तुम्हें अकेले चलना होगा – Small Moral stories in Hindi

तुम्हें अकेले चलना होगा
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अपनी कामनाओं के कारण हम कभी उस ज्ञान को नहीं समझ पाते, जिसके कारण हमारे भीतर समझ विकसित होती है । दुनिया में सभी लोगों को वह समझ विकसित नहीं हो सकती, इसलिए यदि आप वह इंसान हो, जो जीवन को समझना चाहता है, तो आपको अकेले ही चलना होगा । शुरू करते हैं आज की Small Moral stories in Hindi “तुम्हें अकेले चलना होगा।”

तुम्हें अकेले चलना होगा – Small Moral stories in Hindi

एक बहुत महान राजा थे । जिन्हें ज्ञान में बहुत रुचि थी । एक बार उनके दरबार में एक महान सन्यासी आने वाले थे । उनके आने के कारण राजा बहुत अधिक प्रसन्न थे । लेकिन वह सन्यासी हर किसी से नहीं मिला करते थे, इसलिए वह महल आये और एक अकेले कक्ष में राजा से मिले ।
राजा ने उन्हें प्रणाम किया और बोले- गुरुजी! आपका बहुत आभार कि आप मेरे महल में आए हो । लेकिन मैं चाहता हूंँ आपके द्वारा दिया गया ज्ञान, मेरी प्रजा भी सुने ।

सन्यासी बोले- राजा बिना उनकी इच्छा के तुम यह कैसे कह सकते हो? कि उन्हें मेरे ज्ञान की जरूरत है ।
राजा बोला- गुरुजी, आप यह कैसी बात कर रहे हैं । हर मनुष्य को ज्ञान की जरूरत होती है, ताकि वह अपना जीवन समझदारी से जी पाए ।
सन्यासी बोले- यह तो तुमने ठीक कहा, मनुष्य को ज्ञान की आवश्यकता होती है, लेकिन ज्ञान तो हर जगह उपलब्ध है फिर मनुष्य उसे क्यों ग्रहण नहीं करता?
राजा बोला- गुरुजी, मुझे यकीन है कि मेरी प्रजा आपके ज्ञान को जरूर ग्रहण कर लेगी । इसलिए मेरी विनती है, आप मेरी बात को स्वीकार कर ले ।

सन्यासी बोले- ठीक है ! राजा आप तो जानते ही है, मेरा निवास स्थान इस महल से बहुत दूर एक ऊंची पहाड़ी पर है । यदि आपको लगता है कि प्रजा को मेरे ज्ञान की आवश्यकता है, तो आप उन्हें लेकर मेरे निवास स्थान तक पहुंचे । आपकी प्रजा को ज्ञान प्राप्त करने के लिए इतना मूल्य तो चुकाना ही होगा ।
सन्यासी की बात सुनकर राजा अत्यंत प्रसन्न हो गया । वह बोला- गुरुजी, मेरी तरह प्रजा भी आपको बहुत मानती है मुझे तो बस कहने की देर है, वे सभी आपके पास पहुंच जाएंगे ।

सन्यासी बोले- ठीक है राजन! आप कल ही प्रजा को लेकर मेरे निवास स्थान पर पहुँच जाना । वहाँ मैं उन्हें अपना अनमोल ज्ञान दूंगा ।
ऐसा कहकर सन्यासी महल से चले गए ।

सन्यासी के महल से जाते ही, राजा सेनापति से बोले- पूरे राज्य में ढिंढोरा पिटवा दो, कि उन्हें कल सन्यासी जी से मिलने के लिए जाना है । राजा की बात सुनकर सेनापति ने ऐसा ही किया । सन्यासी के दर्शन की बात सुनकर सभी लोग बड़े उत्सुक थे । वह किसी भी कीमत पर सन्यासी के दर्शन करना चाहते थे ।
प्रजा का ऐसा उत्साह देखकर, राजा के अंदर आत्मविश्वास आ गया कि अब तो प्रजा के भीतर वह समझ उत्पन्न हो जाएगी जिससे कि उनका जीवन खुशहाल बनेगा ।

अगले दिन – [Small Moral stories in Hindi]

