एक महान गुरु की शिक्षा की कहानी | Success Motivational Story in Hindi

एक महान गुरु की शिक्षा की कहानी | success motivational story in hindi
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आज की कहानी का शीर्षक है “एक महान गुरु की शिक्षा की कहानी ।” एक शिष्य अपने गुरु से ज्ञान-मार्ग और भक्ति-मार्ग के विषय में सवाल करता है । गुरु कैसे उसकी जिज्ञासा को शांत करते हैं, यह जानने के लिए इस कहानी में हमारे साथ बने रहे ।

एक महान गुरु की शिक्षा की कहानी | Success Motivational Story in Hindi

एक महान सन्यासी थे, वह रोज अपने शिष्यों को शिक्षा दिया करते थे । उनमें से एक शिष्य बड़ा जिज्ञासु था, उसके मन में कुछ प्रश्न थे, इसलिए एक दिन वह गुरु से पूछने लगा- गुरुजी, मैं आपसे कुछ जानना चाहता हूंँ ?
गुरुजी बोले- अवशय, क्या जानना चाहते हो तुम ?

शिष्य बोला- ईश्वर की प्राप्ति करने के लिए कौन-सा रास्ता सबसे अच्छा है, ज्ञान मार्ग या भक्ति मार्ग ? अध्यात्म के क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए इन दोनों में से, मुझे कौन-से रास्ते को चुनना चाहिए ?

गुरुजी बोले- चाहे तुम किसी भी मार्ग को चुनो लेकिन भीतर श्रद्धा होनी चाहिए, उसी से ही ईश्वर की प्राप्ति हो सकती हैं।
शिष्य बोला- गुरुजी, मैं इतना जनता हूँ कि दोनों की मंजिल तो एक है, लेकिन दोनों के रास्ते में तो भिन्नता होगी ? मैं कैसे जानू कि मेरे लिए कौन-सा रास्ता अच्छा है ?

गुरुजी बोले- तुम भक्ति-मार्ग के जरिए ईश्वर को जान लो या ज्ञान-मार्ग के जरिये, लेकिन जानने का कार्य तो जीव को ही करना होता है । यह तुम्हें खुद तय करना होगा कि तुम किस रास्ते जाना चाहते हो ।

शिष्य बोला- गुरुजी मैं समझ गया सबसे पहले मुझे यह पता लगाना होगा कि मैं किस मार्ग में जाने लायक हूंँ । मैं खुद ही इसका निरीक्षण करता हूँ ।

ऐसा कहकर शिष्य चला गया ।
वह सोचने लगा, ज्ञान और भक्ति-मार्ग में से सबसे पहले मैं ज्ञान-मार्ग की तरफ बढ़ता हूंँ क्योंकि यही मार्ग सबसे उत्तम होता है ।
शिष्य ने बहुत सारे वेद-उपनिषद, ग्रंथों आदि का अध्ययन करना शुरू कर दिया । वह बहुत खुश था कि उसने सारी बातों को अच्छे से कंठस्थ कर लिया है, अब वह ज्ञानमार्गी हो गया है ।
उसने सोचा अब वह गुरु के पास जाकर कह सकता है कि वह ज्ञानमार्गी हो गया है ।

शिष्य गुरु के पास पहुँचा ।
शिष्य बोला- गुरुजी, मैंने अपना रास्ता चुन लिया है मैं ज्ञानमार्गी हो चुका हूंँ । मैंने सारे वेद-उपनिषद अच्छे से कंठस्थ कर लिए है ।
गुरुजी बोले- अच्छा ! तो सच-सच बताओ ? क्या तुम्हारे भीतर लालच, क्रोध, मोह-माया सब खत्म हो गया है ?

