आयु से मनुष्य के ज्ञान को कभी नही आंकना चाहिए। Moral Story in Hindi

आयु से मनुष्य के ज्ञान को कभी नही आंकना चाहिए। Moral Story in Hindi
Share this Post to Your Friends

किसी को आयु से मनुष्य के ज्ञान को कभी नही आंकना चाहिए क्योंकि कभी-कभी कम आयु वाले भी जीवन में वह अनुभव ले लेते हैं, जो कि अधिक आयु वाले भी नहीं ले पाते । हमारे देश में सदियों से ज्ञान की ही पूजा होती आई है । आयु जाति, लिंग आदि से उसका कोई लेना देना नहीं है। अष्टावक्र ने बालक होते हुए भी विद्वानों को अपने ज्ञान द्वारा हरा दिया।

आयु से मनुष्य के ज्ञान को कभी नही आंकना चाहिए। Moral Story in Hindi

बारह वर्ष का अष्टावक्र का शरीर ‘आठ जगह से टेढा’ था इसलिए उनका नाम अष्टावक्र रख दिया गया था । वह बारह वर्ष के थे जब वह राजा जनक के द्वार पहुंचे तभी राजपाल ने उन्हें रोक लिया और कहा ये बच्चों की आने की जगह नहीं है।


अष्टावक्र बोले- मैं ऋषि बंदी से शास्त्रार्थ करने आया हूँ।
राज्यपाल बोला –एक तो तुम बच्चे हो, ऊपर से विकलांग । तुम इतने बड़े ज्ञानी ऋषि बंदी से वाद-विवाद करोगें।
अष्टावक्र बोले- वे ज्ञानी तो है लेकिन उनके अंहकार ने उनके ज्ञान को ढक लिया है। ज्ञान का उम्र से क्या लेना-देना , सिर्फ बाल सफेद हो जाने से या आयु अधिक होने से कोई ज्ञानी नहीं हो जाता ।

राज्यपाल बोला – मुर्ख मत बनो ! यहाँ से लौट जाओ।
अष्टावक्र बोले- क्या वे सचमुच ज्ञानी है किंतु उनसे हारने वाले व्यक्ति पर उनकी तनिक भी करुणा नही है । शास्त्रार्थ में जो उनसे पराजित होता है वह उन्हें जल समाधि लेने को कहते है। “मैं ऐसे ज्ञान को ज्ञान नही मानता, जहाँ करूणा और क्षमा ना हो।”

राज्यपाल बोला- लगता है तुम अपना उपहास खुद उड़वाना चाहते हो, यदि यही तुम्हारी इच्छा है तो ठीक है जाओ।
ऐसा कहकर राज्यपाल ने उन्हे अंदर जाने दिया।

वे राजा जनक के दरबार पर पहुंच गये । अष्टावक्र के टेढ़े-मेढ़े शरीर को देखकर सभा में उपस्थित सभी विद्वान हंसने लगे।
यह देखकर अष्टावक्र भी जोरों से हंसने लगे और कहने लगे। राजा जनक मैंने तो सुना था, आपकी सभा में बड़े-बड़े विद्वानों से सुशोभित है लेकिन यहां तो यह अपने झूठे ज्ञान के अहंकार में चूर है। ये मेरे टेढ़े-मेढ़े शरीर को देख कर हँस रहे है और मैं इनकी मूर्खता को देखकर ।

राजन आप मुझे यह बताएं की “हड्डी, माँस रक्त आदि से बना ये शरीर टेड़ा है, लेकिन क्या आत्मा भी कभी टेढ़ी हो सकती है यदि नदी टेढ़ी है तो क्या उसका जल भी टेढ़ा होगा।” अष्टावक्र के वचनों को सुनकर राजा जनक बहुत प्रभावित हुए ।

राजा जनक बोले – तुम सत्य कहते है, कहो इस सभा में आने का उद्देश्य क्या है?
अष्टावक्र बोले- मैं ऋषि बंदी से शास्त्रार्थ करने आया हूँ।

राजा जनक बोले – बालक तुम ये जानते हो ना यदि वाद-विवाद में तुम हार गए तो तुम्हें जल समाधि लेनी होंगी।
अष्टावक्र बोले-जी राजन मैं भली प्रकार जनता हूँ आप मुझे आज्ञा दे।
बंदी ऋषि को जब पता चला की कोई विकलांग बालक उनके साथ शास्त्रार्थ करने के लिए आया है, यह सुनकर भी वह निश्चिंत थे क्योंकि उन्होंने बड़े-बड़े विद्वानों को शास्त्रार्थ द्वारा हराया था ।

