Never Give Up : जीवन का हर पल हमें एक नई सीख देता है। अगर कोई काम तू पहली बार में नहीं कर पा रहा है, तो यह तेरी कमजोरी नहीं, बल्कि तेरी तैयारी है।
कोशिश करने के सफर में हार और जीत दोनों हो सकते हैं, परंतु असली शेर वही होता है जो हार कर भी फिर उठता है और कोशिश करता है।
सफलता का सबसे बड़ा राज़ है – तू कभी हारने मत देना। जब तू कोशिश करता है, तो तू सीखता है, बढ़ता है, और अगले पल के लिए तैयार होता है।
तेरे सपनों को पूरा करने के लिए तू हर मुश्किल का सामना कर सकता है, क्योंकि तू अपनी इच्छा और मेहनत से अपने माकसद की ओर बढ़ रहा है।
तो मत हारना, कभी कोशिश करने से डरना नहीं। जब तू कदम बढ़ाता है, तो तू अपने आप को और मजबूत बनाता है, और जीत की ओर बढ़ता है। तू कुछ भी कर सकता है, सिर्फ तुझे यकीन होना चाहिए।
Best Motivational Story – Never Give Up
आज हम आपको एक ऐसे व्यक्ति की कहानी से परिचित कराएंगे जिन्होंने कठिनाइयों का सामना करके अपने सपनों को पूरा किया। जिस उम्र में लोग रिटायरमेंट लेते हैं, उस उम्र में इनका करियर शुरू हुआ। यह कहानी है KFC के मालिक, कर्नल हारलैंड सैंडर्स (Colonel Harland Sanders) की जिन्होंने 65 साल की उम्र में केएफसी (KFC) की शुरुआत की थी इसके बाद उनका नाम दुनियाँ के सबसे अमीर लोगों में गिना जाने लगा । लेकिन यहां तक पहुंचने से पहले वे 1009 बार fail हो चुके थे । साधारण आदमी 10 या 20 बार fail होने के बाद में नहीं उठ पाता लेकिन जिन्हें दुनियाँ को दिखाना होता की वे क्या हैं और क्या कर सकते हैं उनके लिए उम्र और fail होना कुछ मायने नहीं रखता बल्कि वे सिर्फ लगे रहते हैं अपने लक्ष्य को पाने के लिए ।
कर्नल हारलैंड सैंडर्स का जन्म
कर्नल हारलैंड सैंडर्स का जन्म 1890 में अमेरिका के इंडियाना में हेनरीविले में हुआ था। उनके पिता की मौत हो गई थी, जब वह सिर्फ 6 साल के थे। इसके बाद, घर के हालात कठिन हो गए और उनकी मां ने एक फैक्ट्री में काम करना शुरू किया, जबकि सैंडर्स अपने छोटे भाई-बहन की देखभाल करते थे। सैंडर्स ने बहुत जल्दी खाना पकाने का काम सीख लिया, सिर्फ 7 साल की उम्र में।
करीब 12 साल की उम्र में, उनकी मां दूसरी शादी कर ली, जिसके परिणामस्वरूप सैंडर्स को अपने सौतेले पिता से समस्या होने लगी, जिसके कारण वह अपनी आंटी के पास चले गए और एक फार्म में काम करने लगे। सैंडर्स ने सातवीं कक्षा की पढ़ाई छोड़ दी थी।
बीवी बच्चों ने छोड़ दिया
इसके बाद, वे विभिन्न जगहों पर कई तरह के काम करते रहे, सेना में भर्ती होने का प्रयास किया, लेकिन वहां से निकाल दिए गए। करीब 19 साल की उम्र में उन्होंने शादी कर ली । कुछ समय तक रेलवे में काम किया, लेकिन कुछ विवाद के बाद वह वहां से भी निकल गए, जिसके बाद उनकी पत्नी भी उनके साथ नहीं रहना चाहती थी और वे अपने बच्चों के साथ अलग हो गईं। सैंडर्स ने अपने जीवन में अनेक छोटे-मोटे काम किए, जैसे कि इंश्योरेंस बेचना, क्रेडिट कार्ड बेचना, टायर बेचना, लैंप बनाना, और नाव चलाना जैसे कामों में भी अपने हाथ आजमाए। सैंडर्स ने कभी भी हार नहीं मानी।
‘कर्नल’ की उपाधि
सैंडर्स का रेस्टोरेंट व्यापार 1930 में पहली बार सफलता के पथ पर आया, जब उन्होंने केंटकी के कॉर्बिन में एक गैस स्टेशन खरीदा। बहुत सारे यात्री उनसे सुझाव देने लगे कि वह एक रेस्टोरेंट भी खोलें। चिकन के प्रति उनका प्यार बचपन से ही था, इसलिए उन्होंने रेस्टोरेंट में विभिन्न प्रकार के चिकन बेचने का प्रयास किया। इस काम में सफलता मिलने लगी, और वह बड़ी कमाई करने लगे।
