कारण उसका मन किसी भी काम में नहीं लगता था, और वह हर काम को कुछ ही दिनों में छोड़ देता था, इन सब के कारण वो मन ही मन घुट रहा था। वह सबसे कुछ कहना चाहता था, लेकिन अपनी इस आदत के कारण वह किसी से कुछ कह नहीं पा रहा था। अंदर ही अंदर घुटता जा रहा था, और उसके सारे विचार सारी बातें मन में ही दबी पड़ी थीं। वह किसी से अपनी मन की बातें नहीं बताता था।
जब वह छोटा सा बच्चा था, तो लोग उसे उसकी इस स्वभाव के कारण बहुत पसंद करते थे। उसकी इस आदत को भी लोग उत्साह देते थे। जब वह युवा हो गया तो इसी आदत के कारण, उसे अपना जीवन व्यतित करने में अत्यधिक परेशानी उठानी पड़ रही थी। इसके कारण वह बहुत परेशान रहता था और अपनी इस आदत से छुटकारा पाना चाहता था। वह यह चाहता था कि वह लोगों से अपने मन की बातें खुलकर कह पाए। जो कुछ करना चाहता है, जो कुछ कहना चाहता है, वह सबसे खुलकर कह सके। लेकिन जब भी कोई दूसरा उसके सामने आता, तो मानो उसकी जुबान खुलती ही नहीं। यहां तक कि वह अपने माता-पिता से भी ठीक से बात नहीं कर पाता था। उसके गिने-चुने कुछ दोस्त थे, जिनसे वह बातें कर पाता था।
जब भी वह किसी के बात का जवाब नही देता, तो लोग उसके बात का मजाक उड़ाते, जिससे उसके पिता अत्यधिक चिंतित हो गए। वह चाहते औरों की तरह उनका बेटा भी दूसरों के सामने अपनी बात रख सकें।
एक दिन, जब वे अपने बेटे को दूसरों के सामने शर्मिंदा होते हुए और मजाक बनते देख रहे थे, तो उन्हें बहुत क्रोध आया। उन्होंने अपने बेटे को बहुत डाटा, जिससे वह युवक अत्याधिक क्रोधित हो गया। वहां से बिना कुछ कहे कहीं चला गया, शाम हो गई थी लेकिन अब तक वह घर नहीं लौटा था। उसके माता-पिता चिंतित थे, क्योंकि वे अपने बेटे को घर पर देखना चाहते थे।
डर से मुक्ति- Motivational Story
वह भागते भागते पहाड़ की चोटी पर पहुंच गया। वहां से नीचे की ओर झाक रहा था और ईश्वर से कह रहा था, “आपने मुझे ऐसा क्यों बनाया? लोग मेरा मजाक उड़ाते हैं। जब मैं अपने मन की बात लोगों के सामने नहीं रख सकता, कुछ कह ही नहीं सकता, तो फिर मैं इस जीवन को जी कर क्या करूंगा?”
जब भी मैं किसी से कुछ कहने की कोशिश करता हूं, तो लोग मेरा मज़ाक बनाते हैं, यहां तक की वह मुझे कुछ भी कह कर चला जाता हैं और मैं मौन खड़ा रह जाता हु उन्हे जवाब तक नही दे पाता। ऐसा जीवन जी कर मुझे क्या मिलेगा इसलिए मैं तेरे पास आ रहा हूं।
जैसे ही वह पहाड़ से कूदने वाला था, एक आवाज आई, “बेटा, जान देना तो बहुत आसान है, लेकिन ईश्वर के दिए हुए इस जीवन रूपी अनमोल उपहार को तुम वापस नहीं पा सकते।” यह आवाज जैसे ही उसके कानों में पड़ी और वह पिछे मुड़कर देखा।
जब वह पिछे मुड़कर देखा, तो उसने एक बौद्ध भिक्षु को अपने पीछे खड़े हुए पाया। उन्हें देखकर वह अपने कदम पिछे खींच लिए और चुपचाप वहां पर खड़ा हो गया। अपनी आदत के कारण उसने उनसे कुछ नहीं कह पाया। तभी बौद्ध भिक्षु ने पूछा, “बेटा, आखिर क्या बात है? और तुम यहां पर क्या कर रहे हो?, तुम अपने जीवन को क्यों समाप्त करना चाहते हो? यह अनमोल जीवन बहुत कम लोगों को मिलता हैं और तुम्हें यह जीवन व्यर्थ लग रहा हैं, क्या मैं जान सकता हूँ इसके पीछे का कारण”।
