लक्ष्य प्राप्ति में आने वाली बाधाएं | महात्मा बुद्ध की Motivational Hindi Story

लक्ष्य प्राप्ति में आने वाली बाधाएं
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लक्ष्य प्राप्ति में आने वाली बाधाएं: बहुत समय पहले की बात है, महात्मा बुद्ध एक गांव से होकर गुजर रहे थे, उस गांव में एक तालाब था। महात्मा बुद्ध और उनके सभी शिष्य तालाब के पास आ कर रुक गए, तभी वहां एक लड़का अपनी मां के साथ पानी भरने आया।

उस लड़के की नजर महात्मा बुद्ध पर पड़ी, वह महात्मा बुद्ध को पहले से ही जानता था। वह जानता था कि महात्मा बुद्ध बहुत ज्ञानी हैं और वे सभी के प्रश्नों का उत्तर देते हैं, सभी के समस्याओं का समाधान भी बताते हैं।

वह उनके पास गया और बोला, मैं बहुत बड़ा कुछ करना चाहता हूँ, लेकिन जब मैं कुछ करने का प्रयास करता हूँ, तो मैं उस कार्य को पूरा नहीं कर पाता हूँ मुझे समझ नहीं आता है कि मैं कहाँ गलती कर रहा हूँ। इसलिए मैं आपसे यह प्रश्न पूछना चाहता हूँ कि लक्ष्य को प्राप्त करते समय ऐसी कौन सी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता हैं? जिसको पार करने के बाद ही कोई व्यक्ति सफल हो सकता हैं?

महात्मा बुद्ध उस लड़के की ओर मुस्कुराते हुए देख कर बोले, “जब तक तुम अपने लक्ष्य की ओर कदम नही बढ़ाते हो, तब तक सफलता से जुड़ा हर प्रश्न, हर उत्तर अधूरा है।” महात्मा बुद्ध ने इस उपदेश को समाप्त कर अपने सभी शिष्यों के साथ आगे की यात्रा जारी रखी। उस लड़के ने भी अपनी माँ के साथ घर लौटने का निर्णय किया और घर वापस आ गया।

Success-Mahatma-Buddha

अगले दिन जब वह लड़का अपनी माँ के साथ वापस तालाब पर पानी भरने आया, तो उसने देखा कि कल तालाब में जो कमल की केवल कलियाँ थीं, वे आज पूरी तरह से खिल चुकी थीं। उसकी माँ को इस पर यकीन नहीं हो रहा था। उसने अपनी माँ से कहा, “बे-मौसम, इतने सारे फूल का एक साथ खिलना, ऐसी घटना तो मैंने आज तक नहीं देखी। यह सब महात्मा बुद्ध के यहां आने के कारण हुआ है, अर्थात यह उनका ही प्रभाव है।”उस समय वह लड़का सोचने में खो गया।

उसने तुरंत ही तालाब से एक कमल का फूल तोड़ा और मन में यह सोचना शुरू किया कि यदि तालाब की यह खूबसूरती महात्मा बुद्ध के प्रभाव के कारण है, तो मुझे महात्मा बुद्ध से जरूर मिलना चाहिए। शायद वह मुझे कुछ सीखने के लिए संकेत देना चाह रहें हैं। सोचते-सोचते, उसने तय कर लिया कि वह महात्मा बुद्ध से जरूर मिलेगा, और महात्मा बुद्ध की वो आवाज मन में गूंज रही थी: “तुम लक्ष्य की ओर कदम नहीं बढ़ाओगे तब तक सफलता से जुड़ा हर प्रश्न, हर उत्तर, अधूरा है।”

तब उस लड़के ने कमल का फूल एक मटके में रख लिया और उसने यह निश्चय किया कि वह महात्मा बुद्ध से मिलकर ही रहेगा। उसके मन में जो भी प्रश्न थे, उनके उत्तर जानने का उसने निश्चय किया।

उस लड़के ने तुरंत ही अपनी मां से कहा, “मैं महात्मा बुद्ध से मिलने जा रहा हूं। वे बहुत आगे तक नहीं गए होंगे। अगर मैं जल्दी-जल्दी चलूं, तो एक दिन में ही मैं उन तक पहुंच जाऊंगा और एक-दो दिन में मिलकर घर वापस आ जाऊंगा।”

उसकी मां ने उसे बहुत समझाने की कोशिश की, लेकिन वह लड़का नहीं माना और तुरंत ही सफर की तरफ निकल पड़ा।

