दूसरों को बदलना है तो पहले स्वयं बदलो: गौतम बुद्ध की प्रेरणादायक कहानी

दूसरों को बदलना है तो पहले स्वयं बदलो || गौतम बुद्ध की प्रेरणादायक कहानी
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दूसरों को बदलना है तो पहले स्वयं बदलो । एक ज्ञानी इंसान बाकी सभी अज्ञानियों को ज्ञान दे सकता है । लेकिन उससे पहले जरूरी है मनुष्य को स्वयं अपने ज्ञान का अहंकार ना हो, वह दूसरों को खुद से नीचे ना समझे ।
आइये पढ़ते हैं……गौतम बुद्ध और उनके शिष्य की प्रेरणादायक कहानी ।

दूसरों को बदलना है तो पहले स्वयं बदलो: गौतम बुद्ध की प्रेरणादायक कहानी

यह कहानी है गौतम बुद्ध की और उनके एक शिष्य की । गौतम बुद्ध के मठ में हमेशा से ही एक नियम चला आ रहा था, कि जिस भी शिष्य को बुद्धत्व की प्राप्ति हो जाती थी । वह उसे आस-पास के गांव में प्रवचन देने के लिए भेजा करते थे, ताकि वह जाकर लोगों का ज्ञानवर्धन कर सके ।

गौतम बुद्ध का एक शिष्य था। जो कि कई सालों से प्रतीक्षा कर रहा था, कि गौतम बुद्ध भी उसे प्रवचन देने के लिए किसी गांव में भेजें । लेकिन काफी वक्त गुजर जाने के बाद भी, बुद्ध ने उस शिष्य को प्रवचन देने के लिए नहीं भेजा ।
एक दिन उसने सोचा क्यों ना मैं खुद ही बुद्ध के पास जाकर उनसे कह दूँ, कि वह मुझे प्रवचन देने के लिए भेजें, उसने ऐसा ही किया और वह बुद्ध के पास पहुंचा ।

शिष्य बोला- बुद्ध! मुझे इस मठ में शिक्षा प्राप्त करते हुए काफी समय हो गया है । इसलिए मैं चाहता हूंँ, अब आप मुझे प्रवचन देने के लिए गांव में भेज दें ।
बुद्ध बोले- शिष्य! अभी तुम्हारा वक्त नहीं आया है इसलिए तुम कुछ वक्त और प्रतीक्षा करो ।

शिष्य बोला- गुरुजी, और कितनी प्रतीक्षा करूँ, मुझे इस मठ में आए हुए सालों-साल गुजर चुके हैं ?
बुद्ध बोले- हाँ, मैं जानता हूंँ, लेकिन अभी तुम्हारा ज्ञानवर्धन नहीं हुआ है ।

यह सुनते ही शिष्य को क्रोध आ गया और वह बोला- मैं तो आपसे ही ज्ञान प्राप्त कर रहा हूंँ । इसका यह अर्थ हुआ कि आप मुझे ज्ञान देने में सक्षम नहीं हो पाए हो, इसलिए ही मुझे इतने सालों तक ज्ञान प्राप्त नहीं हुआ है ।
शिष्य की बात सुनते ही बुद्ध समझ गए कि अब इसे शब्दों के द्वारा समझाना उचित नहीं है, क्योंकि उसकी बुद्धि अब किसी भी बात को ग्रहण नहीं करेगी ।

बुद्ध बोले- ठीक है! यदि तुम्हारी यही इच्छा है, तो मैं तुम्हें पास के एक गांव में प्रवचन देने के लिए भेज देता हूंँ । कल ही उधर जाओ और लोगों को ज्ञान बाँटो और अपना अनुभव बताओ ।
ऐसा सुनते ही शिष्य खुश हो गया और वह कल सुबह बुद्ध के बताए हुए गांव में प्रवचन देने के लिए चला गया ।

अगले दिन वह प्रवचन देकर बुद्ध के पास लौटा ।
बुद्ध बोले- अरे! तुमने यह क्या हालत बना रखी है ?
शिष्य बोला-
बुद्ध आपने यह मुझे कैसे गांव में भेज दिया । वहां तो किसी ने मेरी कोई भी बात नहीं सुनी, उल्टा सबने मुझे मिलकर पीट दिया । कोई मुझे भिक्षा देने को भी तैयार नहीं था और जिन्होंने मुझे भिक्षा दी, वह मुझे फेक कर दी । उस गांव के लोग तो बड़े ही अज्ञानी और मुर्ख है । ऐसे अज्ञानी और मूर्ख लोगों के पास आपने मुझे क्यों भेजा ।

