एक ईमानदार युवक के लालच की Prernadayak Kahani
हमें जीवन-भर अच्छाई के रास्ते पर चलना चाहिए । लेकिन कभी-कभी जब हमारे जीवन में मुसीबत आ जाती है, तब हमारे मन में बुरा विचार आ जाता है और हम गलत रास्ता पकड़ लेते हैं । और हमारे इसी फैसले से हमारी सारी अच्छाइयों पर पानी फिर जाता है । शुरू करते हैं ऐसी ही एक ईमानदार युवक के लालच की Prernadayak Kahani
एक ईमानदार युवक के लालच की Prernadayak Kahani
एक युवक था । जो की बहुत ज्यादा ईमानदार था । वह एक दुकान में काम करता था । वहां पर एक सेठ थे, जो चाहते थे कि वह काम में कुछ हेर-फेर करें, ताकि उनका ज्यादा मुनाफा हो । लेकिन उस युवक ने अपने सेठ की बात नहीं मानी और इसी बात से गुस्सा होकर सेठ ने उसे नौकरी से निकाल दिया।
वह युवक यूँ ही सड़क पर चल रहा था और सोच रहा था । अब वह आगे क्या करेगा, बिना नौकरी के उसका जीवन कैसे बीतेगा ।
एक बुजुर्ग बाबा तीन थैले लेकर चल रहे थे । तभी उनकी नजर उस युवक पर पड़ी, उसे देखकर वह बोले- बेटा, मुझे यह थैले दूर ले जाने हैं । क्या तुम एक थैला पकड़ कर मेरे साथ चल सकते हो । मैं तुम्हें इस काम के लिए तीन तांबे के सिक्के दूंगा ।
यह बात सुनकर वह युवक मन ही मन ईश्वर को धन्यवाद देने लगा और सोचने लगा, कि आज ही मेरे सेठ ने मुझे काम से बाहर निकाला है और अभी मुझे यह काम मिल गया । उसने तुरंत ही कहा- हाँ, क्यों नहीं बाबा जी! आप मुझे एक थैला दे दीजिए ।
बाबा ने सबसे बड़ा थैला उस युवक को दे दिया और दोनों साथ-साथ चलने लगे । चलते-चलते बाबा उस युवक पर बराबर नजर बनाए हुए थे, कि कही वह उनका थैला लेकर भाग न जाए। युवक ने यह महसूस कर लिया था, कि बाबा मुझ पर शक कर रहे हैं इसलिए उससे रहा नहीं गया और उसने बोला- बाबा आप निश्चिंत हो जाइए । मैं आपके थैले को लेकर कहीं नहीं भागने वाला क्योंकि अभी-अभी ईमानदारी के चक्कर में ही मेरे सेठ ने मुझे नौकरी से निकला है तो आप मुझ पर शक ना करें और आराम से मेरे साथ चलते रहे ।
युवक की यह बात सुनकर बाबा को थोड़ी तसल्ली हुई । रास्ते में चलते-चलते एक नदी आई । जिसे पार करके उन्हें जाना था तभी बाबा ने कहा- सुनो बेटा! तुम यह दूसरा थैला भी ले लो, मुझे नहीं लगता कि मैं इसे ले जा सकता हूंँ । कहीं यह मुझसे नदी में गिर गया, तो तुम इसे भी उठा लो । मैं तुम्हें इस थैले के भी तीन तांबे के सिक्के और दे दूंगा ।
युवक ने बाबा की बात मान ली और उसने एक थैला और उठा लिया ।वह दोनों आहिस्ता-आहिस्ता नदी को पार करते गए । नदी को पार करने के बाद, अब दोनों आगे के सफर के लिए निकले ही थे, कि युवक ने पूछा- बाबा ! यह दोनों थैले इतने भारी है इसमें आखिर है क्या? बाबा बोले- इस बड़े वाले थैले में तांबे के सिक्के हैं और जो थोड़ा छोटा थैला है उसमें चांदी के सिक्के हैं । युवक बोला- अच्छा! यह काफी भारी है, हम कब तक पहुंच जाएंगे ।
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बाबा बोले- बेटा बस आखरी पड़ाव पार करना है । अब एक पहाड़ आने वाला है, बस हमें उसे पार करना है।
अब पहाड़ भी आ चुका था । बाबा फिर बोले- बेटा, अब मैं बहुत ज्यादा थक गया हूंँ । नहीं लगता कि मैं इस पोटली को लेकर कर सकता हूंँ इसलिए तुम यह तीसरी पोटली भी ले लो । इसके बदले में तुम्हें तीन तांबे के और सिक्के दे दूंगा ।
युवक ने बाबा की बात मान ली और तीनों थैलो को लेकर पहाड़ पर चढ़ने लगा और बाबा भी आहिस्ता-आहिस्ता उसके साथ चलने लगे ।
पहाड़ पर चढ़ते-चढ़ते अचानक वह युवक सोचने लगा, कि जरूर इस तीसरे थैले में सोने के सिक्के होंगे । वह काफी देर तक सोने के बारे में सोचता रहा और सोचते-सोचते उसके मन में विचार आने लगे कि अभी मैं पहाड़ पर हूंँ और यह बाबा मेरा क्या ही कर लेगा । इससे बढ़िया है मैं यह तीनों थैले लेकर भाग जाता हूँ, इससे मेरी पूरी जिंदगी बेहतर हो जाएगी । ईमानदारी से तो मुझे जीवन-भर कुछ नहीं मिला, आज ईश्वर ने मुझे मौका दिया है ।
ऐसा सोचकर युवक तीनों थैलो को लेकर भाग गया और भागते भागते अपने घर पर ही रुका । घर पर आते ही उसने सबसे पहले बड़ा थैला खोला जिसमें पत्थर ही पत्थर थे । फिर उसने उससे छोटा थैला खोला, उसमें भी पत्थर थे । फिर अंत में उसने तीसरा थैला भी खोल दिया और तीसरे थैले में भी पत्थर निकले । यह देखकर वह अचंबे में रह गया, कि इन थैलो में पत्थर थे तो बाबा ने मुझसे झूठ क्यों बोला ? गुस्से में जैसे-ही उसने छोटे वाले थैले को नीचे फेंका तो उसमें से एक चिट्ठी निकली ।
उसने उस चिट्ठी को उठाकर पढ़ा जिसमें लिखा था । मैं कोई बाबा नहीं, मैं एक राजा हूंँ । और मेरी कोई संतान नहीं है इसीलिए मैं अपने लिए एक ऐसा उत्तराधिकारी ढूंढ रहा था, जो कि मेरे बाद मेरे राज्य को संभाल सके । यदि तुम इन तीनों थैलो को लेकर भाग चुके हो, तो तुम मेरे उत्तराधिकारी बनने के लायक नहीं हो । मुझे अपने राज्य के लिए एक ईमानदार राजा की जरूरत है ।
चिट्ठी में लिखी बातें सुनकर वह युवक अफसोस करने लगा । वह सोचने लगा कि जीवन-भर मैंने ईमानदारी की जिंदगी जी लेकिन मेरी एक गलती के कारण, मेरी ईमानदारी का कोई मोल ना रहा ।
वह युवक विलाप करने लगा और उसने कसम खाई, जीवन में कभी-भी अपने मन में बईमानी का कोई विचार नहीं आने देगा ।
इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि जब हमें कोई लालच सामने दिखाई देता है, तो हमारा मन कैसे बेईमान हो जाता है । इसलिए कभी लालच मत करो, क्योंकि सिर्फ एक बुराई और आपकी सारी अच्छाई पानी पानी हो जाएगी ।
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