तब तक युवक कहता है, “नहीं, नहीं, मैं तो बस यहां खड़ा होकर पहाड़ की ऊंचाई को देख रहा था।”
तब बौद्ध भिक्षु कहते हैं, “बेटा, मैं जानता हूँ तुम यहां क्या करने आए थे, तुम मुझसे कुछ नहीं छिपा सकते। लेकिन मैं चाहता हूँ कि तुम अपनी समस्या मुझे खुद बताओ, ताकि मैं तुम्हें उसका समाधान बता पाऊं। यदि तुम चाहते हो कोई तुम्हारी मदद करें तो इसके लिए पहले तुम्हें ही आगे बढ़ना होंगा। यदि तुम चाहते हो कि मैं तुम्हारी मदद करूं, तो मुझे तुम्हें अपनी समस्या बतानी होगी। वरना मैं कुछ नहीं कर पाऊँगा।”
बौद्ध भिक्षु के इस बात को सुनकर, वह युवक कहता है, “मैं बिल्कुल ठीक हूं। सच कह रहा हूं, मुझे कोई परेशानी नहीं है।”
उस युवक की बात सुनकर, बौद्ध भिक्षु उससे कहते हैं, “यदि तुम नहीं चाहते हो कि मैं तुम्हारी मदद करूं, तो मैं तुम्हारे बात पर विश्वास कर लेता हूं। लेकिन तुम्हें भी मेरी एक बात पर विश्वास करनी पड़ेगी कि मैं तुम्हारे मदद के लिए ही यहां आया हूं। तुम चाहो तो अपनी समस्या मुझे बता सकते हो। मैं तुम्हारी इस समस्या का समाधान भी जरूर करूंगा।”
उसके जवाब में, युवक कहता है, “नहीं, नहीं, मैं बिल्कुल ठीक हूं।”
इस बात पर, बौद्ध भिक्षु कहते हैं, “अगर तुम चाहते हो, मैं यहां से चला जाऊं तो मैं यहां से चला जाता हूं।” लेकिन मेरी एक बात याद रखना मेरे जाने के बाद, मैं तुम्हारी कोई मदद नही कर पाऊँगा और हो सकता हैं कि तुम्हारी मदद के लिए कोई और आगे भी ना आएं।
इतना कह कर भिक्षु जानें लगा।
बौद्ध भिक्षु का उपदेश- भय पर विजय | Motivational Story
वह युवक खड़ा होकर बौद्ध भिक्षु की सारी बातें सुन रहा था, जैसे ही बौद्ध भिक्षु कुछ दूर पहुंचे। तभी उस युवक ने जोर से आवाज लगाई, “हे गुरु, मेरी समस्या बहुत बड़ी है। क्या आप इसका समाधान कर सकते हैं?” यह सुनकर बौद्ध भिक्षु वहीं पर खड़े हो गए।
पिछे मुड़कर उन्होंने उस युवक की बात का जवाब देते हुए कहा, “बेटा, दुनिया में कोई भी ऐसी कोई समस्या नहीं है जिसका कोई समाधान ना हो। यदि तुम मुझे अपनी समस्या बताओगे तो मैं उसका समाधान जरूर करूंगा।” तब वह युवक, बुद्ध भिक्षु से अपनी समस्या बताते हुए कहता है, “गुरूदेव, मेरे लिए एक ही समस्या है जो बहुत बड़ी हजारों समस्या के बराबर है – शर्म। जिस कारण मैं किसी से कोई बात नहीं कह पाता हूँ, यहां तक कि मैं अपने मन की बात किसी को नहीं बता पाता। जब भी मैं किसी से बात करने की कोशिश करता हूं, तो लोग मेरा मजाक उड़ाते हैं। जब कोई मुझे खरी-खोटी सुनाता है, तो मैं उनका जवाब नहीं दे पाता हूं।”
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मैं लोगों की तरह वाक्पटु बनना चाहता हूं, “मैं लोगों की तरह सवाल-जवाब करना चाहता हूं, मैं मन की बात कहना चाहता हूं। मैं इस दुनिया से कदम से कदम मिलाकर चलना चाहता हूं, आगे बढ़ना चाहता हूं। क्या इसका कोई समाधान हैं?”
