एक राजा और अछूत कन्या की कहानी | गौतम बुद्ध का ज्ञान
आज की कहानी का शीर्षक है, “राजा और एक अछूत कन्या”। हमने समाज में फैली हुई कुरुति, जिसमें लोग दूसरे व्यक्ति को अछूत समझते हैं उस मानसिकता पर कटाक्ष करने की कोशिश की है । आज की कहानी में हमने बताया है की ऐसी ही मानसिकता रखने वाले एक राजा को गौतम बुद्ध ने कैसे उसकी मानसिकता को मिटाया ।
एक राजा और अछूत कन्या की कहानी
यह उस समय की बात है जब लोग सोचते थे, कि नीची-जाति के लोग सिर्फ छोटा-मोटा काम ही कर सकते हैं । वह कला-संगीत या किसी बड़े पद पर काम करने के लायक नहीं है।
एक कन्या थी जो की संगीत मैं माहिर थी । वह बहुत अच्छे गीत गाती थी, लेकिन वह जहाँ भी जाती उसे यह कहकर निकाल दिया जाता कि वह अछूत है । लोगों की इस तरीके की बातें सुनकर, वह बहुत दुखी हो गई। उसने फैसला किया कि वह किसी दूसरे नगर में चली जाएगी, जहाँ पर कोई उसे जानता ना हो ।
उसने ऐसा ही किया वह किसी दूसरे नगर की ओर चली गई । उसने सोचा यह नगर मेरे लिए बिल्कुल नया है, यहां मुझे कोई भी अछूत कहकर नहीं बुलाएगा । मैं यहाँ के राजा के दरबार जाऊँगी और कोशिश करूँगी कि वह मुझे अपने राज दरबार में एक गायिका के रूप में रख लें ।
कन्या राजा के दरबार में पहुँची ।
कन्या राजा के दरबार में पहुँच गयी । कन्या को देखकर राजा ने पूछा
राजा बोला- कौन हो तुम कन्या ? यहाँ कैसे आना हुआ ?
लड़की बोली- महाराज मैं एक गायिका हूंँ और आपके समक्ष एक गीत प्रस्तुत करना चाहती हूंँ। यदि आपको मेरा गीत पसंद आए, तो आप अपने दरबार में मुझे एक गायिका के रूप में रख सकते हैं ।
राजा – ठीक है तो तुम हमें कुछ सुनाओ ।
कन्या ने राग दरबारी सुनाया । उसके सुर, तान और मुर्खिया इतनी लाजवाब थी कि ऐसा लगता था कि सीधा ईश्वर से संपर्क हो रहा है ।
राजा – लाजवाब कन्या, तुम तो संगीत में माहिर हो ।
प्रसन्न होते हुए उसने कहा ठीक है मैं तुम्हें अपने दरबार में एक गायिका के रूप में रखता हूँ ।
तुम्हें रहने के लिए एक कक्ष, खाने-पीने के लिए भोजन और प्रत्येक माह की आमदनी मिलती रहेगी ।
यह सुनकर कन्या बहुत खुश हुई और वह खुशी से अपना जीवन-यापन करने लगी थी।
राजा के दरबार में समारोह की घोषणा ।
काफी समय गुजर जाने के बाद राजा ने राज्य में समारोह की घोषणा करवा दी जिसमे आस पास के राजाओ को भी आमंत्रण भिजवा दिया गया ।
राजा अपने मंत्री से बोले – हमारे नगर में एक समारोह होने जा रहा है, इसमें आस-पास के नगर की सभी राजाओं को निमंत्रण दिया गया है । समारोह भव्य तरीके से लगना चाहिए । इस समारोह के बाद हम सभी को बुद्ध के दर्शन को भी जाना है ।
मंत्री ने कन्या के पास जाकर संदेश दिया कि हमारे नगर में समारोह हो रहा है सभी आस-पास के राजा आने वाले है तुम्हें गीत गाने है।
कन्या ने पूछा- क्या आप उन नगरों के नाम बता सकते है जहाँ के राजा आने वाले है।
मंत्री के एक-एक कर के नाम बताने शुरू किये, जिसमें वह नाम भी था यहाँ से वह आई थी।
यह सुनकर वह डर गई और सोचने लगी कि मेरे पिछले नगर के राजा ने अगर मुझे पहचान लिया और राजा को बताया कि मैं अछूत हूँ तो मुझे यहां से भी निकाल दिया जायेगा । हो सकता हैं राजा गुस्से में आकर मुझे दंड भी दे दें ।
समारोह का दिन आ गया
सभी नगरों के राजा दरबार में उपस्थित हो गए। नृत्य-नाटक बहुत से कार्यक्रम हुए सभी ने बहुत अच्छा प्रदर्शन किया । फिर उस कन्या के गीत गाने की बारी आई । उसने बहुत अच्छा गीत गाया, सभी राजाओं ने उसकी तारीफ की, तभी उस नगर के राजा जो कि जानता था कि वह अछूत कन्या है वह राजा से बोला ।
राजा तुम्हारे सभी कार्यक्रम बहुत ही अच्छे थे लेकिन गायन जैसी महान कला के लिए तुमने एक अछूत को रखा हुआ है ।
राजा बोला, “यह क्या कह रहे हो आप? वह अछूत है! मुझे तो पता ही नहीं था ।” राजा क्रोधित हो गए और कहने लगे, कितने वक्त से वो हमसे झूठ बोलती रही थी। उसे इसका दंड अवश्य मिलेगा ।
