विक्रम बेताल की पच्चीसी कहानियों का संग्रह | Vikram Betal Stories in Hindi

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अगर आपने विक्रम बेताल की कहानियां पढ़ी होंगी तो विक्रम और बेताल का नाम सुनते ही आपके आंखो के सामने अंधेरी रात हाथ में तलवार लिए बेफौक राजा विक्रमदित्य और उनके सामने भयानक पेड़ पर लटका लाल आंखो और बड़े-बड़े नाखूनों वाला बेताल ये दृश्य  जरूर उभर जाता होंगा।

एक सवाल आपके मन में जरुर आती होंगी क्या विक्रम बेताल की कहानी सच थी तो आइए जानते हैं इस कहानी का सच क्या है? कौन थे राजा विक्रमदित्य? कौन था बेताल? क्यों गए थे राजा विक्रमदित्य अंधेरी रात में बेताल को लाने?

विक्रम बेताल की कहानियां

प्राचीन काल में विक्रमदित्य नामक एक राजा थे। कहा जाता हैं की वे अपने साहस, पराकर्म और शौर्य के लिए पूरे दुनिया में मशहूर थे। ऐसा भी कहां जाता हैं की ये अपने प्रजा के सुख-दुख को जानने के लिए रात में भेष बदल कर अपने नगरों में घुमा करते थे। ये दयालु किस्म के राजा थे अपने प्रजा के दुखों को सुना करते थे और दूर भी किया करते थे।

महाराजा विक्रमदित्य और बेताल के किस्सों पर बहुत सारे ग्रंथ लिखे गए हैं राजा विक्रमदित्य और बेताल के बारे में लिखी बेताल पच्चीसी और सिहासन बातिसी नामक ग्रंथ आज भी लोकप्रिय है जो इस बात को साबित करती हैं की ये कहानी एक सच है।

बेताल पच्चीसी नामक ग्रंथ को महादेव कवि सोमदेव भट्ट ने पच्चीस साल पूर्व लिखी थी जिन्हें बेताल भट्ट के नाम से भी जाना जाता हैं सोमदेव भट्ट राजा विक्रमदित्य के नौ रत्नों में से एक थे।

एक दुष्ट तांत्रिक अपने तांत्रिक सिद्धियां बढाने के लिए एक शैतानी अनुष्ठान करता हैं उसको पुरा करने के लिए 32 लक्षण वाले ब्राह्मण पुत्र की बलि देनी होती हैं। वह तांत्रिक एक ऐसे ही बच्चे की तलाश करता हैं और उसको ऐसा बच्चा मिल भी जाता हैं वह तांत्रिक बलि देने के लिए उस ब्राह्मण के पुत्र का पीछा करता हैं। वह बच्चा अपना बचाव करते करते एक घने जंगलों में पहुंच जाता हैं। जंगल में उस बच्चें को एक प्रेत मिलता हैं जिससे वो सारी बातें बताता हैं प्रेत को उस बालक पर दया आती हैं और वह उस तांत्रिक से बचने की शक्तियां देता हैं और कहता है अगर तुम किसी वृक्ष पर लटक जाओगे तो तांत्रिक तुम्हारा कुछ नहीं कर पायेगा और वही बालक बेताल होता हैं। उस प्रेत के मदद करने के वजह से तांत्रिक उस बालक को मार नही पाता हैं और उसका शैतानी अनुष्ठान अधूरा रह जाता हैं।

उस शैतानी अनुष्ठान को पुरा करने राजा विक्रमदित्य की शौर्य और पराकर्म की गाथाओं को सुनने के बाद एक जाल रचता हैं। 

राजा विक्रमदित्य का दरबार प्रतिदिन लगता था और वह तांत्रिक एक भिक्षु का रूप धारण कर प्रतिदिन उनके दरबार में आता था और एक फल देकर चला जाता था। राजा उस फल को कोषाध्यक्ष को दे देते थे वह ले जाकर एक कमरे में रख देता था। वह तांत्रिक भिक्षु प्रतिदिन उनके दरबार में आता और फल देकर चला जाता। ऐसा करते हुए उसे 10 साल हो गए थे। 

एक दिन जब वह तांत्रिक भिक्षु राजा को फल देता है तभी उनका एक पालतू बंदर राजा के पास आता है तो उस दिन राजा उस फल को कोषाध्यक्ष न देकर उस बंदर को खाने के लिए दे देते है जैसे ही वह बंदर उस फल को खाने के लिए तोड़ता है उसमे से एक बहुमूल्य रत्न निकलता है जिसे देखकर सभी दरबारी हैरत में पड़ जाते है। राजा अपने कोषाध्यक्ष से सभी फलों के बारे में पूछते हैं उसके बताने पर उस कमरे में जाते हैं जहां कोषाध्यक्ष प्रतिदिन फल को ले जा कर रखता था। राजा जब उस कमरे में पहुंचते हैं तो उनकी आंखे चौकाचंध हो जाती हैं क्योंकी वह पुरा कमरा ही बहुमूल्य रत्नों से भरा पड़ा रहता हैं।