वह मार्ग पर बहुत ही तेजी से चल रहा था। बहुत कम समय में ही उसने अपने गांव को पार कर लिया। चलते-चलते उसकी थकान बढ़ रही थी, जिससे उसकी रफ्तार कम होने लगी थी। लेकिन उसने हार नहीं मानी, धीरे-धीरे चलता रहा और चलते-चलते जंगल में पहुंच गया।

जंगल को देखकर उसके मन में डर उत्पन्न हुआ। उसने सोचा कि मैंने आज तक जंगल पार नहीं किया है और इस जंगल में कई जंगली जानवर भी हैं। यदि मैं रास्ता भटक गया तो मैं महात्मा बुद्ध तक कभी नहीं पहुंच पाऊंगा। और यदि मैं किसी गलत रास्ते पर चला गया तो मुझे कम से कम दो दिन और लगेंगे। महात्मा बुद्ध तक पहुंचने के लिए, और यदि वह मुझसे बहुत आगे निकल जाते हैं तो मुझे बाकी रास्ते भी पता नहीं चल पायेंगे, और फिर मैं उनसे कभी नहीं मिल पाऊंगा। वह लड़का इसी सोच-विचार में डूबा हुआ था, तभी उसने देखा कि उसी रास्ते से एक घोड़े की सवारी आ रही थी।

लड़के ने उस घुड़सवार से कहा, “क्या तुम मुझे जंगल पार करवा दोगे। मुझे महात्मा बुद्ध से मिलना है और मुझे ये कमल उन्हें देना है।” इस पर घुड़सवार ने कहा, “मैं आपको जंगल पार नहीं करवा सकता, लेकिन मैं आपकी मदद कर सकता हूँ। यह कमल वाला मटका मैं महात्मा बुद्ध तक पहुंचा सकता हूँ।”

उस लड़के ने फिर सोचा और विचार किया, “यदि मैं पैदल चलूं, तो बहुत समय लगेगा और शायद मैं महात्मा बुद्ध से मिल न पाऊं। लेकिन यदि मैं इस मटके को घुड़सवार को दे दूं, तो वह बहुत जल्दी महात्मा बुद्ध तक पहुंचा देगा। इससे मेरा काम आसान हो जाएगा और मैं जो मन में चाहता हूँ वो भी पूरा हो जायेगा।”

काफी समय सोच-विचार करने के बाद, वह निर्णय लिया कि वह मटके वाला कमल घुड़सवार को दे देगा। वह उस मटके को उस घुड़सवार के हाथों सौंपने ही वाला था की तभी उसे याद आया कि इस कमल को महात्मा बुद्ध तक पहुंचाने के पीछे उसका क्या उद्देश्य था। वह किस उद्देश्य से यह कमल महात्मा बुद्ध के पास ले जा रहा है।

तभी उसके मन में एक और विचार आया कि अगर मैं यह मटके वाला कमल लेकर महात्मा बुद्ध तक नहीं पहुंचा, तो मेरे प्रश्नों का उत्तर मुझे कैसे मिलेगा, और हो सकता है कि मेरे जीवन में यह एक ही मौका है जिससे मैं महात्मा बुद्ध से मिल सकता हूं और अपने सभी प्रश्नों के उत्तर जान सकता हूं। यह सोचकर उसने निर्णय लिया कि वह यह मटका नहीं देगा।

मैं इसे खुद ही उन तक पहुंचाऊंगा। काफी कुछ सोचने के बाद, वह घुड़सवार से कहता है, “मैं यह मटका खुद ही उन तक पहुंचाना चाहता हूं। क्योंकि उनसे मिलना मेरे लिए बहुत जरुरी है। मेरे मन में कई प्रश्न हैं जिनके उत्तर मुझे उनसे जानना है। इसलिए मैं यह मटका खुद ही उन तक ले जाऊंगा। आपका बहुत-बहुत धन्यवाद, आपने मेरे लिए इतना समय निकाला। कृपया मुझे आगे का रास्ता बता दीजिए, मैं उसी रास्ते से चला जाऊंगा।”

