एक भिखारी और गुलाब की प्रेरणादायक कहानी
आज की कहानी का शीर्षक है “एक भिखारी और गुलाब की प्रेरणादायक कहानी “ । हमारे जीवन में बहुत सारे सवाल होते हैं लेकिन हम कभी पूरी कोशिश नहीं करते जबाब ढूँढने की । यदि हम अपनी पूरी ऊर्जा समस्या को सुलझाने में लगा दे , तो समाधान भी खुद-ब-खुद निकल आता है ।
एक भिखारी और गुलाब की प्रेरणादायक कहानी
एक भिखारी था। वह आते-जाते लोगों से भीख माँगा करता था। जिसे भीख देना होता था वह देता था, नहीं तो लोग चुपचाप निकल जाते थे । कोई उससे सवाल-जवाब नहीं करता था ।
एक दिन रोज की तरह वह भीख माँग रहा था, तभी एक व्यक्ति सूट-बूट पहनकर उसके सामने से गुजर रहा था।
भिखारी ने सोचा यह तो कोई अमीर व्यक्ति है, यह मुझे अधिक धन दे सकता है । उसने उस व्यक्ति को रोका ।
भिखारी बोला- साहब कुछ दे दीजिए !
व्यक्ति बोला- मुझे किसी काम के लिए जाना है, मेरे पास वक़्त नहीं है ।
भिखारी बोला- साहब दे दीजिए, गरीब को दे दीजिए कुछ ।
व्यक्ति बोला- ठीक है, यह को दस रुपए । तुम हमेशा लोगों से माँगते ही रहते हो या उन्हें भी कुछ देते हो ?
यह कहकर वह व्यक्ति चला गया ।
भिखारी सोचने लगा यह क्या कह दिया इन्होंने, क्या इन्हें दिखता नहीं है मैं भिखारी हूंँ ! मैं भला किसी को क्या दे सकता हूंँ ? मैं तो खुद ही लोगों से माँग-माँग कर अपना गुजारा चलाता हूंँ ।
भिखारी के मन को यह बात एक कटाक्ष की तरह लगी ।
वह अपने टूटे हुए झोपड़े में चला गया ।
रात को जैसे ही वह सोने के लिए लेटा । इस विषय में सोचने लगा मैं भला क्या दे सकता हूंँ, पता नहीं यह बात मुझे इतनी परेशान क्यों कर रही है। मेरे पास तो धन नहीं है लेकिन क्या मैं लोगों को ऐसी चीज दे सकता हूंँ, जो मुफ्त हो । ऐसे ही सोचते-सोचते वह सो गया ।
अगली सुबह जब वह भीख माँगने के लिए निकला तो दोबारा वही व्यक्ति दिखा । लपक कर वह उसके पास पहुँच गया ।
व्यक्ति बोला- तुम फिर आ गए, फिर से तुम्हें पैसा चाहिए क्या ?
भिखारी बोला- हाँ चाहिए तो साहब, पर मैं आपसे कुछ कहना भी चाहता हूँ ।
व्यक्ति बोला- हाँ, बोलो क्या बात है ।
भिखारी बोला- मैं गरीब हूँ, भीख माँगता हूंँ । आपने क्या सोचकर मुझे बोला कि “तुम भीख मांगते हो या किसी को देना भी जानते हो। “
व्यक्ति बोला– अरे ! मैंने तो इसलिए बोला था क्योंकि यह तो प्रकृति का नियम है। यदि हम एक साँस भी अंदर लेते हैं तो हमें एक साँस बदले में बाहर छोड़नी पड़ती है । नियम के अनुसार तुम बस ले रहे हो, तुम जी ही कहाँ रहे हो, बस जैसे-तैसे अपनी जिंदगी काट रहे हो ।
व्यक्ति ने आगे कहा – शायद मैं ही मुर्ख हूँ । मुझे पता है तुम भिखारी हो और अपनी जिंदगी काट ही रहे हो । फिर भी तुमसे यह सब कह दिया । चलो कोई बात नहीं, यह लो दस रुपए मैं चलता हूंँ ।
यह बात सुनकर तो भिखारी के मस्तिष्क में उथल-पुथल मच गई जीवन में उसे कभी-भी किसी ने ऐसी बातें नहीं कहीं थी ।
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अपने पूरे जीवन में जितना उसने अपने दिमाग का इस्तेमाल नहीं किया था। उतना उसने उस सवाल के जवाब को ढूँढने में कर दिया । वह सोचने लगा प्रकृति के भी नियम होते है?, तो क्या किसी नियम के अनुसार ही मैं ऐसा हूँ । उसने फैसला लिया, मैं ऐसा करता हूंँ जो मुझे भीख देगा, मैं बदले में उसे एक फूल दूँगा। जो कि मुझे मुफ्त में पेड़ों पर मिल जायेंगे । उसे जो भी फूल मिले वह उसे तोड़कर ले आया ।
