शोक से कैसे बचे? Motivational Thoughts in Hindi
अपने शोक से कैसे बचे? यह सवाल कभी न कभी आपके मन में आता ही होगा । इस सवाल का ज़वाब काफ़ी लोग जानना चाहते हैं । यही सवाल एक दिन युधिष्ठिर के मन में भी आया था और फिर युधिष्ठिर अपने इस सवाल को लेकर भीष्म पितामह के समक्ष पहुंचते हैं, और उनसे पूछते हैं ? युधिष्ठिर- “भीष्म पितामह आप यह बताइए, अगर किसी व्यक्ति का संपूर्ण धन और परिवार ना रहे, तो वह दुख से खुद को कैसे दूर करें। मनुष्य शोक को कितना भी काबू में करना चाहे, लेकिन फिर भी मनुष्य को दुख की अग्नि भीतर तक जला देती है । कृपया करके आप मुझे शोक के विषय में बताएं” ।
भीष्म पितामह ने ज़वाब दिया, “यदि किसी मनुष्य का संपूर्ण धन परिवार ना रहे तो, यह देखना चाहिए कि यह पूरा संसार ही दुख है । यहां पर सुख कहीं भी संभव नहीं है । बुद्धिमान पुरुष इस जीवन को समझ कर मुक्ति को ही अपने जीवन का आधार मानते हैं । इस जन्म में जिस साथी संबंधियों के लिए हम शोक करते हैं । पूर्व जन्म में तो हमें पता ही नहीं होता, कि उनसे हमारा कोई संबंध है भी या नहीं। सारे संबंध मोह पर आधारित होते हैं । जब हमे मोह नहीं होता तब हमें दुख भी नहीं होता।”
शोक से कैसे बचे? Motivational Thoughts in Hindi
आगे भीष्म ने कहते हैं, “मैं तुम्हें राजा सेनजीत और एक ब्राह्मण के विषय पर बताता हूंँ । कैसे ब्राह्मण ने राजा सेनजीत का शोक दूर किया। राजा सेनजीत की पुत्र की मृत्यु हो गई थी। वह उसकी मृत्यु से अत्यंत दुखी थे।”
राजा सेनजीत जो एक महान राजा थे । उन्होंने बहुत से युद्ध लड़े और वे कभी नहीं हारे लेकिन जब उनकी पुत्री की मृत्यु हुई तो वे अत्यंत दुःखी हो गए । वे पूरी तरह अपनी पुत्री के जाने के शोक में डूब गए । मंत्रीगणों को अपने राजा की चिंता सताने लगी फिर उन्होंने एक बुद्धिमान ब्राह्मण को इस विषय में बताया । अगले दिन वह ब्राह्मण, राजा सेनजीत से मिलने राजमहल आते हैं।
राजा सेनजीत ने कहा – “ब्राह्मण जी, मैं अपने पुत्र की मृत्यु से बहुत आहत हूंँ। मैं दिन-रात दुख में डूबा रहता हूंँ, इस वक्त किसी कार्य को भी करने में सक्षम नहीं हूंँ । आप मुझे बताइए की इस पीड़ा को कैसे दूर करू। मुझे घोर शोक ने जकड़ लिया है।”
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ब्राह्मण जी बोले – “तुम किसके लिए शोक कर रहे हो । तुम तो खुद शोक के योग्य हो । यह पूरा संसार वहीं पर चला जाएगा, जहाँ से उत्पन्न हुआ है तुम, मैं और यह सभी प्राणी यहां नहीं रहेंगे।”
राजा सेनजीत ने कहा – “राजा सेनजीत ने जिज्ञासा पूर्ण दृष्टि से उन्हें देखा और पूछा । आपके पास ऐसा कौन-सा ज्ञान, बुद्धि, तप और शास्त्र है, जो आपको दुख उत्पन्न नहीं होता।”
ब्राह्मण ने कहा – “इस संसार में ना कोई मेरा है ना मैं किसी का हूंँ। मुझमें अपनी बुद्धि को लेकर ना कोई हर्ष है, ना ही कोई घमंड। ना यह शरीर मेरा है ना पूरी पृथ्वी ही मेरी है । परिवार पुत्र आदि हमें संयोगों से मिलते हैं इसलिए उनके प्रति कभी आसक्ति नहीं रखनी चाहिए ।”
राजा सेनजीत ने कहा – “ब्राह्मण देवता मैं तो दुखी होने पर अत्यंत पीड़ा महसूस करता हूंँ और खुश होने पर बहुत ज्यादा खुश हो जाता हूंँ । इस चक्र में बार-बार घूम कर मैं अत्यंत दुख पाता हूंँ।”
ब्राह्मण ने कहा –
यहां ना किसी प्राणी को सदैव सुख प्राप्त होता है, ना ही दुख अभी तुम दुखी हो, आगे चलकर तुम्हें सुख प्राप्त होगा और फिर दुख ऐसे ही यह चक्र बारंबार चलता रहेगा ।
इस संसार में दो ही प्रकार के लोग खुश रहते हैं ।
अत्यंत ज्ञानी जिन्हें वैराग्य प्राप्त हो जाता है।
या फिर अत्यंत मूर्ख जो की अज्ञानता के अंधकार मे गुम है । जो पशु की भाति जीवन जीते है।
बाकी बीच के सारे लोग इस सुख-दुख की चक्की में पिसते रहते हैं । मनुष्य जब-जब अपनी कामनाओं को घटाता रहता है, तब-तब वह सुखी होता जाता है । मनुष्य कितना भी बुद्धिमान , शूरवीर या मूर्ख हो उसके प्रारब्ध के अनुसार ही उसको फल मिलता है ।
भीष्म पितामह बोले – ”युधिष्ठिर, ब्राह्मण के इस अद्भुत ज्ञान को सुनकर राजा सेनजीत को वैराग्य की प्राप्ति हुई । वह प्रसन्न होकर जीवन-यापन करने लगे फिर कभी उन्हें शोक उत्पन्न नहीं हुआ ”।
उम्मीद करते हैं आपको हमारी Motivational Thoughts in Hindi “शोक से कैसे बचे?” पसंद आयी होगी और आपको अपने शोक को क़ाबू करने में मदद मिलेगी ।
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