शिष्य बोला- नहीं गुरुजी, ऐसा तो कुछ नहीं हुआ, मैं जब भी वेदों का अध्ययन करता था अगर कोई मुझे उस वक़्त टोक देता था तो मुझे बहुत क्रोध आने लगता था ।
गुरु बोले- तो फिर तुम अभी ज्ञान-मार्गी नहीं हो पाए हो । तुमने अभी कोई रास्ता नहीं चुना है । ख़ुद को ज्ञान-मार्गी तब समझना जब तुम्हारे अन्दर क्रोध, लालच, मोह माया पूरी तरह से खत्म हो जाये ।

शिष्य बोला- ठीक है, गुरुजी मैं अब भक्ति-मार्ग पर चलता हूँ, शायद वही मेरे लिए सही मार्ग है ।

ऐसा कहकर शिष्य चला जाता है वह मंदिर जाता है दिन-रात भजन-कीर्तन करता है । उसे ऐसा करते हुए बहुत महा बीत जाते हैं । वह सोचता है अब मैं भक्ति-मार्गी हो गया हूंँ और मुझे ऐसा करते हुए बहुत वक्त भी हो गया है । अब मैं गुरूजी के पास जाता हूंँ ।

शिष्य बोला- प्रणाम ! गुरुजी, अब मुझे अपना रास्ता पता चल चुका है, मैं भक्ति-मार्गी हूंँ । भक्ति ही मेरे लिए सबसे अच्छा विकल्प था ।

गुरुजी बोले- अच्छा, तो तुम ईश्वर की भक्ति में सब कुछ भूल जाते हो ? या कुछ और भी याद आता है ?
शिष्य बोला-
गुरुजी, मुझे मेरे माता-पिता याद आ जाते है खासकर मेरी माँ वह मेरे लिए अच्छा-अच्छा स्वादिष्ट भोजन बनाती थी । यहाँ तो भोग-प्रसाद के रूप में सिर्फ सादा भोजन ही मिलता है ।

गुरुजी बोले- फिर तुम भक्ति-मार्ग पर भी नहीं चल रहे हो क्योंकि अच्छे भोजन का लालच तुम्हारे मन से समाप्त नहीं हुआ हैं। जिस दिन ऐसे हो जाओ कि पास भोजन का भंडार लगा हो लेकिन, ईश्वर के दर्शन लिए सब कुछ भूल कर नंगे पाँव ही भाग निकलो ।

ऐसा सुनकर शिष्य निराश हो गया
शिष्य बोला- गुरुजी, मैं तो दोनों मार्गों में चलने में असफल हो गया । अब मैं किस प्रकार अपनी यात्रा आगे बढ़ाऊँ । मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा हैं ,कृपया ! आप ही मेरा मार्गदर्शन करें ।

गुरुजी बोले- यहाँ कुछ ही दूरी पर श्यामू नाम का एक गरीब व्यक्ति अपनी पत्नी के साथ रहता है, तुम उसके जीवन को देखो । और उसके बाद एक स्त्री घाट के नज़दिक बाज़ार में मिट्टी के खिलौने बेचकर अपना जीवन-यापन करती हैं तुम उसे भी देखो और इन दो उदाहरणों से जो तुमने सिखा वह आकर मुझे बताओं ।

शिष्य बोला- गुरुजी, यहाँ मैं ईश्वर की प्राप्ति करने आया हूंँ और आप मुझे किसी व्यक्ति के जीवन में क्या चल रहा है, देखने को कह रहे हो, इससे मुझे क्या ही प्राप्त होगा ?

गुरुजी बोले- जब तुम यह कार्य कर लोगे, तब तुम समझ पाओगे तुम्हें क्या प्राप्त हुआ है ।

शिष्य ने गुरु जी की बात मान ली और वह उस व्यक्ति के जीवन को देखने के लिए सदैव उसके घर के आस-पास ही घूमता रहता था । उसने सोचा ऐसे सिर्फ़ देखने से मुझे क्या पता चलेगा, मैं इससेे दोस्ती बढ़ाता हूँ तभी ठीक से मुझे इसके जीवन के बारे में पता चलेंगा ।
शिष्य ने ऐसा ही किया उसने श्यामू से जान-पहचान बड़ाई और उसे पूछने लगा- तुम अपने जीवन में खुश हो ?