भिक्षु ने उस युवक की सारी बातें सुनी और ज़बाब देते हुए कहा- “बेटा, जरूरत से ज्यादा शर्मिला होना यानि तुम्हारे अंदर किसी डर का होना हैं। जिसे तुम पहचान नही पा रहे हो और उसका समाधान करने में असमर्थ हो। शर्म करना अलग बात है और डरना अलग है। जब हमारे भीतर डर बैठा होता है, तब हम कहीं भी कोई भी बात नहीं कर सकते। हमारे आसपास सिर्फ और सिर्फ डर ही नजर आता है, और हम हर जगह से डरते रहते हैं। लेकिन इसे शर्माना नहीं कहते। शर्म तो बस एक हद तक हमें चुप रख सकती है, फिर वह बौद्ध भिक्षु उस युवक से कहते हैं, “बेटा, तुम सबसे अधिक किससे शर्माते हो?”
तब वह युवक कहता है, “गुरूवर, मुझे अपने पिता से बात करने से बहुत शर्म आती है। मैं उनसे भी कुछ नहीं कह पाता।”
तभी वह बौद्ध भिक्षु उस युवक से कहते हैं, “जब तुम अपने पिता से बात करते हो या बात करने का प्रयास करते हो, तुम्हारे मन में कैसे ख्याल आते हैं?”
युवक इसका जवाब देते हुए कहता है, “गुरूवर, जब भी मैं अपने पिता से बात करने का प्रयास करता हूं, तो मानो मुझे ऐसा लगता है कि अभी मुझे वो डांट देंगे। मुझ पर क्रोध करेंगे या नाराज हो जायेंगे, और मुझे कहीं न कही लगता है कि मैं गलत बात ही करुंगा। कभी-कभी तो मेरे मन में यह भी ख्याल आता है, की मेरे पिता जी मुझसे प्यार ही नही करते।”
फिर कुछ देर रुक कर युवक सवाल करता है “गुरुवर, आप कहते हैं कि शर्म अलग चीज है और डर अलग है। क्या कोई ऐसा उपाय है जिससे मुझे डर ही नहीं हो, या कोई ऐसा रास्ता है जिससे यह डर मेरे अंदर से पूरी तरह से समाप्त हो जाए? कृपया करके मुझे इसका समाधान बताइए। मुझे इस डर से बाहर निकलना है। मुझे लोगों की तरह इस जीवन को खुल कर जीना है।”
तब बौद्ध भिक्षु उस युवक से कहते हैं, “जाओ, अपने पिता से कहो कि मुझे कुछ काम करना है, और उसके लिए मुझे आपसे कुछ पैसे चाहिए। अगर तुम उनसे पैसे मांगने में कामयाब हो गए, तो मैं तुम्हारी समस्या का समाधान जरूर बताऊंगा, जिससे तुम्हारी सारी समस्याएं दूर हो जायेगी।”
वह युवक काफी घबरा गया और कहा, “हे गुरुवर मुझे यह काम मत दिजिए मुझसे यह कार्य नहीं होगा, मैं अपने पिता से कुछ नहीं कह पाता उनके समाने तो मेरी बोलती तक बंद हो जाती हैं तो मैं उनसे पैसे कैसे मांग सकता हूं।”
यह बात सुनकर बौद्ध भिक्षु उससे उसी वक्त कहते हैं, “तब तो तुम्हारी समस्या का कोई भी हल नहीं है,और ना ही तुम अपने जीवन को कभी खुल कर जी पयोगें।”
तब वह युवक कहता है, “हे गुरुवर कृप्या करके आप मुझे कोई और कार्य बताइए, जिससे मेरे अंदर डर पूरी तरह से समाप्त हो जाएं”।
तब बौद्ध भिक्षु उस युवक से कहते हैं, “बेटा, यदि तुम्हें अपने अंदर का डर खत्म करना है, तो तुम्हें मेरा उपदेश मानना होगा। जो मैंने तुम्हें कहा है, उसे करने के लिए तुम्हें पूरी कोशिश करनी होगी।” युवक काफी देर तक सोचता है, फिर उस बौद्ध भिक्षु से कहता है “अगर आप चाहते हैं कि मैं इस कार्य को करूं, तो मैं पूरी कोशिश करूंगा।” इतना कहकर वह युवक अपने घर लौट जाता है।”
उसके माता-पिता उसे देखकर बहुत खुश हो जाते हैं और वह युवक डरते हुए अपने पिता से कहता है, “पिता जी, मुझे आपसे कुछ बात कहनी है।” उसके पिता कहते हैं, “बोलो, क्या बात है?”