बुद्ध बोले- पर यह तो तुम्हारी स्वयं की इच्छा थी, कि तुम प्रवचन देने जाओ ।
शिष्य बोला- बुद्ध! आप मुझे किसी और गांव में प्रवचन देने के लिए भेज दीजिए ।

बुद्ध बोले- ठीक है, लेकिन मैं तुम्हें कल नहीं परसों भेजूंगा, ताकि तुम्हारे घाव भर सके । और वैसे भी कल मैंने अपने एक और शिष्य को प्रवचन देने के लिए उसी गांव में भेजा है । जिस गांव में तुम गए थे देखते हैं उसका अनुभव कैसा रहता है ।
ऐसा सुनकर शिष्य बोला- ठीक है बुद्ध जैसी आपकी इच्छा ।

अब दूसरा शिष्य गांव में प्रवचन देने के बाद बुद्ध के पास आया ।
उसकी हालत भी पहले शिष्य की तरह थी । उसे भी उसे गांव के लोगों ने पीट दिया था । उसे देखकर बुद्ध बोले- शिष्य बताओ! कैसा रहा तुम्हारा अनुभव ?
जब बुद्ध और दूसरे शिष्य की बातचीत चल रही थी तब पहले शिष्य भी वहीं मौजूद था ।

दूसरा शिष्य बोला- बुद्ध! उस गांव के लोग तो बहुत भोले हैं उन लोगों को ज्ञान की बहुत जरूरत है । वहां के लोगों ने मुझे भिक्षा तक नहीं दी, लेकिन जिन्होंने दी उन्होंने फेक कर दी । मैं समझ चुका था कि वह लोग बहुत भोले है इसलिए मैंने उनकी किसी-भी बात का बुरा नहीं माना । उनके फेके गए पैसों को देखकर मैंने क्रोध नहीं किया । तब उनके मन में एक प्रश्न उठा कि हमारे इतने तिरस्कार के बाद भी यह कैसे इतने संयम में है । धीरे-धीरे उनका हृदय बदल रहा है मुझे आशा है कि जब मैं दूसरी बार उस गांव में जाऊंगा, तो कुछ और बदलाव उन लोगों में कर पाऊंगा ।

दूसरे शिष्य की बातें सुनकर पहले शिष्य को समझ आने लगा कि आखिर क्यों बुद्ध मुझे प्रवचन देने के लिए नहीं भेज रहे थे ।
पहला शिष्य बुद्ध के चरणों में गिर पड़ा और कहने लगा- आप सही थे । मैं वह इंसान नहीं बन पाया हूंँ, जो लोगों को बदल पाऊँ। अभी मेरे अंदर अहंकार है जिसके कारण में लोगों को अज्ञानी समझता हूंँ । सबसे बड़ा अज्ञानी तो मैं खुद हूंँ, मेरे भीतर स्वयं को जानने की क्षमता नहीं है, मेरे अंदर ना धैर्य है, ना ही संयम है ।

बुद्ध बोले- शिष्य कभी-भी कोई भी कार्य तुरंत सफल नहीं होता, लोगों को समझने के लिए पहले हमें उनसे सहानुभूति रखनी होगी । उनके द्वारा दिए गए कष्टों को भी झेलना पड़ेगा । सब कुछ हमेशा धीरे-धीरे बदलता है लेकिन उससे पहले जरूरी है मनुष्य का स्वयं बदलना । हर परिस्थिति में हमेशा अच्छे इंसान बने रहो । चीजें भले ही देर से सही हो, लेकिन होती जरूर है ।
बुद्ध की बात सुनकर दोनों शिष्य ने उन्हें प्रणाम किया ।

इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि एक ज्ञानी मनुष्य को हमेशा ही संयम से काम लेना चाहिए । यदि उसके भीतर संयम नहीं होगा, तो वह किसी दूसरे को कभी-भी ज्ञान नहीं दे सकता । यदि हम चाहते हैं कि हम किसी दूसरे को बदल पाए, उससे पहले जरूरी है कि हम स्वयं को बदलें ।

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