श्यामू ने कहा- बाकी सब कुछ तो ठीक है । ईश्वर हमें समय पर भोजन दे देता है, लेकिन हमारी कोई संतान नहीं है और इस बात को लेकर मेरी पत्नी हमेशा परेशान रहती है । मैं उसे समझाता रहता हूंँ कि परेशान होने की कोई जरूरत नहीं है, मैं उसके साथ हूंँ ।

शिष्य बोला- हाँ, आप बहुत अच्छे व्यक्ति हैं आप अपनी पत्नी का साथ देते हैं लेकिन उनका परेशान होना भी लाजमी है क्योंकि एक वक्त के बाद हर स्त्री को संतान की कमी महसूस होती है ।

श्यामू ने कहा- हाँ, वह बहुत परेशान होती है, वह मुझसे कहती भी है कि आप दूसरा विवाह कर लो, लेकिन मैं उससे प्रेम करता हूंँ और किसी भी कीमत पर, उसके अलावा किसी और से विवाह नहीं कर सकता । चाहे यह समाज मुझ पर कितना ही जोर डालें । मुझे पता है मुझे क्या करना है ।
यह सब सुनकर शिष्य सोचने लगा यह तो बहुत साधारण-सी बात है इसमें ऐसा क्या है जो मुझे कोई ज्ञान प्राप्त होगा ।

अब शिष्य ने उस मिट्टी के खिलौने बनाने वाली स्त्री पर नजर रखना शुरू कर दिया, कि वह अपना जीवन कैसे जीती है ?
शिष्य दिन-रात उस ठेले वाली स्त्री को देखता रहता था, वह अपने खिलौने बेचने के लिए बहुत मेहनत करती थी । वह ज़रा भी इधर-उधर होती तो बच्चे उसके खिलौने लेने की कोशिश करते इसलिए वह हमेशा सजग रहती थी ।

शिष्य ने सोचा मुझे इससे बात करनी चाहिए कि आखिर इसके जीवन में क्या चल रहा हैं ? वह एक दिन उस स्त्री के पास आया और कहने लगा । आप बड़ी मेहनती स्त्री हैं इतनी गर्मी में भी आप इन खिलौनों को बेचने का काम कर रही है । आपके घर में कौन-कौन है ?

स्त्री बोली- कहने को हैं पर नहीं भी, दो साल पहले मेरी शादी हुई थी । हम दोनों बहुत खुश थे लेकिन हमारी आर्थिक स्थिति सही नहीं थी इसलिए मेरे पति कमाने के लिए दूर-परदेस चले गए । उन्होंने वादा किया था कि एक महीने में लौट आऊँगा । अब दो साल होने को है लेकिन अभी तक उनका कोई अता-पता नहीं है । मैं बस दिन-रात उनका इंतजार करती हूंँ लेकिन अब तो मुझे लगता है कि यह ठेला और खिलौने यही मेरे लिए सब कुछ है ।

शिष्य ने थोड़ी सहानुभूति जताते हुए कहा- आप फिक्र मत कीजिए वह आपको लेने जरूर आएंगे ।

तभी एक दूसरी स्त्री दौड़ते हुए उनकी तरफ आती है और कहती है अरे देखो ! तुम्हारा पति लौट आया है , तुम्हारे बारे में ही पूछ रहा था।

यह सब सुनकर वह स्त्री बहुत ज्यादा प्रसन्न हो गई जैसे की पूरी दुनिया उसके सामने विलुप्त हो गई हो, बच्चे उसके खिलौने लेने की कोशिश कर रहे थे लेकिन उसका ध्यान उधर नहीं था । वह गर्मी, धूप, खिलौने सब कुछ भूलकर ऐसे भागती है कि जैसे उसे सब कुछ मिल गया हो ।

शिष्य कुछ कहता, इससे पहले ही वह अपनी पति से मिलने के लिए निकल जाती है ।

शिष्य सोचने लगा, गुरु जी मुझे यह सांसारिक चीजें क्यों दिखा रहे हैं इन सब से क्या मुझे ज्ञान की प्राप्ति होगी, इसलिए वह गुरुजी के पास लौट जाता है ।

