गौतम बुद्ध ने नियति की योजना को कैसे समझाया

नियति की योजना
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जो कुछ भी हमारे साथ घटता है, उसे लेकर हमें ईश्वर से कुछ ना कुछ शिकायत हमेशा रहती है । और यह शिकायत होना लाजिमी भी है क्योंकि हम उतना ही देख और महसूस कर पाते हैं जितना हमारा दायरा होता है । उस नियति की योजना का हमें दूर-दूर तक कोई अंदाजा नहीं होता । आज हम नियति की योजना से संबंधित एक कहानी पढेगे जिसमें हम जान पाएंगे कि जीवन में जो कुछ भी होता है वह नियति की योजना के अनुसार होता है ।
तो आइये जानते हैं गौतम बुद्ध ने नियति की योजना को कैसे समझाया ।

गौतम बुद्ध की प्रेरणादायक कहानी: नियति की योजना

एक बार बुद्ध आंखें बंद करके अपने मौन में बैठे हुए थे । तभी एक व्यक्ति बुद्ध के पास आया और अपने जीवन की सभी समस्याओं को लगातार बोलता गया । लेकिन बुद्ध ने ना अपनी आंखें खोली ना उस व्यक्ति की तरफ देखा ।
व्यक्ति बोला- बुद्ध! मेरे और मेरे जैसे बहुत से लोगों के जीवन में इतना कष्ट है, फिर भी आप एक मूर्ति की तरह मौन बैठे हुए हैं ।

व्यक्ति के ऐसे शब्द सुनकर, बुद्ध ने अपनी आंखें खोली और शांत-भाव से उस व्यक्ति की तरफ देखने लगे ।
व्यक्ति बोला- बुद्ध! मुझे आपसे एक शिकायत है।
बुद्ध बोले- कैसी शिकायत?

व्यक्ति बोला- जो कोई भी आपके पास आता है, आप हर किसी को उसकी समस्या का समाधान नहीं बताते । कई बार आप मौन रहते हो और चुप्पी साध लेते हो । ऐसा लगता है आप एक मूर्ति हो, जिस पर हमारे दुख का कोई असर नहीं पड़ता ।
बुद्ध बोले- मैं तो सिर्फ लोगों को चेतन होने को कहता हूंँ । बाकी नियति की योजना के आगे तो किसी का वश नहीं चलता ।
व्यक्ति बोला- अगर सब कुछ नियति ही संभाल रही है, फिर तो हमारे लिए जीवन में, करने और कहने को कुछ बचता ही नहीं है ।


बुद्ध बोले- तुम सत्य कह रहे हो । नियति जीवन को खुद ही संभाल रही है, इसलिए पृथ्वी का संतुलन बना हुआ है ।
बुद्ध की बात सुनकर, तो उस व्यक्ति का कष्ट और भी बढ़ गया । वह कहने लगा- बुद्ध, मुझे माफ करें! लेकिन मैं आपकी बात से सहमत नहीं हूंँ । मेरा यह मानना है कि यदि लोग आपको मानते हैं, तो आपको हर किसी को उनकी समस्या का समाधान देना चाहिए ।


बुद्ध बोले- ठीक है, यदि तुम्हें ऐसा लगता है तो फिर तुम एक दिन मेरी तरह वस्त्र धारण करके, मेरी जगह बैठो ।
व्यक्ति बोला- ठीक है, यदि मेरे पास कोई व्यक्ति आएगा, तो मैं उसकी समस्या का समाधान अवश्य ही कर दूंगा ।
बुद्ध बोले- ठहरो! इतनी आतुरता अच्छी नहीं है । तुम्हें यहां पर मेरी तरह बनकर बैठना तो है लेकिन तुम्हें एक मूर्ति की तरह बैठना है । जो भी तुम्हारे पास आए, तुम बस उनकी बातें सुनना और मौन रहना ।


व्यक्ति बोला- यदि मुझे मौन ही रहना है, तो मेरा आपका स्थान पर बैठने का क्या लाभ ?
बुद्ध बोले- बात लाभ या हानि की नहीं है, बात नियति की योजना को समझने की है ।
व्यक्ति ने बुद्ध की बातों को मान लिया और बुद्ध की जगह उनके स्थान पर बैठ गए।

तभी एक व्यापारी उस व्यक्ति के पास आया ।
व्यापारी बोला- महात्मा! आपकी वेशभूषा तो बिल्कुल बुद्ध के समान है । आप भी मुझे बुद्धत्व का रूप ही लगते हैं । मैं आपका धन्यवाद करने आया हूंँ, कि आप जैसे महत्माओ के मार्गदर्शन पाकर , मैने इतनी अपार संपदा अर्जित की है । मैं चाहता हूँ मेरी सुख-समृद्धि और खुशियां यूँ ही बनी रहे । ऐसा कहकर वह व्यक्ति जाने ही लगा था, कि अचानक उसकी जेब से कुछ धन गिर गया ।