घुड़सवार ने उसे आगे का रास्ता बता दिया, तो वह उसी रास्ते पर चलने लगा। अब शाम होने की बेला थी और उसके मन में अनेक सवाल उठने लगे। शाम के समय अगर वह जंगल में भटक गया, तो क्या होगा? महात्मा बुद्ध से कैसे मिल पाएगा? और अगर मिल न पाया तो क्या उसकी यात्रा बेकार हो जायेगी? ऐसे सोचते हुए उसे पछतावा होने लगा, वो मन ही मन खुद को कोसने लगा और कहने लगा “शायद अच्छा होता अगर मैंने इस मटके को उस घुड़सवार को सौंप दिया होता तो, इससे कम से कम वह महात्मा बुद्ध तक पहुंचाकर वो अपने घर भी लौट जाता”। उस लड़के के मन में तरह-तरह के विचार घूम रहे थे, कि ऐसा होता तो क्या होता? वैसा होता तो क्या होता? अगर रास्ता भटक गया तो क्या होगा?

जब उस लड़के की नजर कमल की ओर पड़ी, तो उसे महात्मा बुद्ध की याद आई। महात्मा बुद्ध के चेहरे पर उसने एक ठेराव और अप्रतिम शांति देखी थी। उनकी मुस्कान ने उसमें प्रेरणादायक ऊर्जा का संचार किया था। उसने समझा कि उसकी यात्रा का उद्देश्य न केवल महात्मा बुद्ध से मिलना है, बल्कि उनसे बहुत कुछ सीखना भी है। उसके मन में महात्मा बुद्ध से मिलने की तीव्र इच्छा फिर से जागृत हो गई, और वह अब निश्चित था कि वह अपने मार्ग पर आगे बढ़ेगा। जब उसने जंगल की सीमा को पार कर लिया, तो उसने महसूस किया कि जब-जब वह अपने उद्देश्य को याद करता है, तो रास्ते की मुश्किलें कम होती जा रही थी। यह घटना सिर्फ उस लड़के की कहानी नहीं है, बल्कि यह हर व्यक्ति के साथ होती है। जब हम अपने उद्देश्य को याद रखते हैं, तो हमारे मार्ग में आने वाली रुकावटें छोटी पड़ जाती हैं, और हम उन्हें आसानी से पार करके अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते हैं।

इसके बाद उस लड़के को यह अहसास हुआ कि उसे अपना उद्देश्य याद रखना है और धीरे-धीरे आगे बढ़ते रहना है। उसने सभी चिंताओं को छोड़ दिया और आगे बढ़ता गया। हालांकि, चलते-चलते वह काफी थक चुका था और जब उसने जंगल को पार किया, तो उसे एक छोटी सी कुटिया दिखाई दी। उस कुटिया में एक सुंदर स्त्री रहती थी। वह लड़का थक चुका था और जोरों की प्यास महसूस कर रहा था। वह कुटिया में चला गया और वहां पर उस स्त्री से पानी मांगा।

उस स्त्री ने उस लड़के को पानी पिलाया, और लड़के से पुच वो इस तरह क्यों भटक रहा है तो उस लड़के ने उत्तर दिया की वो महात्मा बुद्ध के ज्ञान की अभिलाषी है और वो उनसे मिलना चाहता हैं। तभी उस स्त्री ने लड़के से पूछा, “आखिर तुम महात्मा बुद्ध से मिलना क्यों चाहते हो?”

तब वह लड़का कहता है, “मेरे मन में बहुत सारे प्रश्न हैं जिनका उत्तर जानने के लिए मैं उनसे मिलने जा रहा हूं।” वह लड़का अपनी बातें कह रहा था, जबकि दूसरी ओर उस लड़की के मन में उस लड़के के प्रति प्रेम जाग रहा था। मन ही मन वह लड़की उसे पसंद करने लगी थी। वह लड़की उस लड़के को रोकना चाहती थी और उससे कहती हैं, “आज तुम यहीं रुक जाओ। वैसे भी शाम होने का है और बहुत जल्द रात भी होने वाली है। ऐसे में तुम कहां जाओगे? इससे अच्छा है कि आज रात तुम यहीं रुक जाओ।”

उस लड़की की बातों को सुनकर, वह लड़का समझ चुका था कि वह उसे पसंद करने लगी है। वह लड़का उस लड़की की सुंदरता को मन ही मन निहारते हुए सोच रहा था, “मैं इस से विवाह कर लूं तो मेरा जीवन संभल जाएगा और जीने में आनंद भी आएगा।”

