आपका हृदय छोटा हैं या बड़ा ? Best Motivational Story In Hindi
Best Motivational Story In Hindi: आज की कहानी का शीर्षक है “आपका हृदय छोटा हैं या बड़ा ?” जीवन के छोटे-मोटे दुख से हम अपने मन को बिल्कुल संकुचित कर देते हैं, जिससे कि वह दुख हमें बहुत बड़ा दिखाई देता है । इसलिए हमें अपने हृदय को इतना विशाल करना होगा कि हमारा दुख हमें छोटा लगने लगे ।
आपका हृदय छोटा हैं या बड़ा ? Best Motivational Story In Hindi
एक बार की बात है, एक जैन गुरु के पास एक युवक आया । वह बोला, गुरुजी मैं हमेशा अपनी जिंदगी में दुखी रहता हूंँ । मुझे हर तरफ अंधकार ही अंधकार दिखता है । मुझे कुछ समझ नहीं आता, कि अपनी जिंदगी को कैसे जीना चाहिए ?
जैन गुरु बोले- अच्छा ठीक मैं तुम्हारी समस्या का समाधान जरूर करूंगा लेकिन, उससे पहले तुम जाओ! एक गिलास पानी में नमक डालकर ले आओ ।
युवक बोला- गुरुजी, मैं आपसे अपने जीवन के दुख के बारे में बात कर रहा हूंँ और आपने मुझे बिना कुछ बताएं, एक कार्य सौंप दिया । पहले आप मेरे प्रश्न का उत्तर तो दीजिए, उसके बाद आपके जितने भी काम है मैं करने को तैयार हूंँ ।
जैन गुरु बोले- नहीं!! पहले तुम मेरा ये कार्य करो, एक गिलास जल ले आओ और उसमें एक मुट्ठी नमक डाल देना ।
युवक बहुत कुछ कहना चाहता था । लेकिन गुरु के आगे वह कुछ ना कह सका, इसलिए वह गया और उसने एक गिलास में नमक डालकर गुरु के पास ले आया ।
जैन गुरु बोले- शिष्य!! अब इस जल को तुम पी लो ।
युवक बोला- यह जल आपने मेरे लिए मंगवाया था? पर मुझे तो जल पीना ही नहीं है ।
जैन गुरु बोले- मेरी बात मानो, जल को पी लो ।
युवक ने गुरु की बात मान ली और उसने उस नमक वाले पानी को पीने के लिए जैसे ही मुंह लगाया, एक घूंट अंदर जाने से पहले ही उसने उसे थूक दिया ।
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जैन गुरु बोले- बताओ! युवक पानी का स्वाद कैसा था?
युवक बोला- बहुत ही ज्यादा खारा, इतना कि मैं तो एक घूँट भी अंदर नहीं ले पाया ।
जैन गुरु बोले- ठीक है, अब ऐसा करो! एक मुट्ठी में नमक भर लो और मेरे पीछे-पीछे चलो ।
युवक मन ही मन सोच रहा था, कि मैं क्या पूछने आया था और ना जाने यह मुझे क्या-क्या करवा रहे हैं ? उसने एक मुट्ठी में नमक भर लिया और गुरु के साथ पीछे-पीछे चलने लगा ।
चलते-चलते उसे बहुत देर हो गई । वह बहुत थक गया था, मन ही मन वह खुद को कोस रहा था कि क्यों? खामखा मैं इनके साथ चलकर आ गया, ना आता तो अच्छा था । यह गुरु तो मुझे बिल्कुल पागल लग रहे हैं, जो मैंने पूछा था वह तो बताया नहीं उल्टा मुझे पता नहीं कहाँ ले जा रहे हैं ।
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काफी देर चलने के बाद गुरु एक झील के किनारे पर रुक गए ।
जैन गुरु बोले- अब तुम नमक को इस झील में फेंक दो ।
यह सुनते ही युवक मन ही मन हंसने लगा । वह सोचने लगा, अब तो यह पक्का ही हो गया है, यह गुरजी पागल ही है । इतनी दूर चला कर मुझे इसलिए लेकर आये ताकि मैं इस झील में नमक डाल सकूँ।
युवक ने झील में नमक डाल दिया।
जैन गुरु बोले- ठीक है, अब तुम इस झील के पानी को पियो ।
युवक ने झील के पानी को पी लिया ।
जैन गुरु बोले- अब बताओ! इस झील का पानी कैसा है ?
युवक बोला- अच्छा है! बहुत मीठा है, लेकिन मैं आपके पास पानी पीने तो नहीं आया था!!
जैन गुरु ने युवक का हाथ पकड़ा और बोले, जीवन में दुख भी नमक के जैसे होते हैं और नमक की मात्रा भी वही रहती है लेकिन यह पात्र तय करता है कि हमे स्वाद कैसा आयेगा ।
गुरु की यह बात सुनकर युवक के मन में गुरु के लिए विनम्रता का भाव आने लगा और वह बड़े ध्यान से उनकी बात सुनने लगा ।
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जैन गुरु बोले- खुद को विशाल करो, गिलास मत बनो एक झील बानो । जिस पर मुट्ठी भर नमक का कोई असर नहीं पड़ता । अपने हृदय के रास्तो को इतना बड़ा करो, कि छोटे-मोटे कंकड़ पत्थर तो उसके लिए धूल के समान हो ।
जीवन में दुख तो समान ही होते हैं लेकिन दुख का असर हर व्यक्ति पर अलग-अलग होता है, इसका कारण सिर्फ एक है कि किसी के व्यक्तित्व की पात्रता छोटी है तो किसी की बड़ी ।
आगे जैन गुरु ने कहा– जैसे एक राजा खुद के सुख से ज्यादा अपनी प्रजा को महत्व देता है, यह बताता है कि उसका व्यक्तित्व कितना बड़ा है इसलिए उसे खुद के दुख बड़े मामूली दिखते हैं। और एक आम इंसान अपनी छोटी-छोटी चीजों के लिए दुख करता रहता है इस व्यक्ति की पात्रता बहुत छोटी है इसलिए इसे अपना दुख बहुत बड़ा प्रतीत होता है ।
जैन गुरु की यह बात सुनकर युवक समझ गया कि गुरु जी मुझे इतनी दूर क्यूँ लेकर आये थे।
युवक बोला- गुरुजी! मुझे माफ कर दो । मैं तो आपको पागल समझ रहा था, लेकिन यह जान ही नहीं पाया कि मेरा खुद का हृदय इतना छोटा है । लेकिन आपकी कृपा से अब मैं जान गया हूँ, कि मैं भीतर से वह गिलास बना बैठा हूंँ । जिस पर थोड़ा-सा भी संकट आता है तो मैं खारा हो जाता हूँ । लेकिन अब मुझे झील की तरह बनना है जिस पर कितना भी नमक डाला जाए वह अपनी मिठास नहीं छोड़ता ।
ऐसा कहकर शिष्य ने जैन गुरु के पांव पकड़ लिए ।
इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें अपने दिल को इतना बड़ा करना होगा कि जीवन में आने वाले दुखों को हम मजबूती से झेल सके । हमारी शख्सियत हमारा व्यवहार हमें बताता है कि हम भीतर से कितने बड़े हैं और हमारा यह बड़प्पन हमारे ही नहीं दूसरों के भी काम आता है, एक विशाल हृदय वाला व्यक्ति ही दूसरों की मदद कर सकता है, उन्हें आगे बढ़ा सकता है ।
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