युवक कहता है, “मैं कुछ काम करना चाहता हूं, उसके लिए मुझे पैसा चाहिए। क्या आप मुझे पैसा दे सकते हैं?” इतना सुनकर उस युवक के पिता ध्यान से उसकी ओर देखते हैं। काफी देर तक देखने के बाद, वे खुशी से झूम उठते हैं। और तुरंत ही, कुछ पैसे उन्होंने अपने पुत्र के हाथों में रख दिए और कहा, “इतना पैसा काफी है, या तुम्हें और पैसा चाहिए?”
उस युवक ने कहा, “नहीं, नहीं, इतना पैसा काफी है, मैं इतने से ही काम चला लूंगा।” वह युवक पैसे लेकर दौड़ते हुए तुरंत बौद्ध भिक्षु के पास पहुंचा।
वह युवक पैसों को अपने हाथों में लिए दिखाते हुए कहता है, “गुरुवर, जैसा की आपने कहा था, मैं पैसे लेकर आ गया हूं। मैंने अपने पिता से पैसे मांग लिए हैं। अब आप मेरी समस्या का समाधान बताइए।”
बौद्ध भिक्षु उस युवक से कहते है “बालक इतनी जल्दी क्या हैं? अभी तो तुम्हें मेरे लिए एक और काम करना होंगा तभी मैं तुम्हारी समस्या का समाधान बता पाऊंग और हाँ अगर तुम मेरे इस काम को नही करोगे तो फिर मैं तुम्हें कोइ समाधान नहीं बता पाऊंगा।।”
तब वह युवक कहता है, “मैंने तो अभी आपका एक काम किया है और आप मुझे फिर दूसरा काम करने के लिए कह रहे हैं।”
बौद्ध भिक्षु कहते हैं, “हाँ, तुम्हें मेरा एक और काम करना होगा।”
एक बार के लिए वह युवक काफी सोच विचार करता है फिर बौद्ध भिक्षु से कहता है, “अच्छा, ठीक है। बताइए, अब मुझे क्या करना है?”
बौद्ध भिक्षु उस युवक से कहते हैं, “जाओ और यह पैसें जो तुमने अपने पिता से मांग कर लाया है, इसे वापस अपने पिता को लौटा दो, और साथ ही यह भी कहना कि मैं अभी काम नहीं करना चाहता हूं, लेकिन जब समय आएगा, तो मैं यह पैसे वापस आपसे मांग लूंगा।”
यह बात सुनकर युवक एक बार फिर से ऊपर से नीचे तक कांप गया और कहा हे गुरुवर, “आप मुझे कोई और काम सौप दीजिए, मैं उसे जरुर करुंगा लेकिन अब यदि मैं पैसें लेकर उनके पास वापस गया तो वह क्या सोचेंगे मेरे बारे में मैं तो शर्मिंदा हो जाऊंगा, इसलिए गुरुवर कृप्या करके आप मुझे दुसरा काम दीजिए।”
तभी बौद्ध भिक्षु उस युवक से कहते हैं, “बेटा, जो काम मैंने तुझे सौंपा है, उसी कार्य को पूरा करो, अन्यथा तुम्हारी समस्या का समाधान मैं नहीं बताऊँगा।”
काफी सोच विचार करने के बाद, वह युवक बौद्ध भिक्षु से कहता है, “ठीक है गुरुवर, मैं वापस जाता हूँ और यह पैसे लौटा कर आता हूँ।”