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मंत्री ने आकर बताया वह कन्या तो कहीं चली गई है । राजा ने अपने सैनिकों को उसका पीछा करने के लिए भेज दिया ।
कन्या कहाँ जा रही थी, उसको खुद भी पता नहीं था वह बस चल रही थी । वह नगर से जितना जल्दी हो सके दूर जाना चाहती थी, वह बहुत हॉफ रही थी । उसे बहुत प्यास भी लगी थी।
तभी बुद्ध भी अपने अनुयायियों के साथ उसी रास्ते से आ रहे थे । बुद्ध ने जब कन्या को डरी सहमी हालत में देखा तो वे कन्या से बोले ।
बुद्ध बोले- कन्या तुम बहुत थकी हुई दिखाई दे रही हो यह सामने कुआँ है । तुम यहां से जल पी लो और मुझे भी पिला दो ।
तभी वहाँ राजा भी उपस्थित हो गए ।
वे क्या देखते हैं कि वह कन्या भी उधर है और बुद्ध उससे पानी मांग रहे हैं यह देखते ही राजा बोल पड़े, “हे महात्मा! यह कन्या मेरे नगर की गायिका थी पर इसने हमसे अपनी पहचान छुपाई और जैसे ही हमें पता चला कि यह एक अछूत है तो यह वहाँ से भाग गई । कृपा करके आप इस अछूत के हाथ से जल न पिए, मैं आपकी सेवा के लिए केवड़े का जल लाया हूंँ, आप इसे ग्रहण करें ।”
बुद्ध राजा से बोले- मुझे यह केवड़े का जल नहीं चाहिए!
इसके बाद बुद्ध ने कन्या से कहा– कन्या क्या तुम मुझे, इस कुएँ से निकला हुआ जल पिला दोगी ?
कन्या को बड़ा आश्चर्य हुआ क्योकि बुद्ध पहले इंसान थे जिन्होंने कन्या को अछूत कहकर नहीं बुलाया बल्कि उसे पानी पिलाने को कहा । इसके बाद कन्या ने कुए से जल बाहर निकाला लेकिन कन्या को थोड़ा संकोच हो रहा था कि क्या ये सही है एक सन्यासी का एक अछूत के हाथ से जल पीना ।
बुद्ध कन्या के मन का भाव समझ गये किन्तु फिर भी वे कन्या से बोले, “क्या हुआ पुत्री? अब संकोच कैसा?”
कन्या ने हाथ जोड़कर बुद्ध से कहा, “महात्मन आप तो बड़े ज्ञानी है। क्या आपको शोभा देगा एक अछूत के हाथ से पानी पीना”
बुद्ध थोड़ा मुस्कुराये और कन्या से बोले – “संसार में कोई भी अछूत नहीं है और अगर कोई अछूत है तो वो इंसान की वह मानसिकता है जो उसके अंदर भेदभाव को जन्म देती है । इसी मानसिकता के लोगो के कारण आज तुम खुद भी अपने आप को अछूत समझने लगी हो । असल में तुम अछूत नहीं हो बल्कि ऐसी मानसिकता रखने वाले लोग अछूत है।”
बुद्ध का यह व्यवहार देखकर राजा थोड़े लज्जित हो गए । राजा के मन का मैल बुद्ध के ज्ञान से धुल गया । राजा हाथ जोड़कर बुद्ध के पैरो में गिर पड़ा और बुद्ध से बोला ।
राजा बुद्ध से बोला – आप ठीक कहते हो, मैंने इस कन्या की कला को नहीं देखा कि यह कितनी गुणवान गायिका है बल्कि मैंने सिर्फ उसकी जाति देखी कि यह अछूत है। मैं बहुत बड़ा महाअज्ञानी हूंँ ।
इसके बाद कन्या ने बड़ी प्रसन्ना से बुद्ध को जल दिया और बाद मे अपनी प्यास बुझाई ।
इसके बाद बुद्ध ने राजा से कहा- इस कन्या से इसके जीने का साधन मत छीनो, इसे पुनः अपने नगर में गायिका के स्थान पर रख लो, यदि तुमने इसे रख लिया तो धीरे-धीरे तुम्हारे नगर और आस-पास वाले नगरों की मानसिकता बदलने लगेगी इसलिए राजा इस “अछूत” जैसी कुरुति को जीवन से दूर करने के लिए तुम पहला कदम लो ।
राजा बुद्ध से बोला – यह मेरा सौभाग्य है भगवन कि मुझे इस समाज को बदलने का एक मौका मिल रहा है ।
ऐसा कहकर राजा ने उस कन्या को पुनः अपने नगर में गायिका के रूप में स्थान दे दिया । राजा और कन्या दोनों ने बुद्ध को आभार व्यक्त किया ।
आज के समाज में भी लोग दूसरों के साथ छुआछूत का व्यवहार करते हैं हो सकता है वह प्रत्यक्ष ना दिखे लेकिन मानसिक रूप से जो भी हमको खुद से थोड़ा सा विभिन्न नजर आता है हम उससे दूरी बनाना शुरू कर देते हैं । राजा की तरह यदि हम भी पहल करें तो हम भी समाज में बदलाव ला सकते हैं।
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