पैसों की ताकत: सौरभ और जतिन की दोस्ती की सच्चाई

पैसों की ताकत : सौरभ और जतिन की दोस्ती की सच्चाई
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आज की कहानी का शीर्षक है “पैसों की ताकत ।” आज के समय में पैसा ही इंसान के लिए सब कुछ हैं । पैसों के आगे इंसान की कोई कीमत नही हैं, इसलिए हमें खुद को मजबूत बनाने के लिए पैसा कामना होगा । आज हम ऐसी ही एक कहानी ले कर आये हैं ‘पैसों की ताकत’।

पैसों की ताकत: सौरभ और जतिन की दोस्ती की सच्चाई

सौरभ नाम का एक लड़का था । वह बहुत सीधा और सरल था । वह मिडिल-क्लास परिवार का था, उसे सब बेवकूफ बनाते रहते थे । भावनाओ के नाम पर या मदद के नाम पर उससे सब काम निकलवाया करते थे । सौरभ गरीब था, तो अक्सर अपना मार कर पैसें जमा किया करता हैं ।
दूसरी तरफ उसका दोस्त जतिन था, जो कि हमेशा सौरभ से हर तरीके की मदद माँग लिया करता था और भावनाओं का खेल खेलकर हमेशा उसी को फँसा दिया करता था ।

एक दिन जतिन सौरभ से मिलने के लिए आया ।
जतिन- सौरभ मुझे पैसों की बहुत जरूरत हैं, मुझे दस हज़ार चाहिए, अगले महीने तुझे पक्का लौटा दूँगा ।
सौरभ- तुझे पता तो हैं, मैं इतना नही कमाता, वरना मैं तेरी मदद जरूर करता ।
जतिन- तू मेरे बचपन का दोस्त है!! क्या तुझे मुझ पर यकीन नहीं है? मैं तुझे पक्का लौटा दूँगा ।

क्योंकि सौरभ जतिन को अच्छे से जानता था तो उसे पता था, कि वह अक्सर उससे काम निकलवाया करता है, पर वह हमेशा ही उसकी चिकनी-चुपड़ी बातों के आगे, कभी कुछ नहीं बोल पाता था, इस बार भी कुछ ऐसा ही हुआ ।
सौरभ ने कहा- हाँ, मुझे यकीन है, ठीक है मैं कोशिश करता हूँ।
जतिन ने कहा- याद है सौरभ बचपन में हम कैसे हर काम मिल-बाँट के किया करते थे ? आज भी तुम मेरे हर काम में साथ देते हो और मैं जानता हूंँ, तुम मुझे पैसे जरूर दोगे ।
जतिन के तर्कों के आगे हमेशा सौरभ चुप हो जाया करता था, इस बार भी ऐसा ही हुआ, उसे जतिन को पैसे देने पड़े ।

सौरभ को पैसे दिए हुए छह महीने बीत गए लेकिन जतिन ने उसे पैसे वापस नहीं लौटाए ।
सौरभ के मन में कई बार आया कि वह अपने पैसे मांगे, लेकिन दोस्ती के कारण उसकी हिम्मत नहीं हुई कि वह अपना मुंह भी खोल पाए । इसलिए उसने सोचा कि जब जतिन को पैसे देने होंगे, तब वह खुद ही दे देगा ।

धीरे-धीरे जतिन ने सौरभ से बात करना छोड़ दिया । उसे अब उसकी जरूरत नहीं थी । उसके पास बहुत पैसे आ चुके थे, वह समझ गया था कि अब सौरभ उसके किसी काम का नहीं हैं ।

एक दिन जतिन और सौरभ की मुलाकात हुई । सौरभ तो जतिन को देखकर बहुत खुश हुआ, वह चाहता था वह पहले की तरह बातचीत करें, लेकिन जतिन के व्यवहार में बदलाव आ चुका था । वह सौरभ से उस तरीके से बात नहीं करता था जैसे कि पहले किया करता था । धीरे-धीरे सौरभ को एहसास होने लगा कि वह उससे कट रहा है इसलिए उसने भी उससे बात करना बंद कर दिया ।
कुछ साल बाद

सौरभ बहुत हताश हो गया था उसे अचानक से पैसों की बहुत जरूरत पड़ गई थी, इसलिए उसने सोचा मुझे जतिन से पैसे वापस लेने ही होंगे । वह जतिन से मिलने के लिए गया ।