वह तुरंत अपने पिता के पास वापस लौटा और कहा, “पिता जी मैं अभी यह पैसें नही लेना चाहता आप इसे वापस ले लीजिए जब मुझे जरूरत पड़ेगा तो मैं मांग लूंगा।”
उस युवक के पिता ने उसके तरफ काफी देर तक घूर-घूर कर देखा और मुस्कुराते हुए कहने लगे, “मैं जानता हूँ कि किसी भी काम को करने के लिए उसके बारे में पहले सभी जानकारी इकट्ठा करना जरुरी होता है, कैसे? और कब तक? करनी है इसकी भी जानकारी लेनी जरुरी है, कोई भी काम ऐसे ही नहीं शुरु किया जा सकता है। उस काम में हम सफल होगे या नहीं इसका भी अनुमान लगाना जरुरी होता है, और जब हम इन सभी के बारे में सही जानकारी प्राप्त कर लेते हैं, तभी हमें पैसे लगाना चाहिए। मुझे बहुत खुशी है कि तुमने यह सही निर्णय लिया है, जब तुम्हें यह समझ आ जाए की तुम जो काम करने जा रहे हो वह सही है, तब मैं तुम्हें यह पैसे वापस लौटा दूंगा।।”
युवक अपने पिता से ये सारी बातें सुनकर मन ही मन बहुत खुश था। उसने यह उम्मीद तक नहीं की थी, की उसके पिता हंसकर इस तरह से उसे सारी बातें समझाएंगे।
वह मन ही मन ये सब सोच ही रहा था तब तक उसके पिता उसके और करीब आएं और अपने उस युवा बेटे को गले से लगा लिया उसे बहुत अच्छा लगा और उसे ऐसा लगा जैसे उसका हौसला बढ़ गया हो।
उसके बाद वह युवक वापस बौद्ध भिक्षु के पास लौट आया और कहा “गुरुवर जैसा आपने कहा ठीक मैंने वैसा ही किया मैंने पैसे अपने पिता को वापस कर दिया है, कृपया करके अब तो मेरे समस्या का समाधान बता दीजिए।”
तभी बौद्ध भिक्षु उस युवक से कहते हैं “बेटा इतनी जल्दी क्या है? अभी तो तुम्हें मेरे लिए एक और काम तो करना ही पड़ेगा।”
तब वह युवक कहता है, “हे गुरुदेव, आप मुझसे बार-बार काम क्यों करवा रहे हैं? क्या आपके पास मेरे समस्याओं का समाधान नहीं है? आप मुझे औरों की तरफ ही बेवकूफ तो नहीं बना रहे हैं। आपने कहा, “जाओ, अपने पिता से पैसे मांग कर लाओ,” तो मैंने यह भी किया। फिर आपने कहा, “जाओ, इस पैसे को वापस कर दो,” और मैंने वह भी किया। अब आप कह रहे हैं कि मैं आपके लिए एक और काम करूं, यह मेरे बस की बात नहीं है।”
तब बौद्ध भिक्षु उस युवक से कहते हैं, “बेटा, यह आख़िरी काम है जो की बहुत ही आसान कार्य होगा, तुम जैसे ही इस काम को पूरा करोगे, मैं वचन देता हूं कि तुम्हारी समस्या का समाधान मैं अवश्य करूंगा।”
बहुत सोच विचार करने के बाद, वह युवक बौद्ध भिक्षु से पूछता है, “बताइए, वह आखिरी काम क्या है जो मुझे आपके लिए करना होगा?”
