सुल्तान का कर्ज | प्रेरणादायक कहानी

सुल्तान का कर्ज | प्रेरणादायक कहानी
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कहानी का शीर्षक है “सुल्तान का कर्ज” । जीवन में कुछ काम ऐसे होते है जिनको अगर समय रहते नहीं किया जाये तो अंत में पछताने के अलावा कुछ नही रहता । आज की कहानी भी इस बारे में ही है कि एक सुल्तान अपना क़र्ज़ पूरी ज़िंदगी नहीं चुका सके ।

सुल्तान का कर्ज | प्रेरणादायक कहानी

बहुत समय पहले एक प्राचीन कवि थे, वह बहुत अच्छे लेखक थे। वह अपने शेरों की किताब को तीस सालों से लिख रहे थे, लेकिन वह सिर्फ लिखकर अपनी आमदनी नहीं कमा पा रहे थे वह आर्थिक तंगी से थोड़े से परेशान हो गए थे। आस-पास के लोगों ने कहा आपको पैसों की जरूरत है, तो आप सुल्तान के पास जाइए वह आपकी जरुर मदद करेंगे ।

लेखक ने सोचा यह सब ठीक कह रहे हैं सुल्तान को मेरे लिखे शेर जरूर पसंद आएंगे, वह मेरी मदद जरूर करेंगे। ऐसा सोच कर वह सुल्तान के दरबार में जा पहुंचा।

सुल्तान बोला- कहो कौन हो तुम? इस दरबार में क्यों आए हो ?
कवि बोला- मैं एक कवि हूँ, सुना है आप कला प्रेमी है इसलिए आपकी इजाजत हो तो मैंने कुछ शेर लिखे है । मैं आपके सामने कुछ नमूने पेश कर सकता हूंँ ।

सुल्तान बोला- जरूर, मैं तो कला का बहुत बड़ा कद्रदान हूँ !
कवि ने अपनी पुस्तक निकाल कर अपने कुछ शेर सुनाएँ।
सुल्तान शेर सुनकर बहुत प्रभावित हुआ । वाह ! तुम क्या लिखते हो, तुम्हारी कला का कोई जवाब नहीं । तुमने मेरा दिल खुश कर दिया है । तुम्हारी पुस्तक में कितने शेर है ?
कवि ने कहा- मेरी पुस्तक में सात हज़ार शेर है ।

सुल्तान ने कहा– ठीक है मैं तुम्हें तुम्हारे हर एक शेर के लिए एक दिनार भिजवा दूँगा ।
जब कवि ने यह सुना तो वह बहुत खुश हो गया । उसने सुल्तान का आभार किया और कहने लगा ।
कवि ने कहा- सुल्तान में आपका इंतजार करूंगा आपका बहुत-बहुत शुक्रिया, मेरी कला को समझने के लिए ।
इस तरह कवि अपने घर चला गया ।

सुल्तान ने कवि की सारी कहानी अपने मंत्री को सुनाई और कहने लगा, ऐसे शेर मैंने अपने जीवन में कभी नहीं सुने थे सचमुच वह कला का धनी है ।
मंत्री बोला-सुल्तान क्या आप जानते हैं? वह कौन है?

सुल्तान बोला- हाँ, जानता हूंँ, वह एक कवि है ।
मंत्री बोला- महाराज वह कवि तो है, लेकिन वही शिया है और हम सुन्नी है, हमारी जाति में भेद है ।

सुल्तान ने जब यह सुना कि वह उसकी जाति का नहीं है, उनके मन में घृणा का भाव उत्पन्न हो गया । थोड़ी देर पहले जो कवि के शेरों की तारीफ कर रहे थे वह भावना न जाने कहां उड़ गई ।

सुल्तान ने अपने मंत्री को कहा उसे सात हज़ार दीनार देने की जरूरत नही है, कुछ दिरहम सिपाही के हाथों भिजवा दो।

कवि सुल्तान का इंतजार कर रहे थे तभी सिपाही ने आकर उन्हें छोटी-सी पोटली में कुछ दीरहम थमा दिए । कवि सोचने लगे यदि कुछ दीरहम ही भिजवाने थे तो अपनी जुबान क्यों दी । वह तो सुल्तान है कैसे अपना वादा तोड़ सकते है । उन्हें क्रोध आने लगा पर वह ठहरा कवि इसलिए अपना क्रोध जाहिर करने का उनके पास तो बस एक ही हथियार था लिखना ।

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उसने सुल्तान के खिलाफ शेर लिखना शुरू कर दिया और धीरे-धीरे उसके शेर हर जगह मशहूर हो गए । लोगों के मन में सुल्तान के प्रति द्वेष उत्पन्न हो गया और वह सुल्तान विरोधी शेर गली-मोहल्ले में गाने लगे ।
जब मंत्री के कानों पर सुल्तान विरोधी शेर पड़े तब उन्होंने राजा को समझाया ।

मंत्री ने कहा- सुल्तान हमने कवि के साथ ठीक नहीं किया, आपके खिलाफ जनता में आक्रोश आ गया है । आप पर लोगों का विश्वास कम हो गया हैं । जनता में यह धारणा फैल गई है कि आप अपनी कही हुई बातों से मुखर जाते हैं ।

सुल्तान ने कहा- हाँ, तुम सच कह रहे हो । मैंने यह सोचकर उसे धन नहीं दिया कि वह शिया है, लेकिन मुझे कहां पता था कि कलम की ताकत इतनी होती है । कि वह मेरी इज्जत पर ही बन आयेगी ।
सुल्तान ने और देरी नहीं की, सात हज़ार दीनार ऊँठ पर रखवाए और मंत्री सहित उसके घर की तरफ निकल गए ।
जैसे ही सुल्तान कवि के दरवाजे पर पहुंचे, वह क्या देखते हैं कि कवि के घर से उसका जनाजा निकल रहा है ।

यह देखकर सुल्तान आत्मग्लानि से भर गए, कि वह अपना दिया हुआ वादा पूरा न कर सके । अब कवि के घर में उनकी बड़ी बेटी और दामाद ही बचे थे । सुल्तान ने बहुत कोशिश की, कि सात हज़ार दीनार कवि की बेटी को दे दिये जाए, लेकिन वह बहुत खुद्दार थी उसने दीनार लेने से मना कर दिया ।

कवि की बेटी ने कहा- आपको जीवन भर इस बात का पछतावा होना चाहिए कि सुल्तान होकर भी अपना वादा नहीं निभा पाएं। एक कवि का कर्ज आप पर उम्र भर चढ़ा रहेगा ।

इस कहानी से हमे कई बातें सीखने को मिलती है:-

  1. कभी भी किसी व्यक्ति के हुनर को उसकी जाति के आधार पर नहीं तौलना चाहिए।
  2. कभी भी दूसरे के बहकावे में ना आये जैसे बल्कि खुदके विवेक से काम करें।
  3. किसी का उधार हो या एहसान हो अगर आप उसे चुकाना चाहते है तो समय रहते चूका दें क्योंकि एक बार समय निकल गया तो पछताने के अलावा कुछ नही बचता।
  4. किसी को जुबान सोच-समझ कर देनी चाहिए अन्यथा हम उसे पूरा नहीं कर पाए तो हमें जीवन भर पछतावा होता रहेगा ।

उम्मीद करते हैं आपको हमारी प्रेरणादायक कहानी “सुल्तान का कर्ज” पसंद आयी होगी ।

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