सिद्धार्थ गौतम और घायल हँस की कहानी । Motivational Story in Hindi
आज की कहानी का शीर्षक है “सिद्धार्थ गौतम और घायल हँस की कहानी ।” सिद्धार्थ गौतम दया और करुणा के सागर है उनकी दया मनुष्य ही नहीं, बल्कि पशु-पक्षीयों और प्रकृति के लिए भी है । आइये देखते हैं कैसे सिद्धार्थ गौतम ने घायल हँस की जान बचाई ।
सिद्धार्थ गौतम और घायल हँस की कहानी । Motivational Story in Hindi
एक बार की बात है सिद्धार्थ गौतम और देवदत्त एक बहुत ही खूबसूरत बगीचे में थे । बगीचे की सुंदरता देखते ही बनती थी वहाँ पर तरह-तरह के खूबसूरत फूल, रंग-बिरंगी तितलियाँ और हरियाली बिखरी हुई थी । सिद्धार्थ खरगोशों के साथ खेल रहे थे तभी देवदत्त आया और कहने लगा- तुम क्या खरगोशों के साथ खेलते रहते हो, तुम्हें कल का राजा बनाना है, राजा के भीतर इतनी भावुकता नहीं होनी चाहिए ।
सिद्धार्थ बोले- क्या सचमुच राजा के अंदर भावुकता नहीं होनी चाहिए ?
देवदत्त बोले- भावुकता तो इंसान को कमजोर कर देती है और एक कमजोर इंसान कैसे जीवन के कड़े फैसले ले सकता है ?
सिद्धार्थ देवदत्त की बात पर मुस्कुराये और फिर से खरगोशों के साथ खेलने लगे ।
देवदत्त के आस-पास तितलियाँ मंडरा रही थी । देवदत्त ने एक तितली को पकड़ा और उसका एक पंख काट दिया और उस पर धागा बाँधकर उसको नाचने लगा । जब सिद्धार्थ ने ये देखा
सिद्धार्थ बोले- देवदत्त, तुम यह क्या कर रहे हो ? क्यों इसे परेशान कर रहे हो ? वैसे भी इसका जीवन-काल बहुत छोटा है ।
देवदत्त बोला- अरे ! सिद्धार्थ, फिर वही भावुकता यह सिर्फ छोटी-सी तितली है । मेरा शौक तो बड़े-बड़े जानवरों का शिकार करना है, ऐसे तो तुम्हारी नजरों में बड़े-बड़े शिकारी पापी होते होंगे ।
ऐसा कहकर देवदत्त बगीचे से जंगल की ओर निकल गए ।
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सिद्धार्थ वही खरगोशों के साथ खेलते रहे । कुछ देर बाद वह आराम से बैठे हुए थे तभी उनके पास एक घायल हँस गिरा । उसे तीर लगा हुआ था । वह दर्द से करहा रहा था, यह देखकर वह बहुत दुखी हो गए । सिद्धार्थ ने हंस को अपने हाथों में लिया और आहिस्ता-आहिस्ता हँस का तीर निकाला और उसके जख्मों पर मिट्टी लगाने लगे । तभी देवदत्त बगीचे में आया, उसके हाथ में धनुष था ।
देवदत्त बोले – सिद्धार्थ! मैंने इसका शिकार किया है इसे मुझे सौप दो ।
सिद्धार्थ बोले- इसका शिकार भले ही तुमने किया हो, लेकिन अब यह मेरी शरण में आ गया है, मैं इसका रक्षक हूंँ । अब तुम्हारा इस पर कोई हक नहीं है ।
देवदत्त बोले- तुम जिद्द मत करो ! मैंने कड़ी मेहनत और एकाग्रता के साथ इस पर तीर साधा था, तब जाकर मैं इसका शिकार कर पाया हूँ । तुम इसे नहीं ले सकते, इसे मुझे सौप दो ।
सिद्धार्थ बोले- तुम अपने पक्ष में चाहे कितने ही तर्क दे दो, लेकिन मैं तुम्हें यह हँस नहीं दे सकता । अब यह मेरी शरण में आया हैं मेरा धर्म हैं इसकी रक्षा करना ।
यह सुनकर देवदत्त क्रोध से भर गया । वह बोला ठीक है तो फिर हम दोनों राजा के पास चलते हैं । अब वही इस बात का फैसला करेंगे कि यह हँस मुझे मिलेगा या तुम्हें ।
सिद्धार्थ बोले- ठीक हैं अगर तुम्हारी यही इच्छा है, तो मैं राजा के पास चलने को तैयार हूंँ मुझे यकीन है राजा न्याय जरूर करेंगे ।
सिद्धार्थ ने हँस को उठा लिया और दोनों राजा शुद्धोधन के पास पहुँचे । दोनों ने राजा को प्रणाम किया ।
सिद्धार्थ के हाथ में घायल हँस को देखकर
राजा पूछने लगे- सिद्धार्थ! तुम इस घायल हँस को यहाँ पर क्यों लेकर आए हो ?