शिष्य बोला- गुरुजी, जो आपने मुझे करने को कहा था, वह मैंने कर दिया है लेकिन इन दोनों घटनाओं के उदाहरण से मुझे कुछ ठीक से समझ नहीं आ रहा है कि इससे ज्ञान और भक्ति-मार्ग का क्या लेना-देना है ।
शिष्य ने गुरुजी को सारी घटना सुना दी ।

गुरुजी बोले- श्यामू अपनी पत्नी का साथ किसी भी परिस्थिति में नहीं छोड़ना चाहता इससे पता चलता है कि वह जानता है कि उसे क्या करना है वह अपने फैसलों पर खड़ा हैं समाज या किसी और पर भरोसा नहीं करता, उसको अपनी स्थिति का ज्ञान है ।

दूसरी ओर वह स्त्री जो कि अपनी पति का इंतजार कर रही थी उसके आते ही उसने अपने ठेला छोड़ दिया, जो उसके जीने का साधन था ।

शिष्य बोला- गुरुजी, यह सब तो मैं जानता हूंँ पर इन दोनों घटनाओं में ज्ञान-मार्ग और भक्ति-मार्ग कौन-सा है ?

गुरु बोले- श्यामू का फैसला अटल था उसने ज्ञान मार्ग को अपना रखा था ज्ञान-मार्ग में हम जब किसी चीज पर श्रद्धा रख लेते हैं तो उसे कभी नहीं त्यागते जैसे श्यामू अपनी पत्नी को किसी भी परिस्थिति में नहीं छोड़ना चाहता था ।

दूसरी तरफ वह स्त्री जो भक्ति-मार्ग से संचालित थी, जिसका ध्यान सिर्फ अपने पति पर था इसलिए अपनी पति के लिए वह ऐसे भागी कि उसने संसार को ही त्याग दिया हो ।

गुरु बोले-“ना इधर ज्ञान-मार्ग है, ना भक्ति-मार्ग है इधर बस एक ही मार्ग है जिसे प्रेम-मार्ग कहते हैं ।”
यदि हृदय में प्रेम और करुणा ना हो, तो व्यक्ति ना ज्ञान-मार्ग पर चल सकता है ना ही भक्ति-मार्ग पर ।

असल में ज्ञान मार्ग और भक्ति मार्ग एक ही बिंदु से निकलते हैं जिसे प्रेम-मार्ग कहते हैं, उसके बिना ईश्वर की प्राप्ति संभव नहीं है । तुम्हें भी यदि ज्ञान प्राप्त करना है तो मार्ग कौन-सा है इस पर ध्यान देने की वजह, तुम्हारी आत्मा का केंद्र क्या है उस पर ध्यान दो तभी तुम ज्ञान प्राप्त कर सकते हो ।

यह सुनते ही शिष्य ने गुरु के सामने हाथ जोड़ लिए और कहने लगा- गुरुजी आप सत्य कहते हैं यदि हृदय में करुणा और प्रेम ना हो तो हम जीवन में कुछ भी कर ले, वह कभी सार्थक नहीं होता । जैसे बिना प्रेम और करुणा के मैं भक्ति-मार्ग और ज्ञान-मार्ग की तरफ बढ़ रहा था । आज आपने मेरी जिज्ञासा को शांत कर दिया हैं ।

यह कहानी हमें यह शिक्षा देती है, कि जीवन में प्रेम और करुणा का कितना महत्व है । रास्ता चाहे जो भी हो, लेकिन जब हृदय में श्रद्धा और त्याग दोनों होते हैं तो मंजिल अवश्य मिलती है ।

उम्मीद करते हैं आपको हमारी Success Motivational Story in Hindi “एक महान गुरु की शिक्षा की कहानी” पसंद आयी होगी । आप हमें social media पर भी follow कर सकते हैं CRS SquadThink Yourself और Your Goal


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