उस लड़के ने सोचा, “ऐसे भी, मैं आज रात महात्मा बुद्ध से मिल नहीं पाऊंगा तो क्यों न मैं यही पर रुक जाऊं।” फिर उसने जवाब देते हुए कहा, “मैं कुछ देर में सोच कर बताता हूँ।”

लड़का इस विषय में सोचता रहा, तब तक उसके मन में फिर से महात्मा बुद्ध की वो बात याद आई। उसे अहसास हुआ कि मैं इतनी दूर से यहां क्यों आया हूँ, और उसने मन ही मन सवाल किया कि क्या मैं यहां इतनी दूर इस लड़की के साथ मित्रता, प्रेम अथवा विवाह करने आया हूँ। नहीं, नहीं, यह मेरी प्रेमिका ये नहीं बन सकती। क्या भरोसा आज को इसका मन मेरे पर आया हैं कल किसी और पर आ जाएं।

लड़के ने तुरंत ही उस कमल की ओर देखा, और उसे उसका उद्देश्य याद आ गया। उसने जल्दी से निर्णय लिया कि वह आगे अपनी लक्ष्य की और कूँच करेगा। उसने लड़की को मना किया और अपने मार्ग की और प्रस्थान किया।

जब वह आगे की ओर बढ़ने लगा, तभी उसे अपने निर्णय पर अफसोस होने लगा। उसे ऐसा लग रहा था कि अगर मुझे महात्मा बुद्ध ना मिले तो उसके हाथ से वह लड़की भी चली जाएगी।

उसे इस बात का बहुत दुख था, फिर भी वह आगे बढ़ता गया। कुछ दूर जाने के बाद जब उसका मन शांत हुआ, तब उसे यह एहसास हुआ कि यदि वह उस स्त्री के पास रुक जाता तो वह अपने उद्देश्य में कभी सफल नहीं हो पाता और उसकी यह यात्रा बेकार हो जाती। उसको तब एक और बात का स्मरण हुआ कि “कोई भी वस्तु या व्यक्ति जो हमें अपने उद्देश्य से भटकाने का प्रयास करे, उससे तुरंत ही दूरी बना लेनी चाहिए, और हमें अपना उद्देश्य याद रखना चाहिए।

वह लड़का सोच-विचार करते हुए आगे बढ़ रहा था, तभी मार्ग में एक बुजुर्ग आदमी से मिला। उसने बुजुर्ग से पूछा, “बाबा, क्या आपने इस मार्ग से महात्मा बुद्ध को जाते हुए देखा है? पिछले गांव में किसी ने बताया कि वह इसी मार्ग से आगे बढ़े थे। क्या आप बता सकते हैं वह किस तरफ गए हैं?”

उस बुजुर्ग व्यक्ति ने उस लड़के से कहा, “तुम्हें कोई गलतफहमी हुई है, इधर से कोई भी ऋषि-मुनि नहीं गए हैं। हो सकता है कोई और मोड़ हो जिस पर तुमने ध्यान नहीं दिया हो, और उस रास्ते से वे मुनि चले गए हों।”

यह सुनकर वह लड़का घबरा गया, अभी कुछ ही घंटे पहले ही उसने उस बस्ती को पार किया था। अगर वह वापस गया तो काफी समय लग जायेगा, और अंधेरा भी होने को है। उसके रहने के लिए कोई जगह भी नहीं है, और ना ही उसके पास कुछ खाने के लिए बचा है। इससे उसकी पूरी यात्रा बेकार हो जाएगी।

मुझे तो लगता था कि मैं महात्मा बुद्ध से मिल पाऊंगा, लेकिन अब लगता है कि उनसे मिलना इस जन्म में तो संभव नहीं है। इस प्रकार के कई विचार उस लड़के के मन में उमड़ने लगे थे।

वह लड़का खुद पर संदेह करने लगा, जैसे ही उसके मन में इस प्रकार के विचार उत्पन्न हुए, मानो उसके पैरों में किसी ने बेड़ियां डाल दी हो।

वह बार-बार केवल एक ही बात सोच रहा था। आखिर मुझे वह क्यों नहीं दिखाई दिया? मैं बार-बार एक ही गलती क्यों करता हूं? मुझसे इतनी बड़ी गलती कैसे हो गई? वह लड़का सर पकड़कर वही बैठ गया, कुछ देर तक तो उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था।

तभी उस लड़के को उसकी मां की बात याद आईं कि “हर गलती में कोई न कोई सीख छुपी होती है, जो हमारे जीवन को और भी बेहतर बनाती है।

