मन की उथल-पुथल । गौतम बुद्ध की प्रेरणादायक कहानी
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मन की उथल-पुथल के कारण हम अक्सर उस परिस्थिति से दूर भागना चाहते हैं, जो हमें परेशान करती हैं । लेकिन दूर भागने से कभी भी उस समस्या का हल नही निकलता । आज हम आपको बताने वाले है की जब आपके मन में उथल-पुथल मची हो तो इस परिस्तिथि में आप क्या करें ।

मन की उथल-पुथल । गौतम बुद्ध की प्रेरणादायक कहानी

एक बार की बात है, एक गरीब मजदूर अपनी पत्नी और दो बच्चों के साथ रहता था । वह पूरा दिन मेहनत करता, रात में भोजन करके सो जाता । उसका रोज़ का यही काम था । उसकी जिंदगी बहुत ही उबाऊ हो चुकी थी । ऊपर से पैसों की इतनी तंगी थी कि यदि एक दिन भी मजदूरी ना करे तो भोजन ही नही मिलता था, इसके कारण वह हमेशा चिड़चिड़ा-सा रहता था । उसको अपना जीवन एकदम नरक की तरह लग रहा था ।

वह इस नरक से निकलना चाहता था, लेकिन अपनी पत्नी और बच्चों के बारे में सोच कर रूक जाया करता था । लेकिन एक दिन उसकी मन की उथल-पुथल इतनी बढ़ गई कि उसने फैसला किया कि अब वह यहाँ नहीं रहेगा, उसने कुछ नहीं सोचा बस रात के अंधेरे में उठा और अपने घर से निकल गया । उसे कुछ नहीं पता था कि वह कहाँ जा रहा है, लेकिन बस कहीं दूर जाना चाहता था ।

चलते चलते उसे सुबह हो गई और वह क्या देखता है कि एक पेड़ के निचे बुद्ध अपने शिष्यों के साथ बैठे हुए हैं । उसने सोचा मैं ऐसे कब तक भटकता रहूँगा । इससे अच्छा है कि मैं भी संन्यासी बन जाऊँ और यहीं पर अपनी जिंदगी गुज़ारूँ।

वह बुद्ध के पास गया और उन्हें प्रणाम करके कहने लगा
व्यक्ति बोला- हे बुद्ध! मैं अपने जीवन से बहुत थक चुका हूंँ, इसलिए अब सन्यासी बनकर आपकी सेवा करना चाहता हूंँ ।
बुद्ध बोले- सन्यासी बनना इतना आसान नहीं है तुम्हें पता है ना, सन्यास का मतलब त्याग होता है।

व्यक्ति बोला- हाँ, मुझे पता है मेरी ऊब ने मुझे इतना विचलित कर दिया कि मैं अपना घर-द्वार छोड़कर यहाँ पर आ गया, अब इससे बड़ा त्याग क्या होगा ।

बुद्ध ने कुछ नहीं बोला वह बस मुस्कुराएं।

कुछ दिन ऐसे ही गुजर गए एक दिन बुद्ध ने उस व्यक्ति से कहा- मेरे लिए सरोवर से पानी भर कर ले आओ, मुझे प्यास लगी है ।
व्यक्ति बोला- जो आज्ञा, मैं अभी लेकर आता हूंँ ।

व्यक्ति सरोवर में पानी भरने के लिए गया तो वह क्या देखा है कि कुछ जानवर पानी में उथल-पुथल कर रहे हैं । और पानी के ऊपर सारी गंदगी आ गई है यह देखकर वह सोचने लगा
अरे ! यह तो इतना दूषित पानी है इसको ले जाना ठीक नहीं होगा, यह तो बिल्कुल भी पीने के लायक नहीं है ।

व्यक्ति बुद्ध के पास पहुँचा और बोला- गुरुजी, जानवरो ने सरोवर में उथल-पुथल मचा रखी हैं, पानी तो बहुत ज्यादा गंदा है, इसलिए मैं पानी लेकर नहीं आया ।

बुद्ध बोले- कोई बात नहीं, तुम थोड़ी देर रुको और कुछ समय बाद पानी लेने के लिए जाना ।

थोड़ी देर बाद व्यक्ति पानी लेने के लिए जा रहा था, जाते हुए वह सोचने लगा- गंदा पानी तो गंदा ही रहेगा, बुद्ध बेवजह ही मुझे पानी लेने भेज रहे है । ऐसा सोचते हुए वह सरोवर तक जा पहुँचा । वह क्या देखता है कि सरोवर का पानी तो बिल्कुल साफ है । सारी गंदगी जो उस वक्त ऊपर आ चुकी थी, नीचे बैठ चुकी है यह देखकर उसने अपने पात्र में सरोवर से जल भर लिया ।
जल लेकर वह बुद्ध के पास पहुँचा ।