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व्यक्ति उस व्यापारी को बताना चाहता था, लेकिन उसे फिर याद आया कि बुद्ध ने उसे मौन रहने को कहा है ।
तभी थोड़ी देर बाद वहां पर एक गरीब व्यक्ति आया जो बहुत परेशान था । उसने इस व्यक्ति को प्रणाम किया और कहा– महात्मा! मुझ गरीब के पास खाने के लिए कुछ भी नहीं है । यदि आप मेरी कुछ मदद कर देते, तो मैं और मेरा परिवार भोजन कर पाता । उस व्यक्ति ने हाथ जोड़कर जैसे-ही अपना सिर नीचे की तरफ झुकाया, उसे व्यापारी का गिरा हुआ धन दिखाई दिया । उस धन को देखकर वह अत्यंत खुश हुआ । उसने महात्मा के आगे हाथ जोड़े और धन लेकर खुशी-खुशी वहां से निकल गया ।

तभी कुछ देर बाद वहां पर एक नाविक आया । उसने भी उस व्यक्ति को महात्मा समझकर उन्हें प्रणाम किया और कहने लगा- महात्मा, मैं कुछ दिनों के लिए अपने परिवार के साथ एक नाव की यात्रा पर जा रहा हूंँ । मुझे आपसे आशीर्वाद चाहिए कि यात्रा मंगलमय हो !
व्यक्ति ने मौन होकर ही उसकी तरफ देखकर, सिर हिलाकर हाँ में जवाब दिया ।

अब थोड़ी देर और ही हुई थी कि व्यापारी वापस उसी जगह पर आ गया । उसकी नजर जैसे ही नाविक पर पड़ी, उसने उसे पकड़ कर कहा- तूने मेरा धन चुराया है । यहीं पर मेरा धन गिर गया था और यहां अभी तू ही खड़ा है इसका मतलब यह है कि तू ही चोर है । ऐसा कहकर वह उस नाविक को जोर से पकड़ कर ले जाने हीं लगा था, कि उस व्यक्ति से रहा नहीं गया और वह बोल पड़ा- सुनो! नाविक को छोड़ दो । इसने तुम्हारा धन नहीं चुराया है, मैं जानता हूंँ । तुम्हारा धन किसने चुराया है नाविक से पहले जो एक व्यक्ति आया था । किसी ने तुम्हारा धन चुराया है ।


व्यापारी ने उस व्यक्ति के सामने हाथ जोड़े और बोला- आपका धन्यवाद! आपने मुझे सच बताया ।
व्यापारी ने उस गरीब व्यक्ति को ढूंढ निकाला और उसे पड़कर जेल में डलवा दिया ।

अब उस व्यक्ति का वक्त पूरा हो चुका था । इसलिए वह बुद्ध के पास आया और सारी घटना उन्हें सुना दी ।
बुद्ध बोले- पर मैंने तुम्हें मौन रहने को कहा था । तुम्हें बोलने की क्या आवश्यकता थी ?
व्यक्ति बोला- बुद्ध आप कैसी बातें कर रहे हो ? आप हमेशा सत्य की बात करते हो, लेकिन आप मुझे यह कह रहे हो, कि मैंने सत्य क्यों कहा !

बुद्ध बोले- इन जीवन में जो कुछ भी होता है वो नियति की योजना के अनुसार होता है । वह व्यापारी बहुत धनी था, उसका थोड़ा-सा धन लुट जाने से, उसकी स्थिति में कोई खास फर्क नहीं आता । लेकिन उस गरीब व्यक्ति को उसके धन से भोजन मिल गया था । और जो नाविक समुद्र की यात्रा के लिए कह रहा था । नियति में यह लिखा था, समुद्री यात्रा में उसकी मृत्यु होने वाली थी, यदि व्यापारी नाविक को पड़कर जेल में डाल देता, तो कम से कम उसकी मृत्यु तो नहीं होती । लेकिन तुमने नियति की योजना में दखल देकर उसे बदलने की कोशिश की है। बदला सिर्फ चेतना को जा सकता है । नियति की योजना तो प्रकृति ने स्वयं रच रखी है।

व्यक्ति ने बुद्ध के सामने हाथ जोड़े और कहा- मुझे माफ कर दीजिए! मैं नहीं समझ पाया था, कि नियति की योजना पर हमारा कोई अधिकार नहीं है । क्योंकि उसका अधिकार तो सिर्फ प्रकृति के ही पास है । लेकिन आज आपने मुझे एहसास कर दिया है कि मनुष्य का फर्ज़ चेतना बनना है ।
ऐसा कहकर वह व्यक्ति वहां से चला गया ।

इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें कभी-भी परिस्थितियों को दोष नहीं देना चाहिए । क्योंकि परिस्थिति बाहर का विषय है और मनुष्य के मन की स्थिति उसके अंदर का विषय है । हमारा पूरा ध्यान हमारे मन की स्थिति पर होना चाहिए ना कि बाहरी परिस्थितियों पर इसलिए नियति की योजना को कोसने से अच्छा है कि हम अपना पूरा ध्यान अपने मन की स्थिति को ठीक करने में लगाए ।

उम्मीद करते है आपको हमारी गौतम बुद्ध की प्रेरणादायक कहानी “नियति की योजना” पसन्द आयी होगी । आप हमें social media पर भी follow कर सकते हैं CRS SquadThink Yourself और Your Goal


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