अगले दिन जब तांत्रिक भिक्षु राजा के दरबार में फल ले कर आता है और राजा को देने लगता हैं तब राजा उससे कहते हैं की मैं इसे तब तक स्वीकार नही करूंगा जब तक आप मुझे ये नही बताते की आप मुझें इतना कीमती भेट अर्पित क्यों करते है।

तब तांत्रिक भिक्षु राजा को दरबार से अलग एकांत जगह चलने की आग्रह करता हैं। जब राजा दरबार से एकांत स्थान पर आते हैं तो बताता है कि मुझे एक मंत्र साधना करनी हैं और उस साधना के लिए मुझे एक वीर पुरुष की जरूरत होंगी और आपसे बड़ा वीर कोई दूसरा मुझे नहीं मिल सकता, इसलिए यह बहुमूल्य रत्न मैं आपको उपहार स्वरूप भेट करता हूं।

महाराज उसकी बातों में आ जाते है और उसकी मदद करने की वचन देते है। तब तान्त्रिक भिक्षु राजा को अगली अमावस्या की रात को पास के श्मशान में आने को कहता है जहां वह शैतानी अनुष्ठान करने की तैयारी कर रहा था।

अपने वादे के मुताबिक, महाराज जब आधी रात को  भिक्षु के बताए जगह पर पहुंचते हैं। भिक्षु राजा को देखकर बहुत खुश होता है और महाराज को पूर्व दिशा में जाने के लिए कहता है, जहां एक विशाल वृक्ष पर एक मुर्दा लटका हुआ है और उसे लेकर आने लिए कहता है। राजा भिक्षु की बातों को सुनकर शमाशन से जंगल की तरफ जानें लगते है मुर्दा को लाने के लिए।

उस अंधेरी रात हाथ में तलवार लिए बेफौक राजा विक्रमदित्य उस भयानक जंगल में पहुंचते हैं जहां उनके सामने भयानक पेड़ पर लटका लाल आंखो और बड़े-बड़े नाखूनों वाला एक मुर्दा दिखाई देता हैं। राजा अपनी तलवार से पेड़ से बंधी डोर को काट देते है। डोर कटते ही मुर्दा जमीन पर गिर जाता है और जोर-जोर से चीखने की आवाज आती है। जिस चीख को सुनने के बाद राजा को ऐसा लगा जैसे कोई जीवित व्यक्ति की चीखने की आवाज हों।

तब राजा उस पेड़ से गिरे मुर्दे के पास जाते है तब तक वह जोर-जोर हंसना शुरू कर देता हैं और फिर से पेड़ पर जाकर लटक जाता हैं तो राजा इस बात को समझ जाते है की इस मुर्दे पर बेताल प्रेत का भूत चढ़ा हुआ है। काफी कोशिश करने के बाद राजा विक्रम बेताल को पेड़ से उतार अपने कंधे पर टांग लेते हैं।

जब राजा विक्रम बेताल को पेड़ से उतार अपने कंधे पर टांग लेते हैं तो बेताल कहता है विक्रम से- मान गया मैं तू बहुत ही बड़ा पराक्रमी हैं मैं तुम्हारे साथ चलने के लिए राजी हूं लेकिन मेरी शर्त है तुम्हें पुरी रास्ते कुछ नहीं बोलना है अगर तुमने कुछ बोला तो मै उसी पेड़ पर फिर से लटक जाऊंगा। उसके बाद बेताल बोलता है मैं तुम्हें कहानी सुनाऊंगा और कहानी पुरी सुनने के बाद अंत में मैं तुमसे एक प्रश्न करूंगा अगर तुम्हें उस प्रश्न का उतर पता होंगा अगर तुमने उतर नही दिया तो मैं तुम्हें मार डालूंगा। अगर तुमने सही उतर दे दिया यानि तुमने बोल दिया तो तुम्हें छोड़कर दुबारा उस पेड़ पर लटक जाऊंगा।

राजा उसकी बात मान लेते है और दोनो वहां से शमशान की ओर तान्त्रिक के पास चल देते है। बेताल राजा को कहानियां सुनता है और राजा के सही उतर देने पर पेड़ पर चढ़ जाता हैं। इस तरह बेताल ने राजा को कुल पच्चीसी कहानियां सुनाई थी और राजा विक्रमदित्य ने बेताल को 25 बार पेड़ से उतार कर ले जानें की कोशिश की थी। इन्ही पच्चीसी कहानियों के संग्रह को विक्रम बेताल की पच्चीसी कहानियां कहा जाता हैं। 

अगर आप विक्रम-बेताल की पच्चीसी कहानियां के संग्रह को पढ़ना चाहते है तो इस कहानी के सभी भागों को जरुरी पढ़ें।

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