सौरभ- जतिन कैसे हो ?
जतिन- बढ़िया ! तुम बताओ?
सौरभ-
जतिन अभी मेरी हालत बिल्कुल भी ठीक नहीं है, मुझे पैसों की बहुत जरूरत है क्या तुम मुझे दस हज़ार लौटा सकते हो ?
यह सब सुनते ही उसका चेहरा उतर गय।
जतिन बोला- हाँ, क्यों नहीं लौटता हूंँ, लौटता हूंँ ।

सौरभ बोला- मुझे कल ही पैसे चाहिए, बहुत जरूरत है ।
जतिन बोला- क्या बात कर रहे हो तुम!! इतनी जल्दी मैं तुम्हें पैसे कैसे दे दूँगा । मेरी भी हालत कब से खराब है, तुम मुझे कम से कम छह महीने का वक्त दो, मैं तुम्हें धीरे-धीरे करके पैसे लौटता हूंँ ।

सौरभ बहुत निराश हुआ जतिन का जवाब सुनकर और अपना मन मारकर कहा
सौरभ बोला- ठीक है।
ऐसा कह के सौरभ घर लौट आया
अकेले में वह सोचने लगा, हो सकता है जतिन के पास सचमुच अभी पैसे न हो वह मुझे धीरे-धीरे लौटा देगा ।

सौरभ जतिन को कई दिन तक फोन करता रहा, लेकिन जतिन ने उसका फोन उठाना बंद कर दिया । वह उसके घर गया पर वह कहीं और रहने लगा था । वह समझ गया कि वह पैसे देना नहीं जाता इसलिए वह ऐसा कर रहा है ।

उसने सोचा अब मुझे अपनी ज़िंदगी ख़ुद बदलनी हैं नहीं तो, लोग मुझे ऐसे ही बेफकूफ़ बनाते रहेगें ।
धीरे-धीरे उसने खुद पर काम करना शुरू किया, उसने अपनी नौकरी छोड़कर, खुद का बिजनेस करने का सोचा । उसे यह काम करते हुए बहुत डर लग रहा था लेकिन उसे खुद को बदलना था इसलिए उसको यह जोखिम तो किसी भी हाल में उठाना था ।

बस उसने हिम्मत करके अपना काम शुरू किया । जितना वह लोगों से मिलता गया, उतना वह लोगों को जानता गया, कि कौन उसको बेवकूफ बना रहा है या कौन सही में उसके साथ है । लंबे टाइम तक काम करने से उसके भीतर एक आत्मविश्वास आ गया, उसे ख़ुद भी पता नहीं चला कि धीरे-धीरे कैसे ये बदलाव आ गया । सौरभ अब एक बड़ी कंपनी का मालिक बन चुका था । उसके चर्चे जगह-जगह होने लगे ।

जतिन तक जब यह बात पहुँची तब वह सौरभ से मिलने पहुँचा और बोला – अरे यार, मुझे जल्दी-जल्दी मे अपना घर खाली करना पड़ा, मै इतना बिजी था कि तेरा फोन ही नही उठा पा रहा था ।
तुम तो बहुत बड़े आदमी बन गए हो, अपने इस गरीब दोस्त को भूल मत जाना । सौरभ जतिन की बाते सुनता रहा और हल्के-से मुस्कुराता रहा ।

सौरभ जतिन में वैसे ही बातचीत होती गई जैसे पहले हुआ करती थी, जतिन अपने घर को लौट गया ।
सौरभ की आंखें नम हो गई वह सोचने लगा कि जब इंसान के पास पैसा होता है, तो सब दोस्त अपने होते हैं और जब उसके पास कुछ नहीं होता सब कटने लगते है, उसने जिंदगी की कड़वी हकीकत को बहुत करीब से अनुभव किया था ।

आज के युग में पैसा ही सब कुछ हो गया है रिश्ते और भावनाएँ तो सिर्फ इस्तेमाल की चीज रह गई है । मनुष्य को खुद को पैसों से मजबूत रखना चाहिए इसलिए नहीं कि उसे किसी को नीचा दिखाना है, बल्कि इसलिए कि वह उन लोगों से बच पाए, जो उन्हें बेवकूफ बनाते हैं ।

उम्मीद करते है आपको हमारी सौरभ और जतिन की दोस्ती की सच्चाई कहानी “पैसों की ताकत” पसन्द आयी होगी । आप हमें social media पर भी follow कर सकते हैं CRS SquadThink Yourself और Your Goal


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