एक दिन, केंटकी के गवर्नर 1950 में उनके रेस्टोरेंट में आए और उनके चिकन का स्वाद चखा। उन्हें वह बहुत पसंद आया और उन्होंने हारलैंड सैंडर्स को ‘कर्नल’ की उपाधि दी। कर्नल की उपाधि एक महत्वपूर्ण सम्मान मानी जाती है।
रेस्टोरेंट टूट गया
सैंडर्स के रेस्टोरेंट के स्थान से एक हाईवे निकलने वाला था, जिसके बाद उनका रेस्टोरेंट टूट गया और यहां से फिरसे एक नया मार्ग खोजने का संघर्ष शुरू हुआ । उन्होंने विचार किया कि उनकी रेस्टोरेंट की रेसिपी को बेचकर उन्हें अधिक मुनाफा कैसे कमाया जा सकता है। इसी सोच के साथ, उन्होंने अपनी फ्राइड चिकन रेसिपी को तमाम रेस्टोरेंटों में बेचने की कोशिश की। वे जगह-जगह गए, लेकिन हर जगह ‘ना’ सुना। उन्होंने बड़ी मेहनत और संघर्ष के बाद अपनी पहली ‘हां’ प्राप्त की, और इससे केएफसी (KFC) का सफर शुरू हुआ।
KFC की शुरुआत
कर्नल सैंडर्स ने अपने 65 साल की आयु में केएफसी की शुरुआत की। जब उन्हें एक रेस्टोरेंट ने अपनी चिकन रेसिपी बेचने की पेशकश की, तो उन्होंने रेस्टोरेंट को अपने खास मसाले के साथ भेजने लगे, जिससे उनकी रेसिपी का राज बना रहा और लोगों को उनकी स्वादिष्ट चिकन का आनंद आ रहा था। इसके बाद, 1963 में अक्टूबर माह के दौरान, एक वकील जॉन वाई ब्राउस जूनियर और व्यापारी जैक सी मैसी ने सैंडर्स से मुलाकात की और केएफसी की फ्रेंचाइजी खरीदने की प्रस्तावना दिखाई। शुरुआत में, वह मना करते रहे, लेकिन बाद में उन्होंने 2 मिलियन डॉलर पर मान लिया, जो जनवरी 1965 में हुआ।
इस सौदे के तहत यकीनी बन गया कि केंटकी फ्राइड चिकन कंपनी अपने रेस्टोरेंट को विश्वभर में फैलाएगी और कभी भी गुणवत्ता पर समझौता नहीं करेगी। सैंडर्स को ने 40,000 डॉलर की वेतन भी दी, और बाद में उनकी वेतन को 75,000 डॉलर पर बढ़ा दिया गया। इसके बाद, उनकी कंपनी ने विभिन्न उद्योगों में नाम कमाया, जैसे कि रेनॉल्ड्स और पेप्सिको, और अब इस कंपनी का मालिकाना ‘यम ब्रांड्स इनकॉर्पोरेशन’ के पास है। कर्नल सैंडर्स की मृत्यु 1980 में 90 साल की आयु में हुई। आज, कर्नल सैंडर्स नहीं हैं, लेकिन केएफसी के चिकन के शौकीनों के लिए वे हमेशा यादगार हैं। आजकल, केएफसी 150 से अधिक देशों में 22,000 से अधिक स्टोर्स में मौजूद है।
Moral of This Story – Never Give Up
यह कहानी हमें यह सिखाती है कि जीवन में सफलता पाने के लिए कभी भी हार नहीं माननी चाहिए। कभी भी अच्छे और बुरे समय में संघर्ष को नकारकर, और कभी-कभी हार के बावजूद आगे बढ़ने की कोशिश करना चाहिए। केएफसी के कर्नल सैंडर्स की कहानी इस बात का उदाहरण है कि पिता के देहांत के बाद, माता के छोड़कर जाने के बाद भी खुद को किस तरह काबिल बनाया । हालात चाहें जैसे भी हो आपको कभी भी निराश नहीं होना हैं । महत्वपूर्ण है कि आप कितनी मेहनत करने को तैयार हैं और कभी भी हार नहीं मानें।
कर्नल सैंडर्स की कहानी से हमें यह सिखने को मिलता है कि सपनों को पूरा करने के लिए संघर्ष और मेहनत का होना अत्यंत महत्वपूर्ण है। वे हमें यह याद दिलाते हैं कि हालात चाहे जैसे भी हों, हमारी संवेदनशीलता और संघर्षशीलता हमें सफलता की ओर ले जा सकती हैं।
तो आप भी अपने सपनों की प्राप्ति के लिए मेहनत करें, किसी भी परिस्थिति में हार न मानें, और सपनों को पूरा करने का संकल्प करें। क्योंकि सपनों की पूर्ति का सबसे महत्वपूर्ण रास्ता आपका खुद का संघर्ष और मेहनत है।
आपका सफल होने का सफर बेहद मुश्किल हो सकता है, लेकिन आपका संकल्प और मेहनत आपको उन सभी चुनौतियों का सामना करने में मदद करेगा। क्योंकि जब आपका संकल्प मजबूत होता है, तो आप किसी भी लक्ष्य को पाने में सफल हो सकते हैं।
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