बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर ने महिलाओँ को दिलाये ये अधिकार
भीमराव अम्बेडकर: एक व्यक्ति को संस्कृति की शिक्षा नहीं मिली क्योंकि उसकी जाति ब्राह्मण नहीं थी। वह “लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स” से रिसर्च करके भारत लौटा, लेकिन वहां छुआछूत का सामना करना पड़ा। उसकी फाइल को चपरासी ने फेंक दिया क्योंकि उसके स्पर्श से वह अपवित्र माना गया। उसको अपने ऑफिस में पानी पीने नहीं दिया गया क्योंकि उसके स्पर्श से जल को अपवित्र माना गया।
यह व्यक्ति आगे चलकर जातिवाद के खिलाफ कई लड़ाइयाँ लड़े और भारतीय संविधान को लिखा, जिससे हमें समान अधिकार प्राप्त हुए। यह व्यक्ति डॉक्टर भीम राव अम्बेडकर हैं, जिन्हें “बाबा साहब” के नाम से भी जाना जाता है। उन्होंने महिलाओं के लिए अनेक अधिकार स्थापित किए, जिसके कारण आज भारतवर्ष की महिलाएं स्वतंत्रता के साथ जी रही हैं।
जब भारत में फेमिनिज्म या नारिवाद का कोई नाम भी नहीं था, उस समय बाबा भीम राव अंबेडकर ने नारी सशक्तिकरण के लिए काम किया। उन्होंने ऐसे कई कदम उठाए जिससे आज भारतीय महिलाएं अंतरिक्ष तक पहुंच चुकी हैं।
20वीं शताब्दी में बाबा साहब भीम राव अंबेडकर ने ब्राह्मणवादी पितृसता को खुली चुनौती दी, लेकिन इसके बावजूद वे भारत में नारीवाद के प्रतिनिधि नहीं बन सके। लोगों ने उन्हें केवल दलितों के नेता और संविधान निर्माता के रूप में देखा, जबकि उन्होंने महिलाओं के हित में कई कार्य किए, जिसको लेकर भारतीय राजनेताओं ने कभी सोचा भी नहीं होगा।
जब भारतवर्ष के ब्राह्मणवादी पितृसत्ता समाज महिलाओं को चार-दीवारों में कैद रखे हुए थे, तब उन्होंने महिलायें भी पुरुषों के समान बाहर जाकर काम कर पाए इसका प्रबंध किया और कामकाजी महिलाओं को मैटरनिटी लीव दिलाएं, तो आइए जानते हैं महिलाओं के भलाई के लिए बाबा साहब ने और क्या-क्या किया।
बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर द्वारा महिलाओँ को दिलवायें गए अधिकार:-
1. नारी शिक्षा( महिलाओं को पढ़ने का अधिकार)
भारतीय समाज के महिलाओं को पढ़ने का अधिकार दिया। बाबा साहब ने शिक्षा के द्वारा अपने बच्चों का भविष्य संभाला था, और इसलिए वह शिक्षा के महत्व को अच्छे से जानते थे। पुरुषों के शिक्षा के साथ-साथ महिलाओं की शिक्षा को भी बहुत जरुरी मानते थे।
1913 में न्यूयार्क में एक भाषण देते हुए, बाबा साहब अम्बेडकर ने कहा:
“मां-बाप बच्चों को जन्म देते हैं, कर्म नही देते।
मां बच्चें के जीवन को उचित मोड़ दे सकती हैं,
यह बात अपने मन पर अंकित कर यदि हमलोग अपने लड़कों के साथ-साथ अपनी लडकियों को भी शिक्षित करें हमारे समाज की उन्नति और तेज़ गति से होंगी”
आज हम सभी इस बात को सच साबित होते हुए देख रहे हैं, जो कल-तक चकला बेलन चलाना, बच्चे पैदा करने तक सीमित थी, आज उसी भारतीय समाज की लड़कियां शिक्षित हो कर हवाई जहाज तक उड़ा रही हैं, अंतरिक्ष पर जा रही हैं, डॉक्टर-इंजीनियर बन रही हैं।
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बाबा साहब का यह कहना था, “आप अपने बच्चों को स्कूल में भेजिए, शिक्षा महिलाओं के लिए भी उतनी ही ज़रूरी है जितनी की पुरुषों के लिए। यदि आपकों लिखना पढ़ना आता है, तो समाज में आपका उद्धार संभव हैं एक पिता का सबसे पहला कर्तव्य होना चाहिए अपने घर की स्त्रियों को शिक्षा से वंचित ना रख कर उन्हे भी विद्यालय भेजकर शिक्षित करना, शादी के बाद महिलाएं खुद को गुलाम की तरह महसूस करती हैं इसका सबसे बड़ा कारण निरक्षरता हैं, यदि स्त्रियां भी शिक्षित हो जाएं तब उन्हें यह महसूस नही होगा।”
इस तरह के कई प्रयासों के बाद महिलाओं को पढ़ने-लिखने की आजादी प्राप्त हुआ।
2. मेटरनिटी लीव( गर्भवती कामकाजी महिलाओं के लिए छुट्टी लिए)