दूसरे दिन सुबह सभी लोग बहुत उत्सुकता से, राजा-रानी के साथ पहाड़ की तरफ चल पड़े ।

प्रजा ने राजा के साथ थोड़ी ही दूरी तय की होगी, कि प्रजा को एक जगह तांबे के सिक्के दिखाई दिए । उन सिक्कों को देखकर बीस प्रतिशत जनता, तांबे के सिक्कों को बटोरने में लग गई । राजा उनसे कहने लगे- यह तुम लोग क्या कर रहे हो? इन सिक्कों को छोड़ दो । हमें सन्यासी जी से मिलने जाना है।
भीड़ में से एक व्यक्ति बोला- राजा, हम बहुत गरीब है, अभी इस वक्त यह तांबे के सिक्के हमारे लिए बहुत जरूरी है इसलिए हमें क्षमा करें । हम आपके साथ आगे नहीं जा सकते ।

उन लोगों की बात सुनकर राजा ने उन्हें वहीं छोड़ दिया और आगे की ओर निकल पड़े । अब वह आगे बढ़े तो उन्हें एक जगह चांदी के सिक्के का ढेर दिखाई दिया । उन सिक्कों को देखकर आधी से ज्यादा जानता, उन्हें बटोरने में लग गई ।
राजा उन्हें भी छोड़कर आगे की ओर निकल पड़े । आगे और बड़े तो सोने के सिक्के का ढेर दिखाई दिया । सोने के सिक्के देखकर तो बची हुई जनता और भी पागल हो गई । वह उन सोने के सिक्कों को बटोरने में लग गए । और अब सिर्फ राजा-रानी ही बचे थे, जो की पहाड़ की तरफ जा रहे थे ।

अब वे पहाड़ के कुछ नजदीकी आने लगे थे, कि उन्हें हीरे के आभूषण दिखे । उन आभूषणों को देखकर रानी से नहीं रहा गया और वह भी उन आभूषणों देखने लगी और वहीं पर रुक गई ।
मजबूरी में राजा को रानी को भी छोड़ना पड़ा और वह आगे बढ़ गए । राजा जब सन्यासी जी के पास पहुंचे, तब ना प्रजा उनके साथ थी, ना सैनिक ना रानी । वह अकेले ही थे।

राजा मंजिल तक पहुंच गए – [Small Moral stories in Hindi]

राजा को अकेला देखकर सन्यासी बोले- अरे! राजन । आप अकेले आए हो, आपकी प्रजा कहाँ है । मैंने तो आपकी प्रजा के बैठने के लिए, सभी इंतजाम करवा लिए थे । लेकिन आप तो अकेले ही आए हो ।
राजा बोला- गुरुजी, जब मैं निकला था, तब मेरे साथ प्रजा थी लेकिन आते-आते मैं अकेला ही रह गया ।

सन्यासी बोले- राजन! शायद अब तुम मेरी बात को समझ चुके होंगे, कि ज्ञान-मार्ग पर मनुष्य को अकेले ही चलना पड़ता है । यह इंसान के अंदर की आवाज होती है, जो कि उसे इस रास्ते पर ले आती है । लेकिन संसार के लोग तो कामना, भोग और धन के लोभी होते हैं । उनके लिए ज्ञान को ग्रहण करना अत्यंत मुश्किल है ।
सन्यासी फिर बोले- राजा किसी बात को सुन लेना और समझ लेना एक बात होती है और उसे अपने जीवन में उतरना बिल्कुल दूसरी बात होती है । इसलिए यदि आपकी स्वयं की इच्छा है, तो आपको अकेले चलना होगा ।
भीड़ कभी-भी एक साथ ज्ञान या समझ नहीं प्राप्त कर सकती ।

राजा ने सन्यासी के आगे हाथ जोड़ लिए । वह बोले- गुरुजी, अब मुझे समझ आ रहा है कि बैठने की व्यवस्था के साथ-साथ अपने तांबे, चांदी, सोने और हीरो को जगह-जगह रखवाने की व्यवस्था भी की थी, ताकि आप मुझे समझा सके, कि जो मनुष्य धन को देखकर रुक जाता है, वह फिर कभी ज्ञान की तरफ नहीं आ सकता ।
राजा ने सन्यासी का आभार व्यक्त किया और वह फिर अपने महल लौट गया।

कहानी से शिक्षा

इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है ज्ञान उसी को प्राप्त होता है जो अपनी कोई कीमती चीज छोड़ने को तैयार हो । इसलिए आपको जीवन में जो भी समझ आता जाए, इस पर आप चलते जाए और किसी की प्रतीक्षा ना करें । क्योंकि हो सकता है प्रतीक्षा करने से आप भी वहीं रुक जाए । इसलिए जीवन में जो भी आपको बेहतर, सुंदर और अच्छा दिखाई देता है उसके लिए तुम्हें अकेले चलना होगा ।

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