मन के बंधक || गौतम बुद्ध की शिक्षाप्रद कहानी
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हम जीवन में आगे इसलिए नहीं बढ़ पाते, क्योंकि हमने अपने मन को खुद बांधा हुआ होता है । लेकिन बाहर से परिस्थितियाँ देखने पर ऐसा लगता है कि परिस्थितियों ने हमें बांध रखा है । इसी कारण हम जीवन में आगे नहीं बढ़ पा रहे हैं। आज की कहानी हमारे इसी भ्रम को तोड़ने वाली है । शुरू करते हैं आज की गौतम बुद्ध की शिक्षाप्रद कहानी “मन के बंधक”
गौतम बुद्ध की शिक्षाप्रद कहानी
एक बार की बात है गौतम बुद्ध अपने कुछ शिष्यों के साथ कही जा रहे थे । उनके ठीक आगे एक व्यक्ति अपनी गाय को बांधकर चल रहा था ।
चलते चलते एक शिष्य ने बुद्ध से पूछा – गुरुजी! मैं आपसे कुछ करना चाहता हूंँ ।
बुद्ध बोले- कहो, क्या कहना चाहते हो ?
शिष्य बोला- मैं आपका शिष्य ठीक प्रकार से नहीं बन पा रहा हूंँ, मुझे हमेशा बंधा हुआ महसूस होता है । क्या मेरा फैसला ठीक है, कि मैं आपका शिष्य ही बना रहूँ ? बहुत सारे ऐसे विचार है जिसने मुझे अपना बंधक बना रखा है । जिसकी वजह से मैं आपके दिए गए ज्ञान को ठीक प्रकार से ग्रहण नहीं कर पा रहा हूंँ ।
बुद्ध ने अपने आगे चलते हुए व्यक्ति की ओर इशारा करते हुए कहा- तुम देख रहे हो! उस गाय ने व्यक्ति को बंधक बना रखा है ।
शिष्य बोला- माफ कीजिए गुरुजी! पर शायद आपको कम दिखाई दे रहा है । उस गाय ने नहीं, उस व्यक्ति ने उस गाय को बंधक बना रखा है । देखिए गाय के गले में रस्सी बंधी है और उसका दूसरा हिस्सा उस व्यक्ति ने अपने हाथ में पकड़ा हुआ है । साफ-साफ यही दिख रहा है कि उस व्यक्ति ने गाय को बाँध रखा है ।
शिष्य का यह जवाब सुनकर बुद्ध रुक गए ।
बुद्ध बोले- मैं तुम्हें यही समझना चाहता हूंँ। जो दिखाई देता है सिर्फ वही सत्य नहीं होता ।
शिष्य बोला- पर गुरुजी जो दिखाई देता है, उसे ही तो सत्य कह सकते हैं जो दिखाई नहीं देता, उसको हम कैसे पहचाने?
बुद्ध ने तुरंत अपने झोले से एक धार वाली चीज निकाली और तेजी से भागते हुए । उस व्यक्ति की ओर बढ़े, उन्होंने गाय के गले में बंधी हुई रस्सी को काट दिया । रस्सी खुलते ही गाय जोर से भागने लगी ।
यह देखकर वह व्यक्ति बुद्ध पर जोरों से चिल्लाया- यह क्या किया आपने? वह व्यक्ति भी उसे पकड़ने के लिए उसके पीछे भागा ।
बुद्ध को ऐसी हरकत करते हुए देखकर, शिष्य उनके पास आये और कहने लगे- गुरुजी! आपने क्यों उस गाय की रस्सी को काट दिया? आप तो हमें सत्य बताने वाले थे । फिर यह आपने अचानक से क्या कर दिया?
बुद्ध बोले- सत्य तो मैं तुम्हें कई बार बता चुका हूंँ, लेकिन आज तुम्हें दिखाना चाहता था कि बंधक कौन था । बंधक वह व्यक्ति था, जिसके मन में यह डर था, कि गाय कहीं चली जाएगी । लेकिन गाय के मन में यह डर नहीं था कि उसका मालिक चला जाएगा । जिसके भीतर डर नहीं है, उसको कभी बंधक नहीं बनाया जा सकता ।
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आगे बुद्ध ने कहा- डर ही हमें बंधन में डाले रखता है । हमारे मन का बंधन कोई और नहीं हम खुद ही हैं । हमें हमेशा यह डर लगा रहता है कि हमसे कुछ छिन जाएगा, इस डर के कारण हम ज्ञान के मार्ग पर आगे नहीं बढ़ना चाहते । लेकिन यह सिर्फ हमारा भ्रम होता है जैसे ही हम ज्ञान के मार्ग पर आगे बढ़ते हैं तब हमें पता चलता है हमसे कुछ छीना नहीं जा रहा, बल्कि हमें वह मिल रहा है जो हमारा अपना है ।
हम उस गैस के गुब्बारे की तरह है । जिसके अंदर आसमानों में उड़ने की संभावना होती है, लेकिन जमीन पर बंधी वह डोर हमारा बंधन होता है । हमें इस बात का डर लगता है कि हमारी नीचाई हमसे छूट जाएगी । क्योंकि नीचाई में भले दुख हो लेकिन वो जाना-पहचाना होता है और ऊंचाई हमेशा अजनबी होती है । इसलिए हमें आसमानों की ऊंचाइयों से डर लगने लगता है ।
शिष्य बोला- गुरुजी! मैं समझ चुका हूँ मेरा बंधन स्वयं मैं खुद हूँ । आज से मैं निरंतर प्यास करूँगा कि धीरे-धीरे अपने मार्ग पर बिना डरे आगे बढ़ सकूँ । और अपने ज्ञान प्राप्ति की संभावना को साकार कर सकूँ । ऐसा कहकर बुद्ध और शिष्य अपने मार्ग पर आगे बढ़ गए।
आज की कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमे अपने मन के बंधन को समझना होगा और उसे काटने का प्रयास करना होगा । बंधन हमारे हैं तो उससे निकलने की जिम्मेदारी भी हमारी है । कुछ नया काम करने से पहले कभी-भी मत डरो , बंधन सिर्फ हमारा मन ही है कोई दूसरा नहीं, इसलिए हमेशा प्रयास करो और आगे बढ़ो ।
उम्मीद करते है आपको हमारी गौतम बुद्ध की शिक्षाप्रद कहानी “मन के बंधक” पसन्द आयी होगी । आप हमें social media पर भी follow कर सकते हैं CRS Squad, Think Yourself और Your Goal