ऐसा सुनते ही देवदत्त बोल उठा– हमें न्याय चाहिए महाराजऔर इसका विषय यह हँस है ।
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राजा बोले- एक-एक करके बताओ, कि आखिर क्या बात है ?
देवदत्त बोले- मैंने इस हँस का शिकार किया है, यह हँस मेरा है लेकिन सिद्धार्थ मुझे मेरे शिकार को देने से इंकार कर रहा है ।
सिद्धार्थ बोले- राजा मैंने इस हँस को बचाया है और इस हँस पर अब मेरा अधिकार है ।
देवदत्त बोला- राजा आपको तो पता ही होगा कि एक शिकारी बनने में कितनी मेहनत, कितनी तपस्या करनी पड़ती है । राजाओं का तो यह शौक होता है । क्या मुझे मेरे शिकार पर अधिकार नहीं है, जिसे मैंने कितनी मुश्किल से साधा है ?
राजा बोले देवदत्त से बोले- हाँ, तुम बिल्कुल ठीक कह रहे हो । शिकार पर तो शिकारी का ही अधिकार होता है, किसी और का नहीं ।
सिद्धार्थ बोले- शिकार करने वाले से श्रेष्ठ बचाने वाला होता है, किसी का जीवन बचाने वाला भला कैसे गलत हो सकता है । आप खुद ही सोचिए कि भक्षण करने वाला गलत होता है रक्षण करने वाला । क्या एक राजा के अंदर भावुकता नहीं होनी चाहिए बिना भावुकता के वह इंसान या पशु-पक्षी किसी का दर्द नहीं समझ सकता और जो किसी का दर्द नहीं समझ सकता वह खुद कैसे इंसान हो सकता है ?
राजा को समझ नहीं आ रहा था कि वे इसका निर्णय कैसे करें । उन्होंने इस बात का न्याय करने के लिए अपने धर्म गुरु से कहा ।
धर्मगुरु- ये सत्य है की शिकार पर उसके शिकार करने वाले का अधिकार होता है. और सालों से यही परंपरा भी चली आ रही है किन्तु इस अधिकार के ऊपर भी एक और अधिकार होता है जो करुणा का अधिकार है, क्योंकि “मारने वाले से बचाने वाला बड़ा होता है ।” इसलिए इस हँस पर सिर्फ और सिर्फ सिद्धार्थ का अधिकार है।
धर्मगुरु ने आगे कहा – देवदत्त तुमने मेहनत करके शिकार किया था लेकिन तुम्हारी मेहनत की कीमत बेचारे हँस को चुकानी पड़ी । दूसरी तरफ सिद्धार्थ है जिसने उसकी जान को बचाया है संसार में किसी भी चीज से ऊपर किसी की जान होती है और जान बचाने वाला ही सबसे श्रेष्ठ होता है । इसलिए यह हँस सिद्धार्थ का हुआ ।
राजा के न्याय के आगे देवदत्त कुछ ना बोल सका ।
यह कहानी हमें यह शिक्षा देती है मारने वाले से बचाने वाला श्रेष्ठ होता है । आप भी अपने आस-पास लोगों को बचा सकते हैं और यह बचाना सिर्फ जीवन का नहीं, किसी भी चीज का हो सकता है जैसे:-किसी के करियर को बचाना, सही फैसला लेने में किसी की मदद करना, जो लोग डिप्रेशन में चले जाते हैं उनको उनकी मानसिकता से निकालना, अपना और लोगों का वक्त बचाना ।
अगर आपके भीतर वह भावुकता है कि आप किसी के दर्द को समझ सकते हैं, तो सही मायने में आप इंसान है ।
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