और इस बात को सोचते ही उसका मन पूरी तरह से शांत हो चुका था, और वह लड़का बार-बार अपने मन में एक ही बात दोहरा रहा था कि हर गलती में सीख छुपी होती है, और वह हमें और बेहतर बनाने आती है। उसने अपनी गलती को स्वीकार किया, “हाँ, मुझसे गलती हो गई है।” मैं जल्दीबाजी में बिना सोचे समझे मार्ग में आगे बढ़ रहा था। जैसे-जैसे लोगों ने कहा, उसी तरह से वह आगे की ओर बढ़ता गया। उसकी गलती स्वीकार करते ही उसका मन शांत हो गया, उसकी आशा अब निराशा में बदल चुकी थी।

वह एक पेड़ के नीचे बैठा हुआ था। तभी उसने देखा कि कुछ जानवर नदी से पानी पी रहे थे। यह सब देखकर उस लड़के को याद आया कि जब वह पहली बार महात्मा बुद्ध से मिला था, तो वह पानी के पास मिला था और महात्मा बुद्ध के साथ उनके कई शिष्य भी थे। सभी को पानी की जरूरत तो पड़ेगी ही। इस बात पर उस लड़के को तुरंत यह समझ में आया कि बुद्ध भी उसी रास्ते से भ्रमण कर रहे होंगे। तभी उसने सोच विचार कर तय किया कि वापस जाने से अच्छा हैं, क्यों न मैं नदी के किनारे किनारे होते हुए आगे की ओर बढ़ता रहूं।

ऐसा सोचते ही उसने तुरंत रास्ता बदल दिया और अब नदी के रास्ते आगे बढ़ता गया। जैसे-जैसे वह आगे बढ़ता गया, उसका मन और भी हल्का होता गया, इस अनुभव के साथ उसने महसूस किया कि जब मन शांत होता है, तो हमारा मन बहुत हल्का हो जाता है, हम जल्दबाजी नहीं करते और न ही किसी में या खुद में कमियां ढूंढ़ते हैं। हमारी बुद्धि पहले से बेहतर काम करने लगती है।

उसने यह भी महसूस किया कि खुद से शिकायत करना एक बहुत बड़ी कमी है जो हमें दुख, और पीड़ा देती है। चलते चलते, उसके मन में यह विचार आया कि यदि वह अपने गांव में ही रुक जाता तो यह सारे अनुभव कभी नहीं होते।

ऐसा सोचते-सोचते, वह मार्ग में आगे बढ़ता गया। तब उसे महात्मा बुद्ध के कुछ शिष्यों पर नजर पड़ा। उन्हें देखकर वह बहुत खुश हुआ। उनके शिष्यों को देखकर वह तेजी से आगे बढ़ा, और अंत में महात्मा बुद्ध तक पहुंच गया। जब वह महात्मा बुद्ध से मिला, तो उन्हें प्रणाम किया और तुरंत ही उन्हें कमल का फूल भेंट किया।

महात्मा बुद्ध उस कमल के फूल को अपने हाथों में लेते हुए बोले बहुत सुंदर यह कमल पूरी तरह खिल चुका हैं।

दो दिन पहले ही तुमने मुझसे पुछा था, कि लक्ष्य को पार करने के लिए कौन सी कठिनाइयों को पार करना पड़ता हैं। तुम्हारा ये धैर्य और मुस्कान देख कर लग रहा हैं तुमने रास्ते में बहुत सारे अनुभव को इकट्ठा कर के अपने जीवनरूपी पुस्तक में संजोकर रख लिया है।

इस पर वह लड़के ने रास्ते में घटित सारी बातें महात्मा बुद्ध को बता दी। तब महात्मा बुद्ध बोले मैं तुम्हारे सारे सवालों का उत्तर दूंगा।

लक्ष्य प्राप्ति में आने वाली बाधाएं:-

तब बुद्ध कहते हैं, “बिना कोशिश के हर चीज अधूरी है। जब इंसान किसी लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए रास्ते पर चलता है, तो सबसे पहले अपने अनुभव से ही सीखता है। जब धीरे-धीरे उसकी बुद्धि बढ़ने लगती है, तो वह दूसरों के भी गलतियों से सीखने लगता है।” जीवन में लक्ष्य प्राप्ति के लिए एवं किसी उद्देश्य में सफलता प्राप्त करने के लिए हमें उस रास्ते पर चलना पड़ेगा तभी हम सफलता प्राप्त करने की रहस्य को जान पाएंगे।