उस व्यक्ति से मिलने के बाद भिखारी मानसिक तौर पर सक्रिय हो गया था, उसके बोझिल जीवन में एक हलचल-सी उत्पन्न हो गई और इसके कारण वह अपने दिमाग का पूरा इस्तेमाल कर रहा था ।
अगले दिन उस भिखारी ने ऐसा ही किया । जो भी उसे पैसे देता वह बदले में उसे फूल देता । जब वह लोगों को फूल देता, तो लोगों के चेहरे पर एक मुस्कुराहट आ जाती। उसके जीवन में कुछ नया घट रहा था ।
उसने सोचा क्यों ना मैं मेरी झोपड़ी के बाहर गुलाब उगाना शुरू कर दूँ। लोगों को गुलाब अधिक पसंद आते है । उसने झोपड़ी के बाहर गुलाब रोपना शुरू कर दिया, कुछ ही महीनों में बहुत सुंदर-सुंदर गुलाब उगने लगे । उसने सभी गुलाबों को तोड़ा और उन्हें लेकर भीख माँगने के लिए चला गया ।
एक महिला ने भिखारी से आकर पूछा- यह कितने का गुलाब है ?
भिखारी को कुछ समझ नहीं आया, उसने तो गुलाब इसलिए रखे थे, यदि कोई भीख देगा, तो बदले में वह उसे एक गुलाब देगा ।
उसने झेपते हुए कहा- यह दस रुपए का ।
महिला बोली- वाह ! इतना सुंदर गुलाब सिर्फ़ दस रुपए का, तुम मुझे एक दे दो ।
भिखारी खुश हो गया । वह सोचने लगा अरे यह तो मेरा काम हो गया। अब मैं भीख नहीं माँग रहा। अब मैं लोगों को कुछ बेच रहा हूंँ और लोग उस चीज के बदले धन दे रहे हैं । मतलब अब मैं भिखारी नही हूँ।
भिखारी बहुत खुश हुआ । गुलाब भेजते-भेजते उसके पास पैसे आने लगे । धीरे-धीरे उसकी हालत सुधरने लगी । अब वह अच्छा खाना खाता था, अच्छे कपड़े पहना था। वह अपनी जिंदगी से खुश था ।
एक बार जब है गुलाब बेच रहा था, तभी वहाँ से वही व्यक्ति गुज़रा । उस व्यक्ति को देखकर वह जोर-जोर से चिल्लाने लगा साहब ! साहब !
व्यक्ति ने उसे मुड़कर देखा उसने उसे पहचान लिया ।
व्यक्ति बोला- कुछ चाहिए क्या ?
भिखारी बोला- नहीं साहब मुझे भीख नहीं चाहिए, गुलाब बेचने आया हूंँ। मैं भिखारी नहीं रहा, मैं व्यापारी बन चुका हूंँ।
यह देखकर वह व्यक्ति बहुत प्रभावित हुआ ।
व्यक्ति बोला- ये तो तुमनें बहुत अच्छा काम किया ।
भिखारी बोला – अरे साहब ! ये सब आपकी बदौलत है।
व्यक्ति ने बोला- मैंने क्या किया ?
भिखारी बोला- आपने मुझसे सवाल किया, जो आज तक किसी ने नहीं किया था । आप मेरे भीतर वह सवाल ना छोड़ते और वह मेरे मन के भीतर उथल-पुथल ना पैदा करता, तो मैं आज यहाँ तक नहीं पहुँच पाता ।
व्यक्ति बोला- मैंने यह सब सोच-समझकर नहीं किया था । यह सब तो जाने-अनजाने में हो गया । मुझे खुशी है कि मेरी कही हुई बात से आज जीवन में तुम आगे बढ़ रहे हो ।
व्यक्ति ने भिखारी से फूल खरीदा उसे पैसे दिए और मुस्कुराते हुए दोनों ने एक-दूसरे को अलविदा कह दिया ।
यह कहानी हमें बताती है कि हमें अपने मस्तिष्क का पूरी तरीके से प्रयोग करना चाहिए क्योंकि इस प्रयोग द्वारा ही हम जीवन में आगे बढ़ सकते हैं । आपने सुना तो होगा कि हर ” समस्या के लिए एक समाधान होता है” । लेकिन उस समस्या और समाधान के बीच जो होता है वह इंसान की सोच होती है उसी सोच से वह एक दिन आगे बढ़ जाता है ।
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