पानी का कटोरा | तेनाली राम की कहानी No. 3 | Hindi Story with Moral
आज तेनालीराम की बुद्धिमानी पर एक और कहानी पढ़ते हैं। जिसका शीर्षक है पानी का कटोरा। एक बार विजयनगर के राजा कृष्णदेव राय कटक नामक जगह पर नर्मदा नदी के तट पर पहुँचे, तभी उनकी नज़र एक महान ऋषि पर गई। जो कि अपने तप के द्वारा उड़ रहे थे । यह देखकर राजा उनसे अत्यंत प्रभावित हुए । वह वहीं पर ठहर गए और सोचने लगे अवश्य ही, यह कोई महान ऋषि है। मुझे इनका आशीर्वाद लेना चाहिए । वह ऋषि के पास गए और उन्हें प्रणाम करके कहा- मैं कृष्णदेव राय, विजयनगर का राजा हूंँ।
ऋषि उनके चेहरे को देखकर ही कहने लगे । अभी तुम्हारे साम्राज्य ने युद्ध जीते हैं, लेकिन युद्धों में तुम्हारे सैनिक, धन आदि का नुकसान हुआ है । जिसकी भरपाई तुम्हारे राज्य के लोग रहे हैं और यह दुख तुम्हें सता रहा है । जो कि तुम्हारी जीत पर भी भारी है ।
राजा कहने लगा – हाँ ऋषिवर आप सत्य कहते हैं। धन की कमी के कारण मैं राज्य के लोगो की उतनी मदद नहीं कर पा रहा जितनी मुझे करनी चाहिए ।
ऋषि मुस्कुराए और कहने लगे- मैं तुम्हें एक कटोरा देता हूंँ, इस कटोरे में इस पवित्र नर्मदा नदी का पानी भर लो, राजा ने बिल्कुल वैसा ही किया कटोरे में पानी भर लिया।
राजा ने पूछा- मैं इस पानी का क्या करूंगा ऋषिवर।
ऋषि ने कहा- इस जल को अपने धन पर छिड़क देना। जिससे कि वह दुगना हो जाएगा, लेकिन याद रहे, इस जल की एक भी बूंद कहीं गिरनी नहीं चाहिए ।
राजा ने कहा– ठीक है ! मैं इस बात का ध्यान रखूंगा । उसके बाद राजा आगे की ओर बड़े और सोचने लगे, कि आखिर यहां से जल के पात्र को विजयनगर कौन ले जाएगा । पहले उन्होंने सोचा किसी मंत्री या सेनापति को यह काम सौपां जाए, लेकिन काफी सोच विचार करके वह इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि यह काम मैं तेनाली को सौप देता हूंँ।
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महाराज ने तुरंत सेनापति को बुलाया और कहा । सेनापति यह पानी का कटोरा बिना छलकाए, हमें विजयनगर तक पहुचाना है। शीघ्र ही तेनाली को बुलाओ । यह सुनकर सेनापति भड़क गया और कहने लगा महाराज आप यह क्या कर रहे हैं? यह काम उसको क्यों दे रहे हैं, वे इस काम के लायक नहीं है वह तो अभी सो रहा है ।
राजा बोले – क्या तेनाली सचमुच सो रहा है । यह सुनकर वे तेनाली के पास पहुंचे और जोर से कहने लगे । तेनाली तेनाली !हम एक विशिष्ट काम के लिए आए हैं और तुम सो रहे हो ।
तेनाली ने हड़बड़ा कर अपनी आंखें खोली और कहां महाराज अभी कोई कार्य नहीं था तो, मैं सो रहा था । लेकिन मैं अपने कार्य को लेकर बहुत कुशल हूंँ। राजा ने कहा ठीक है तेनाली एक पानी का कटोरा है । एक महान ऋषि ने मुझे दिया है, बिना छलकाए तुम्हें विजयनगर तक पहुंचाना है, नहीं तो हमारा साम्राज्य मुश्किल में पड़ जाएगा ।
तेनाली ने कहा– महाराज आप निश्चित हो जाइए । मैं यह कार्य भली-भाँति कर लूँगा।
सेनापति सोचने लगा यह तो हो ही नहीं सकता। बिना छलके जल के पात्र को विजयनगर तक ले जाना असंभव है।
राजा विजयनगर की ओर रथ पर बैठकर निकल गए । उनके पीछे तेनाली दूसरे रथ पर बैठकर जा रहा था। जिसे सेनापति चला रहा था। वह जानबूझकर रथ को उछाल कर चला रहा था ताकि कटोरे का पानी छलके, लेकिन तेनाली चिंता से बहुत दूर आराम से सो रहा था। राजा विजय नगर पहुंच गए। उनका रथ रुका और पीछे से सेनापति ने तेनाली का भी रथ रोका । राजा रथ से उतरे ।
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राजा ने पूछा – सेनापति तेनाली से वह जल का कटोरा ले लो। सेनापति हँसा और कहने लगा महाराज तेनाली तो आराम से सो रहा है। महाराज यह देखकर बहुत क्रोधित हुए और तेज आवाज में तेनाली को कहने लगे ।
तेनाली !
उनकी तेज आवाज से तेनाली जाग गया ।
तेनाली निश्चिंत होकर उठा और कहा – हां महाराज।
राजा कहने लगे – तेनाली पानी का कटोरा कहां है?
तेनाली – महाराज! मैं समझ गया था, यदि रथ पर किसी खुले पात्र में जल भरकर ले जाया जाए, तो वह अवश्य छलकता है। इसलिए मैंने कटोरे को चमड़े की थैली में कसकर बांध दिया था। जिससे कि छलकने की बिल्कुल ही गुंजाइश खत्म हो जाए।
यह सुनकर राजा प्रसन्न हुए । हमेशा की तरह वह तेनाली की बुद्धिमानी पर प्रशंसा करने लगे।
कहानी से शिक्षा: इस कहानी से हमे यह शिक्षा मिलती है की बुद्धिमानी से हर समस्या का हल निकाला जा सकता है।
उम्मीद करते हैं आपको हमारी तेनाली राम की कहानी “पानी का कटोरा” पसंद आयी होगी ।
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