कबीरदास जी ने बताएं जीवन में सफलता के सूत्र
हमारे देश की धरती को महान माना जाता है। इसी धरती पर कितने ही वीर पुरूषों ने जन्म लिया है। इसी धरती पर ही कितने ही बड़े संतों ने आध्यात्मिकता का ज्ञान पाया। इन सभी महान संतों ने हम सभी को सही तरीके से जीवन जीने का रास्ता बताया। इन्हीं महान संतों में से एक थे संत कबीर। संत कबीर के ज्ञान को लोग आज भी मानते हैं। संत कबीर के लिखे गए दोहे किसी भटके हुए इंसान को भी सही रास्ते पर ला सकता है।
आज की इस भागदौड भरी दुनिया में सुख से अधिक है दुख। सभी को चिंता ने घेर रखा है। सभी जल्द से जल्द सफलता पाना चाहते हैं। लेकिन सुख और भौतिकवाद को पाने के चक्कर में इंसान अपना अस्तित्व ही भुला जा रहा है। लेकिन जो इंसान अपना ही अस्तित्व ही भूल जाए उसका जीवन एक सूखे पेड़ के समान है। इसलिए हम सभी को कबीरदास जी के जीवन से सीख लेनी चाहिए ताकि हमारा जीवन आनंदपूर्वक बीत सके। तो आइए आज हम संत कबीर के जीवन से सीखते हैं कि आखिर हम जीवन कैसे जीते हैं।
संत कबीरदास कौन थे?
कबीरदास जी हमारे देश के महान संतों में से एक गिने जाते हैं। उन्होंने देश को भक्ति का ज्ञान दिया था। कबीरदास जी का जन्म काशी में हुआ था। कहते हैं कि वह 1398 में जन्मे थे। उनका जन्म रहस्यवादी रहा। वह संत होने के साथ ही साथ एक अच्छे कवि भी थे। उनके द्वारा रचे गए दोहे से हमें सही प्रकार से जीवन जीने की सीख मिलती है। उनके द्वारा रचित दोहो में समाज की सच्चाई झलकती थी। तो आइए हम उनके पांच दोनो के माध्यम से जीवन में सफलता पाने के सूत्र सीखते हैं।
कबीरदास जी के जीवन के पांच सूत्र जो आपका जीवन बदल देंगें
(1) गुरू गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूं पांय। बलिहारी गुरू अपने गोविन्द दियो बताय।।
इस दोहे से आप समझ सकते हो कि इस दुनिया में आप कभी कभार बेहद दुविधा में पड़ जाते हो। कभी परिस्थिति ऐसी आ जाती है जहां पर आपके सामने साक्षात ईश्वर और गुरू दोनों खड़े होते हैं। आपको लगता है कि आप किसको पहले प्रणाम करें? ऐसी जटिल परिस्थिति में आपको सबसे पहले गुरू को ही प्रणाम करके उनके पांव छूने चाहिए। क्योंकि यह शिक्षा हमें भगवान गोविंद देते हैं कि आप जब इस मायारूपी संसार में आ गए हो तो यहां सबसे ऊंचा स्थान गुरू को ही दिया जाता है। अगर हम अपने जीवन में इस बात को उतार लेंगे तो हमारा कल्याण होगा।
(2) माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर, कर का मनका डार दे, मन का मनका फेर।।
इस दोहे से कबीर हम सभी को यही सीख देना चाह रहे हैं कि इस दुनिया में केवल दिखावे से कुछ नहीं होता है। हम सभी को अपना मन साफ रखना चाहिए। इस दोहे में कबीरदास जी कह रहे हैं कि लोग चाहे कितनी ही बार माला क्यों ना फेर ले, अगर आपका मन साफ नहीं है तो आपकी माला फेरना व्यर्थ है। अगर आप भगवान को प्राप्त करना चाहते हो तो सबसे पहले अपने मन को निश्चल बनाओ। जब मन साफ होगा तो आपकी माला भी सफल हो पाएगी। अर्थात साफ मन के साथ आप कोई भी बड़े से बड़ा काम सफलतापूर्वक कर सकते हो।
(3) धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय। माली सींचे सौ घड़ा, ऋतु आए फल होय॥
इस दोहे के माध्यम से कबीर हमें य। समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि इस दुनिया में सभी प्रकार के काम धीरज के साथ ही करने चाहिए। बिना धीरज के अगर हम कोई काम करते हैं तो हमें इसका फल प्राप्त नहीं होता है। जो कोई भी व्यक्ति धैर्य खोकर काम करता है तो उसे इसकी बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है।
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यह कुछ ऐसा है कि मानो अगर किसी माली ने बगीचे में फल लगाया है तो वह फल धीरे धीरे बड़ा होगा। फिर चाहे वह माली फल को जल्दी उगाने के चक्कर में भले ही सौ घड़े बराबर ही पानी क्यों ना दे दे। लेकिन फल तो तब ही बड़ा होगा जब फल बड़ा होने की ऋतु आएगी। इसलिए जीवन में धीरज बहुत जरूरी है।
(4) चिंता ऐसी डाकिनी, काट कलेजा खाए। वैद बिचारा क्या करे, कहां तक दवा लगाए।।
इस दोहे के माध्यम से कबीरदास जी समझाने का प्रयत्न कर रहे हैं कि चिंता चिता के समान होती है। चिंता स्वस्थ इंसान को भी अस्वस्थ बना देती है। कबीरदास जी के हिसाब से चिंता एक बुरी डायन के समान है। चिंता आपके कलेजे को छलनी कर देती है। चिंता एक भयंकर बीमारी है। इस बीमारी का इलाज कहीं भी नहीं है । यहां तक कि एक वैद भी इस बीमारी को खत्म नहीं कर सकता। वैद सिर्फ आपके ऊपरी घाव के लिए दवा दे सकता है लेकिन आपकी चिंता के लिए वैध के पास भी कोई दवा नहीं । चिंता से किसी का भी कल्याण नहीं होता है।
(5) ऐसी वाणी बोलिए मन का आप खोए, औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होए।।
वाणी मनुष्य का सबसे अच्छा आभूषण है। वाणी चीजों को सुधार सकती है और चीजों को बिगाड भी सकती है। अगर हम सही वाणी का प्रयोग करते हैं तो हम दुनिया में सब कुछ हासिल कर सकते हैं। वाणी को सदैव ही शीतल जल के समान रखनी चाहिए। इसलिए आपको ऐसी भाषा बोलनी चाहिए जिससे की सुनने वाले लोग भी प्रसन्न रहे और आपको भी आनंद प्राप्त हो ।
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