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तभी बौद्ध भिक्षु एक मूर्ति निकालकर उस युवक के हाथ में थमा देते हैं। वह मूर्ति देखने में बहुत ही साधारण सी थी, वह मूर्ति देकर बौद्ध भिक्षु युवक से कहते हैं, “बेटा, तुम्हें इसे बाजार में ले जाना हैं और इसे बेचना हैं। इसके बदले में तुम्हें 100 सोने के सिक्के लाने हैं। जब तुम इसे सफलतापूर्वक कर लोगे, तभी मैं तुम्हारी मदद करूंगा।”
वह युवक उस मूर्ति को हाथ में लेकर देखता है और कहता हैं “भला इस मिट्टी की मूर्ति की हमे 100 सोने के सिक्के कौन देगा? इसके तो 1 या 2 सोने के सिक्के मिल जाएं, वही काफी हैं लेकिन इसके लिए 100 सोने के सिक्के कोई नहीं देगा।”
तब बौद्ध भिक्षु उस युवक से कहते हैं- “मैने तुम्हें जो काम सौंपा है, अगर तुम इसे पुरा कर पाओगे तभी तुम्हें तुम्हारी समस्यायों का समाधान मिल पायेगा अन्यथा तुम चाहो तो वापस लौट सकते हो।”
एक शर्मिला युवक कैसे बना आत्मविश्वासी युवक-
वह युवक मन ही मन सोचता है, “मुझे तो अपनी समस्या का समाधान हर हाल में चाहिए।” उसके बाद, वह मूर्ति को हाथ में उठाकर बाज़ार की तरफ चल देता है। एक तरफ चुपचाप उस मूर्ति को लेकर खड़ा हो जाता है और इंतजार करने लगता है कि कोई आएगा और उससे उस मूर्ति के बारे में पूछेगा, और फिर वह इस मूर्ति के लिए 100 सोने के सिक्कों की मांग करेगा।
काफी समय बीत गया और उसके पास कोई भी व्यक्ति नहीं आया था। वह आस-पास देखा तो लोग चिला-चिला कर अपने सामान बेच रहे थे। फिर उसने सोचा, “अगर मुझे भी अपनी मूर्ति बेचनी है, तो मुझे जोर-जोर आवाज़ लगानी होगी।” उस युवक ने चिलाना शुरू किया। लेकिन वह इतनी जोर से नही चिला रहा था उसकी आवाज उसे खुद तक सुनाई नही पड़ रही थी तो भला उसके आवाज को दूसरे कैसे सुनते, जिसके कारण उस मूर्ति को कोई भी व्यक्ति खरीदने के लिए तैयार नहीं थे।
धीरे-धीरे शाम का समय हो चुका था। उस युवक को इस बात का डर था कि वह बौद्ध भिक्षु वहां से कहीं चला ना जाएं, तब उसकी समस्या का समाधान कौन देगा।
यह सोच कर उसने जोर-जोर से आवाज लगानी शुरु किया, “100 सोने के सिक्कों में यह मूर्ति ले लो, उसकी आवाज़ सुनकर लोग उसके पास आने लगे और यह सवाल करने लगे “इस मूर्ति में ऐसा क्या हैं जो तुम इस मूर्ति के लिए 100 सोने के सिक्के मांग रहे हो।”
युवक काफी सोच विचार कर उस युवक से कहता हैं, “नही-नही मुझे कुछ नही पता मैं तो सिर्फ़ यह मूर्ति यहां बेचने के लिए आया हुं। तभी उसमे से एक युवक उस युवक से कहता हैं, “अगर ऐसी बात हैं तो इस मूर्ति को कोई नहीं खरीदने वाला आखिर इस मूर्ति में ऐसा क्या खास है, जिसके लिए तुमने सौ सोने के सिक्कों की मांग कर रहे हों यह तो तुम्हें बताना ही पड़ेगा।” धीरे-धीरे कई लोग उसके पास आएं और सभी ने बस एक ही सवाल किया- “इस मूर्ति में ऐसा क्या खास जिसके लिए तुम सोने के सिक्कों की मांग कर रहे हों।”
उस युवक ने लोगों को समझाने की कोशिश की लेकिन कोई भी उस मूर्ति को सोने के सिक्के देकर खरीदने के लिए तैयार नहीं था। वह बहुत निराश हो गया उसे कुछ समझ नही आ रहा था की वह क्या करें?
तभी उसने बाज़ार में देखा की लोग अपने सम्मानों की खासियत बता रहे हैं, वह देखकर उसने भी सोचा की “मुझे भी इस मूर्ति की कुछ खासियत लोगों को बतानी होंगी।” फिर उसने एक बार फिर से कोसिस किया और जोर-जोर से आवाज लगना शुरू किया, और कहना शुरु किया की “सारे दुखों का निवारण करने वाली मेरे गुरु की इकलौती मूर्ति जो इस दुनिया में केवल एक ही हैं जिसके पास यह मूर्ति होंगी, उसके घर में कोई भी समस्या नहीं आयेगी, अगर आपके घर में कोई समस्या आती भी है तो यह मूर्ति लेकर जाइए और चमत्कार देखिए यह दुख निवारण मूर्ति है”। यह सुनकर लोग उसके पास पहुंचने लगे और उससे यह सवाल करने लगे- “क्या सच कह रहे हो तुम यह मूर्ति जिसके पास होगी उसके सारे दुख तकलीफ दूर हो जायेगी? यह मूर्ति क्या सच में सभी समस्यायों का समाधान करती हैं?”