व्यक्ति बोला- लीजिए गुरुजी! मैं जल ले आया हूँ, पर जब मैं इस बार गया तो जल दूषित नहीं था ।
बुद्ध बोले- जब पानी में हलचल होती है, तो गंदगी अपने आप ही ऊपर आ जाती है और जब उसकी हलचल रुक जाती हैं तो सारी गंदगी अपने आप ही नीचे बैठ जाती है, इसी कारण पानी शुद्ध हो गया ।

व्यक्ति बोला- हाँ, गुरुजी मैं समझ गया आप जो कहना चाहते हैं ।
बुद्ध बोले- नहीं, तुम अभी-भी नहीं समझे ।
यह उदाहरण सिर्फ पानी के लिए नही है मनुष्य के जीवन के लिए भी है । “जब व्यक्ति के मन में उथल-पुथल होती है तो वह अच्छे से कुछ सोच-समझ नहीं पाता इसलिए वह अक्सर गलत निर्णय ले लेता है लेकिन जब उसका मन शांत हो जाता है तब वह सही निर्णय लेने के काबिल बन जाता है ।”
बुद्ध ऐसा बोलकर चले गए ।

बुद्ध की यह बात सुनकर व्यक्ति सोच में पड़ गया ।
वह खुद से ही बाते करने लगा । मैंने भी अपने घर की मुसीबत के चलते अपना घर त्याग दिया । मेरे मन में भी बहुत उथल-पुथल थी लेकिन अब मेरी उथल-पुथल शांत हो चुकी है और मुझे साफ दिखाई दे रहा है कि मेरा परिवार इस वक्त अकेला है और कष्ट में है । ना जाने वह भोजन का कैसे प्रबंध करते होंगे, मुझे उनके पास जाना चाहिए ।

अगले दिन वह बुद्ध के पास पहुँचा ।
व्यक्ति बोला- गुरुजी, मैंने जितना भी वक्त आपके साथ बिताया है, वह मेरे लिए बहुत खास वक्त था । इस वक्त की बदौलत मैं अपनी जिंदगी को साफ़-साफ़ देख पा रहा हूंँ कि कैसे मुसीबत सामने आते ही मैं अपने घर से भाग आया, लेकिन अब मैं अपने परिवार के पास वापस जाना चाहता हूंँ ।
बुद्ध बोले- ठीक है, अगर तुम वापस जाना चाहते हो तो चले जाओ, लेकिन पहले इस बात का जवाब दो, उथल-पुथल होते ही तुम अपना घर छोड़कर यहाँ आ गए थे, यहाँ पर तुम्हें शांति मिली और फिर तुम उधर जाना चाहते हो । यदि तुम्हारे जीवन में फिर से उथल-पुथल आई, तो तुम क्या करोगे ?

व्यक्ति बोला- अब जब भी मेरे जीवन में परेशानी या मन में उथल-पुथल होगी तो मैं उस समय कोई निर्णय नही लुँगा बल्कि सबसे पहले अपने मन को शान्त करूँगा । और जब मन शांत हो जायेगा तब उस समस्या का हल निकाल लूंगा ।

बुद्ध बोले- अब तुम समझ चुके हो। इसलिए अब तुम घर जा सकते हो ।

व्यक्ति ने कहा- गुरुजी, आप महान है यह तो भला ही हुआ कि मैं आपके पास नहीं आया होता तो जीवन-भर ऐसे ही दुख में जिंदगी गुजरती रहती । आपका बहुत-बहुत आभार ।
ऐसा कहकर व्यक्ति अपने घर को लौट गया ।

इस कहानी से यह शिक्षा मिलती है कि जीवन में जब भी परेशानी आये या मन में उथल-पुथल मची हो तो कुछ समय शांत रहना चाहिए । शांत रहने से आपके मन की उथल-पुथल भी शांत हो जाती है और आप साफ़ साफ़ वो सब देख पाएंगे जो आप मन की उथल-पुथल के समय नही देख पाते ।
शांत रहने पर आप किसी भी समस्या का समाधान निकाल सकते है ।

उम्मीद करते है आपको हमारी गौतम बुद्ध की प्रेरणादायक कहानी “मन की उथल-पुथल” पसन्द आयी होगी । आप हमें social media पर भी follow कर सकते हैं CRS SquadThink Yourself और Your Goal


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