हर लक्ष्य को हासिल करने में कुछ चुनौतियाँ आती हैं, और इनका समाधान करने के बाद ही हम अपने लक्ष्य तक पहुंच सकते हैं। अगर तुमने उन चुनौतियों का सामना कर लिया तो तुम अपने लक्ष्य को हासिल कर लोगे।

1. अपने लक्ष्य की पहचान और उसके प्रति समर्पित रहो-

तुम जैसे कि यह कमल का फूल मुझ तक पहुंचाना चाहते थे और तुम्हारा उद्देश्य भी यही था, और तुमने यह समझ लिया था कि इस फूल को मुझ तक पहुंचाने के पीछे तुम्हारा वास्तविक उद्देश्य क्या था। हर बार जब तुम इस फूल को देखते थे, तो तुम्हें तुम्हारा उद्देश्य याद आ जाता था। तुमने अपने अनुभव से सीखा कि मंजिल तक कैसे पहुंचा जाए।

तुम्हारे मन में कई तरह के डर और संदेह उत्पन्न हो रहे थे, क्या पता तुम मुझ तक पहुंच पाओगे या नहीं? क्या पता इस जंगल को पार कर पाओगे या नहीं? तुमने कभी आज तक जंगल पार नहीं किया था और तुम्हें रास्ते में कई तरह की रुकावटें झेलनी पड़ी।

जब हमारे रास्ते में तरह-तरह की रुकावटें उत्पन्न होती हैं तो हमारा मन बाधित होने लगता हैं और हम अपने लक्ष्य से भटक जाते हैं, लेकिन जब हम अपना सारा ध्यान रुकावट से हटाकर अपने उद्देश्य पर लगाते हैं, तो सारी रुकावटें खुद ही छोटी लगने लगती हैं, और हम आसनी से पार करते जाते हैं।

2. सफलता की ओर: लक्ष्य को समर्पित

शुरुवात में सभी की यही समस्या होती है – वह नहीं समझ पाते है कि उन्हें जीवन में सफल होना आवश्यक क्यों है? क्यों वह कुछ करना चाहते हैं? उनके सामने बहुत सारी परेशानियां आती रहती हैं, और वे उन परेशानियों के सामने हार मान लेते हैं। लेकिन जैसे-जैसे आप आगे बढ़ते हैं और अपने लक्ष्य के प्रति पूर्णरूप से समर्पित होते हैं, तो सफलता की ओर बढ़ना आसान हो जाता है।

3. लक्ष्य हमेशा आंखों के सामने रखना

असली शक्ति इच्छाओं को पूरा करने में नहीं है, बल्कि यह है कि हम सबकुछ जानते हुए भी सही काम नहीं कर पाते है। अगर हम अपने उद्देश्य की ओर बढ़ते हुए किसी भ्रमजाल के आकर्षण का मोहपाश में फँसकर रुक जाते हैं, और हमारी लक्ष्य प्राप्ति की यात्रा अधूरी रह जाती है। जैसे कि इस यात्रा के दौरान तुमने हमेशा फूल को अपने साथ रखा, वैसे ही हमें उद्देश्य को हमेशा सामने रखना चाहिए। हमारा लक्ष्य हमेशा आंखों के सामने होना चाहिए, ताकि हमें निर्णय लेने में आसानी हो।

निष्कर्ष: समर्पण, संघर्ष और ध्यान – ये तीन गुण हमें जीवन में सफलता की दिशा में आगे बढ़ने में मदद करते हैं। हमारे लक्ष्य को समझना, समर्पित रहना और हमेशा आंखों के सामने रखना हमारे उस मार्ग को प्रशस्त करता है जो हमें सफलता की ओर ले जाता है। रास्ते में आने वाली रुकावटों को समझकर उनसे अनुभव इकत्रित कर, हम अपने उद्देश्य को प्राप्त कर सकते हैं। जीवन की यात्रा में, हमें सही निर्णय लेने की क्षमता, स्थिरता और अनुभव की आवश्यकता होती है। इन गुणों के साथ, हम सफलता की ओर बढ़ सकते हैं, और अपने सपनों को पूरा कर सकते है।

उम्मीद करते हैं आपको हमारी Motivational Hindi Story “लक्ष्य प्राप्ति में आने वाली बाधाएं” पसंद आयी होगी ।

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