इन प्रश्नों का जवाब देते हुए युवक कहता हैं- “हां, यह सभी समस्यायों का समाधान कर देती हैं। इस बात को सुनने के बाद वह एक ही मूर्ति सबको चाहिए थी। उस मूर्ति की बोली लगनी लगी कोई उस मूर्ति का 200 सोने का सिक्का, तो कोई उस मूर्ति का 400 सोने का सिक्का देने के लिए तैयार थे।
जैसे-जैसे लोगों को पता चलता गया यह मूर्ति सभी समस्यायों का समाधान कर देती हैं वैसे-वैसे उसकी कीमत बढ़ती ही जा रही थी। अब वह युवक आत्मविश्वास के साथ चिला रहा था लोगों को उस मूर्ति के बारे में समझा रहा था बता रहा था। उसके मन में डर की जगह आत्मविश्वास ने ले लिया था। वह पूरे आत्मविश्वास के साथ लोगों को उस मूर्ति की खासियत बताने में लगा हुआ था, जिसके कारण लोग उस पर भरोसा कर रहे थे, और वह भरोसा लोगों के नज़रों में नज़र भी आ रहा था। जैसे-जैसे अंधेरा होते जा रहा था भीड़ मानो कम होने का नाम ही नही ले रही थीं लोग उस मूर्ति को खरीदना चाहते थे।
वह युवक उसके गुरुजी के द्वारा दिया गया आखरी कार्य का मकसद समझ गया था और वह जोर से चिला कर बोलता है यह मेरे गुरु जी की मूर्ति हैं मैं इसे बेचना नही चाहता, उस मूर्ति को लेकर वह खाली हाथ वापस लौट आया।
बौद्ध भिक्षु के पास पहुंचा और उनसे बोला “हे गुरुदेव आपका बहुत बहुत धन्यवाद इस मूर्ति ने मेरे समस्या का समाधान कर दिया मुझे समझ आ गया की मेरी क्या समस्या थी मैं इसे बेचकर आपके लिए सोने के सिक्के तो नही लाया लेकिन मुझे मेरी समस्या का हल जरुर मिल गया है।”
इस बात को सुनकर बौद्ध भिक्षु कहते हैं “मैने तुम्हारी समस्या का समाधान नहीं किया। तुमने तो खुद ही अपने समस्या का समाधान कर लिया है। तुम्हारे मन में हजारों सवाल थे। मैं यह करुंगा तो लोग क्या कहेंगे? यदि मैं अपना मुंह खोलूंगा तो लोग क्या कहेंगे? अगर मैं मुंह खोलूंगा तो कुछ गलत ही कहूँगा, ऐसे कई सारे विचार तुम्हारे मन में थे और साथ ही कई सारे डर तुमने अपने मन में पाल रखे थे। मूर्ति की वजह से तुम उन हजारों लोगों का सामना किया और खुल कर अपनी बातें रखी। उनके सामने तुमने वो कहा जो तुम्हारे मन में था इसलिए तुम्हारे अंदर से वह डर खत्म हो गया जिसे तुम शर्माना कह रहे थे वह अपने आप तुम्हारे भीतर से कहीं गायब हो गया।”
युवक अपने गुरू की यह बात सुनकर गुरु से कहता हैं “आज आपने मेरे मन में विश्वास जगा दिया है जिससे मैं अब अपने जीवन में कुछ भी हासिल कर सकता हूं।”
डर को धीरे-धीरे खत्म करने से ना ही आपको शर्म आएगी और ना ही आपकों डर लगेगा। जब आपके भीतर का डर हमेशा के लिए खत्म हो जाएगा तो आप अपने जीवन में जो कुछ भी करना चाहते हैं या हासिल करना चाहते हैं वह कर सकते हैं। इसलिए लोग क्या कहेंगे यह सब छोड़कर खुद पर विश्वास करिए क्योंकि आप ही हैं जो अपने डर का सामना कर सकते हैं।
उम्मीद करते हैं आपको हमारी Motivational Story in Hindi “बोलने की चाह का सफर: एक शर्मिला युवक की कहानी” कहानी पसंद आयी होगी ।
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