एक पहाड़ी लड़की और संत की कहानी | प्रेरणादायक कहानी
आज की कहानी का शीर्षक है एक पहाड़ी लड़की और संत की कहानी। कभी-कभी साधारण से दिखने वाले लोग भी हमें वह ज्ञान दे देते हैं जो कि हमें जीवन भर खोज-खोज कर भी नहीं मिलता । ऐसी एक कहानी संत रामनाथ की है, एक छोटी पहाड़ी बच्ची ने उन्हें जाने अंजाने में एक ऐसा सूत्र दे दिया कि उनका भारी जीवन एक दम से हल्का हो गया।
एक पहाड़ी लड़की और संत की कहानी
किसी गांव में एक रामनाथ नाम का व्यक्ति अपनी पत्नी और बच्चों के साथ रहा करता था लेकिन पारिवारिक जिम्मेदारी निभाते-निभाते वह बहुत थक चुका था, इसलिए उन्होंने फैसला किया कि वह घर छोड़कर सन्यास को चले जाएगें । उसने अपने पीछे इतना जरूर छोड़ रखा था कि उसके पत्नी व बच्चों का जीवन निर्वाह हो सके ।
एक दिन वह अपनी पत्नी से बोला
रामनाथ- मैं तुम लोगों से बहुत थक चुका हूंँ, मैं अब इस गृहस्थी में नहीं रहना चाहता । मैं संन्यास लेने जा रहा हूँ।
यह सुनकर पत्नी परेशान हो गई, वह कहने लगी, “आखिर आप क्यों जाना चाहते हैं? मेरा और हमारे बच्चों का क्या होगा?”
रामनाथ – तुम बच्चों को लेकर अपने मायके चली जाओ, मैं अब गृहस्थी के जाल में फंसकर थक चुका हूँ। सच कहूँ तो तुम सब मुझे जिम्मेदारी नहीं बोझ लगते हो और अब मैं यह बोझ नहीं उठाना चाहता ।
पत्नी ने कहा- क्या हम सब आपके लिए बोझ है? ऐसा कहकर वह रोने लगी । बच्चे अपने पिता से आग्रह करने लगे हमें छोड़कर मत जाइए, लेकिन रामनाथ में फैसला कर लिया था । उसने किसी की एक न सुनी उसने अपना दिल कडा किया और जंगल की ओर निकल गया ।
वह एक कुटिया बनाकर अलग से रहने लगा । कुटिया में रहते रहते उन्हें पाँच वर्ष बीत गए। पहले वे रामनाथ थे पर बाद में वह रामनाथ से संत रामनाथ बन गए । सभी लोग उन्हें संत कहकर ही पुकारते थे उन्होंने फैसला किया कि वह अध्यात्म में और आगे बढ़ना चाहते हैं इसलिए उन्होंने अपना बोरिया-बिस्तर उठाया और अपने कंधे पर लादकर पहाड़ों की तरफ निकल गए ।
वह पहाड़ों की तरफ चलते रहे और चलते-चलते वह इतना थक गए कि वह हाँफने लगे, पहाड़ों की ऊंचाई और रास्ते इतने खतरनाक थे कि उन्हें कष्ट हो रहा था । किंतु वह फिर भी अपने सामर्थ्य के अनुसार चल रहे थे।
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चलते-चलते उनकी नजर एक छोटी पहाड़ी लड़की पर पड़ी जो की करीब बारह-तेरह वर्ष की होगी,अपने छोटे से भाई को गोद में लेकर चल रही थी ।
वह भी संत की तरह हाँफ रही थी और पसीने से भीग गई थी ।
संत को उस लड़की पर दया आई वह सोचने लगे इतनी छोटी बच्ची और ऊपर से अपने छोटे भाई को गोद में उठाकर ले जा रही है इसे इतना बोझ महसूस हो रहा होगा, संत से रहा ना गया उन्होंने पूछ ही लिया।
संत ने बोला – अरे बेटी! गर्मी में तुम अपने भाई को लेकर जा रही हो, हाँफ भी रही हो। तुम खुद इतनी छोटी-सी हो तुम्हारा भाई तो तुमसे भी छोटा है तुम्हें बोझ लग रहा होगा ना।
पहाड़ी लड़की बोली- नहीं बाबा, यह तो मेरा छोटा भाई है! यह मेरे लिए बोझ कैसे हो सकता है?, मुझे लगता है बोझ तो आपके कंधे पर है ।
संत ने जैसे ही यह सुना, उसे लगा पता नहीं उसने ऐसा क्या जान लिया है जो वह पाँच वर्ष में भी नहीं जान पाया । वह उस बात का मतलब और गहराई से समझाना चाहते थे इसलिए उन्होंने पहाड़ी लड़की से पूछा ।
संत ने बोला- क्या मतलब तुम्हें तुम्हारे भाई का बोझ महसूस नहीं हो रहा। यदि किसी तराजू में मेरा सामान और तुम्हारे भाई को रख दिया जाए तो निश्चित ही तुम्हारा भाई भारी होगा।
पहाड़ी लड़की ने कहा- हाँ, यदि किसी तराजू में तोला जाए तो बिल्कुल ही आपका सामान हल्का निकलेगा और मेरा भाई भारी। लेकिन मेरे पास मेरा भाई है और आपके पास आपका सामान । तराजू तो भार नापने का एक यंत्र है लेकिन मेरे भाई और आपके सामान में भिन्नताएं हैं । “मैं अपने भाई से प्रेम करती हूंँ इसलिए मुझे यह बोझ भी बोझ नहीं लग रहा और आप अपने सामान से प्रेम नहीं कर सकते क्योंकि ये सामान है, इसलिए यह हल्का सामान भी आपको बोझ लग रहा है” इतना कहते ही वह लड़की अपने रास्ते निकल गई।
उस लड़की की बात ने संत के मन में गहरी चोट कर दी ।
संत सोचने लगे आज मुझे अपने ज्ञान पर अफसोस-सा हो रहा है कितने समय अकेले गुजरने के बाद भी, मैंने कुछ नही सीखा। यह छोटी-सी साधारण बच्ची मुझे इतनी बड़ी बात समझा गई । जब मनुष्य के मन में प्रेम होता है तब बोझ भी उसे बोझ प्रतीत नहीं होता। इसके विपरीत जब मनुष्य के मन में परेशानियां होती है, तब उसे कोई हल्की चीज भी भारी बोझ के समान लग सकती है ।
जैसे कि मैंने अपने परिवार को त्याग दिया, मैंने कभी उनसे प्रेम ही नहीं किया था इसलिए वह लोग मुझे बोझ की तरह प्रतीत होते थे । संत रामनाथ को अपनी गलती का एहसास हुआ । पाँच वर्ष हो गए मैंने उन्हे देखा तक नहीं वह किस हाल में होगे। रामनाथ बहुत थके हुए थे लेकिन उनके मन में अपने परिवार से मिलने की इतनी तीव्र इच्छा हुई कि यह इच्छा प्रेम में बदल गई और वह अपनी थकान भूल कर तुरंत अपने परिवार से मिलने चले गए ।
हमारा जीवन हमें बोझ तब लगने लगता है जब वहां प्रेम मौजूद नही होता और जहां प्रेम होता है वहां हम बड़े से बड़ा बोझ ,दुख परेशानी सब चीजों से निपटने के लिए तैयार हो जाते हैं।
उम्मीद करते हैं आपको हमारी प्रेरणादायक कहानी “एक पहाड़ी लड़की और संत की कहानी।” पसंद आयी होगी ।
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