वरदराज का अभ्यास - Best Motivational Story in Hindi, करत-करत अभ्यास के जडमति होत सुजान । रसरी आवत-जात ते सिल पर परत निशान ॥
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इस कहानी का शीर्षक है “वरदराज का अभ्यास ।” दुनिया में ऐसी कोई भी चीज नहीं है जो असंभव हो, अभ्यास द्वारा हम बड़ी से बड़ी चीजों को सीख सकते हैं । ऐसी ही एक कहानी है बालक वरदराज की । जानते हैं कैसे एक मंदबुद्धि बालक वरदराज ने बार-बार अभ्यास के द्वारा अपनी सबसे बड़ी मुश्किल को आसान करके दिखाया

वरदराज का अभ्यास – Best Motivational Story in Hindi

एक समय की बात है, एक गुरुकुल में वरदराज नाम का एक शिष्य पढ़ता था । वह बहुत ही ज्यादा मंदबुद्धि था, उसका पढ़ाई में ध्यान नहीं लगता था । उसके साथ पढ़ने वाले सभी सहपाठी उससे कक्षा में आगे निकल गए थे, लेकिन वह दस सालों से एक ही कक्षा पर था ।

उसके गुरुजी उस पर बहुत मेहनत करते, उसे पढ़ाते-लिखाते बार-बार समझाते, लेकिन फिर भी उसकी मोटी बुद्धि कुछ भी सीखने को तैयार नहीं थी ।
आस-पास वाले सभी शिष्य उसका मजाक उड़ाया करते थे । वरदराज को खुद पर बहुत शर्म आती थी, लेकिन वह अपने मंदबुद्धि होने का इलाज खुद नहीं कर पा रहा था ।

ऐसे ही समय बीतता गया, लेकिन वरदराज कुछ भी नहीं सीख पाया । इसलिए एक दिन गुरुजी ने वरदराज को अपने पास बुलाया ।

गुरुजी बोले- वरदराज! तुम्हें गुरुकुल में पढ़ते-पढ़ते दस साल बीत चुके हैं, लेकिन तुम कुछ भी सीख नहीं पा रहे हो, इसलिए तुम्हें अपने घर लौट जाना चाहिए ।

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वरदराज बोला- गुरुजी, मैं घर कैसे जा सकता हूंँ, अभी तो शिक्षा पूरी नहीं हुई है ।
गुरुजी बोले- मैं जानता हूंँ कि तुम्हारी शिक्षा पूरी नहीं हुई है लेकिन दस सालों में तुमने कुछ भी नहीं सीखा है । इससे अच्छा है तुम घर जाकर अपने माता-पिता की, उनके कामों में हाथ बटा कर मदद करो, यही तुम्हारे लिए सही होगा ।

ऐसा सुनकर वरदराज को बहुत बुरा लगा लेकिन वह कुछ नहीं बोल पाया और वह अपने घर की ओर निकल गया ।
रास्ते पर चलते-चलते उसने सोचा कि मैं अपने माता-पिता को किस मुंह से कहूँगा, कि गुरुजी ने मुझे गुरुकुल से जाने को कहा है और इसका कारण यह है कि इतने सालों से मैंने कुछ नहीं सीख पाया हूँ ।

चलते-चलते वरदराज बहुत थक गया, उसे प्यास लगी थी रास्ते में उसे एक कुआँ दिखा । वह कुएँ के पास पहुँचा । वहाँ पर उसे एक बाल्टी दिखाई दी, जिस पर रस्सी बंधी हुई थी उसने बाल्टी उठाई और रस्सी पकड़कर बाल्टी को कुएँ में डाल दिया जैसे ही उसने बाल्टी को ऊपर खींचा । उसकी नजर कुएँ के मुंडेर के पत्थर पर पड़ी ।

कुए के मुंडेर के पत्थर पर रस्सी की रगड़ से बहुत गहरे निशान पड़े हुए थे, उन निशानों को देखकर वरदराज सोचने लगा- कि जब इतनी कोमल रस्सी से बार-बार रगड़ खाकर इस सख्त पत्थर पर निशान पड़ सकते हैं, तो मैं भी बार-बार अभ्यास करके किसी चीज को क्यों नहीं सीख सकता ।

वरदराज समझ चुका था कि किसी भी चीज को सीखने के लिए बार-बार लगातार अभ्यास करने की जरूरत होती है, ऐसा जानकर वह वापस गुरुकुल लौट गया ।

गुरुकुल पहुँच कर वह गुरु से बोला- गुरुजी मुझे पता चल चुका है कि आखिर आपके इतना प्रयास के बाद भी, मैं कुछ क्यों नहीं सीख पा रहा था । लेकिन आज मैं जान चुका हूंँ कि अगर मैं एक ही चीज का बार-बार अभ्यास करूँगा तो जरूर सीख सकता हूंँ।

वरदराज का यह आत्मविश्वास देखकर गुरुजी बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने वरदराज को फिरसे शिक्षा देना प्रारंभ कर दिया । वह अभ्यास कर-कर के इतना आगे बढ़ गया, कि अपनी कक्षा में प्रथम स्थान पर आने लगा ।

आगे चलकर वरदराज एक महान विद्वान बने और उन्होंने बड़े-बड़े ग्रंथों की रचना भी की ।

इसलिए कहा गया है :-
करत-करत अभ्यास के जडमति होत सुजान ।
रसरी आवत-जात ते सिल पर परत निशान ॥

जिसका अर्थ है:- जिस प्रकार लगातार आते जाते रस्सी पत्थर पर निशान बना देती है उसी प्रकार सतत अभ्यास किसी भी बुद्धि हीन को भी बुद्धिमान बना देता है।

यह कहानी हमें बताती है कि अभ्यास का जीवन में कितना महत्व है । अभ्यास करने से हम जटिल से जटिल चीजों को सीख सकते हैं लेकिन हमें बस उस समझ की जरूरत है जो वरदराज को प्राप्त हुई थी । अगर आप भी अपने जीवन में किसी ऐसे कार्य को लेकर परेशान है जो पूरा नहीं हो रहा है तो लगातार उस पर अभ्यास की तलवार चलाते रहिए और आप पाएंगे कि आपका काम बड़ी ही आसानी से होते चले जा रहे हैं।

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