आज कामकाजी महिलाएं 26 हफ्ते की मैटर्निटी लीव ले सकती हैं, जिसकी शुरुआत बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर ने की थी। 10 नवंबर 1938 को बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर ने एक असेंबली में महिलाओं से जुड़े समस्याओं को पूरी तरह से समाप्त करने का या यूं कहें समाधान करके उन समस्याओं को जड़ से मिटाने का प्रयास किया। इस दौरान, उन्होंने प्रसव के दौरान महिलाओं के स्वास्थ्य से जुड़ी चिंताओं पर अपने विचार रखें।
3. लैंगिक समानता( महिला पुरुष में कोई भेदभाव नही)
बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर ने भारतीय नारी को समाज में पुरुषों के साथ बराबरी के अधिकार दिए, जिस अधिकार से महिलायें ना जाने कितने वर्षों से वंचित थी। भारतीय समाज में लैंगिक असमानता (Gender Inequality) को समाप्त करने के लिए उन्होंने सविधान में लिंग के आधार पर भेदभाव करने की मनाही का प्रबंध किया।
Article 14 से 16 में महिलाओं को पुरुषों के बराबर अधिकार देने के प्रावधान किए गए हैं। “किसी भी महिला को सिर्फ महिला होने की वजह से किसी भी अवसर से वंचित नहीं रखा जाएगा, और ना ही उसके साथ लिंग के आधार पर भेदभाव किया जाएगा।”
4. मताधिकार( वोट देने का अधिकार)
20वीं शताब्दी के आधे हिस्से तक दुनिया भर में कई आंदोलन हुए जो वोटिंग राइट्स को लेकर थे। नारीवाद की पहली और दूसरी लहर में महिलाओं के लिए वोटिंग राइट्स की मांग उठी, लेकिन भारत में इसके लिए बहुत ज्यादा आंदोलन नहीं हुए थे। जब बाबा साहब को सविधान लिखने का मौका मिला, तो उन्होंने महिलाओं को भी समान मताधिकार का हक दिया। आज, 18 साल की उम्र होने पर महिलाएं वोट देने का अधिकार रखती हैं, क्योंकि बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर ने महिलाओं को यह अधिकार दिलाया था।
5. तलाक संपति और बच्चें गोद लेने का अधिकार
बाबा साहब ने संविधान के जरिए महिलाओं को यह भी अधिकार दिए।
- हिंदुओ में बहु विवाह की प्रथा को समाप्त कर केवल एक विवाह का प्रवधान।
- महिलाओं को संपति में अधिकार देने तथा बच्चें गोद लेने का अधिकार।
- पुरुषों के समान नारियों को भी तलाक का अधिकार।
6. महिला विरोधी कुरीतियों को समाप्त करना
पहले के समय में शादी की कोई निश्चित उम्र नहीं थी, और बच्चों का विवाह कम उम्र में ही कर दिया जाता था, जो समाज में बाल-विवाह नाम की कुप्रथा से जाना जाता है। बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर ने इस कुप्रथा के खिलाफ आवाज उठाई और इसे समाप्त किया। उन्होंने 1928 में मुंबई में एक महिला कल्याणकारी संस्था की स्थापना की, जिसका मुख्य उद्देश्य बालविवाह जैसी और कई अनुचित प्रथा को समाप्त करना था।
बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर का मानना था कि सही मायने में प्रजातंत्र तब आएगा जब महिलाओं को पिता की संपति में बराबरी का अधिकार मिलेगा, और उन्हें पुरुषों के समान अधिकार मिलेंगे। महिलाओं की उन्नति तभी होगी जब उन्हें समाज में बराबरी का दर्जा मिलेगा।
बाबा साहब का यह भी मानना था कि “मैं किसी समाज की तरक्की इस बात से देखता हूं की उस समाज की महिलाओं ने कितनी तरक्की की हैं।”
बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर का योगदान महिलाओं के समाज में समानता और सम्मान के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण रहा है। उन्होंने महिलाओं की शिक्षा, मताधिकार, और समानता के अधिकारों की रक्षा की। उनकी प्रेरणा से आज महिलाएं स्वतंत्रता, समानता, और सम्मान के साथ अपने अधिकारों का लाभ उठा रही हैं। बाबा साहब का यह संदेश हमें समाज में समानता और न्याय की दिशा में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता है।
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