दोनों के बीच शास्त्रार्थ आरंभ हुआ एक तरफ अष्टावक्र थे तो दूसरी ओर ऋषि बंदी थे । दोनों वेदों के जानकार थे एक-एक करके दोनों ने एक दूसरे से प्रश्न पूछना आरंभ किया।

ऋषि बंदी बोले- जो कुछ दिखाई देता है वह क्या है?
अष्टावक बोले- जो कुछ दिखाई देता है वह सब प्रपंच है ।
जो दिखाई देता है उसका क्या मतलब है?
ऋषि बंदी बोले- मन के सारे विषय ही दृश्य है।
दृष्टा कौन है? उसको कौन जनता है?
अष्टावक बोले- वह आत्मा है उसे देखने की जरूरत नही पड़ती,वह सूरज की तरह खुद ही प्रकाशमान है ।

दोनों के पास हर प्रश्न का जवाब था, यह कार्यक्रम बहुत देर तक चलता रहा …………

अष्टावक्र बोले – आदित्य, यज्ञ, छंद सब बारह होते हैं और वर्ष भी बारह मास का ही होता है। क्या बारह ही उत्तम है?
बंदी ने कहा- नही, त्रयोदशी उत्तम होती है, पृथ्वी पर तेरह द्वीप होते हैं । इतना कहते ही ऋषि बंदी श्‍लोक की अगली पंक्ति भूल गये और चुप हो गए।अंत में ऋषि बंदी इस प्रश्न के आगे निरुत्तर हो गए ।

आगे अष्टावक्र ने बंदी द्वारा छोड़े हुए उत्तर को पूरा किया। वेदों में तेरह अक्षर वाले छंद होते है जो अति छंद कहलाते हैं । तेरह दिन में अग्नि, वायु तथा सूर्य यह तीनों यज्ञ में व्याप्त होते हैं।

वहां बैठे लोगों ने अष्टावक्र के लिए तालियां बजाई और उनके गले में विजय माला पहना दी ।

ऋषि बंदी का घमंड टूट गया उन्होंने कभी सपने मै भी नहीं सोचा था कि एक बालक से उनकी हार होगी, शर्त के मुताबिक राजा बंदी को समाधि लेनी थी ।

ऋषि बंदी बोले- राजा जनक में समाधि के लिए तैयार हूँ।

अष्टावक्र बोले – राजा मैं नहीं चाहता कि ऋषि बंदी को समाधि मिले । मेरा उद्देश्य सिर्फ इतना था कि ऋषि बंदी के कारण जिन विद्वानों ने जल समाधि ली थी उनके परिवार को न्याय मिले । वो विद्वान अपने घर के मुखिया थे उनके जाने से उनके पूरे परिवार को कष्ट मिला।
मेरे पिताजी ने भी ऋषि बंदी से शास्त्रार्थ किया था और हार के कारण उन्हें समाधि लेनी पड़ी थी, लेकिन आज मैंने उन्हें हराकर इस प्रथा को बंद करने का प्रयास किया है और इन्हे ये एहसास कराया है कि ज्ञानी वही है जो क्षमावान हो।

ऋषि बंदी बोले- अष्टावक्र तुमने तो मुझे हरा भी दिया और माफ कर के भयानक दंड भी दे दिया है, इस हार के साथ में अपना जीवन कैसे व्यतीत कर पाऊंगा ।
अष्टावक बोले-आप नहीं हारे हैं, आपका घमंड हारा है।
राजा जनक अष्टावक के ज्ञान को देकर बहुत प्रभावित हुए।
राजा जनक ने कहा – तुमने साबित कर दिया है, ज्ञान की कोई उम्र नहीं होती । इतने छोटे होने के वाबजूद भी तुम्हें जीवन के सारे सूत्र पता है,साथ ही साथ तुम क्षमावान भी है। सभा मैं बैठे सभी लोगों ने फूलों की बारिश कर अष्टावक का अभिनंदन किया ।

यह कहानी हमे बताती है कि ज्ञान का संबंध जीव के मन से है ना कि शरीर से। ज्ञान किसी से भेदभाव नही करता आप जैसे भी हो अमीर,गरीब या साधारण यदि आप काबिल है तो आप ज्ञानी हो सकते है । ज्ञान में यदि घमंड की मिलावट हो जाए तो वह ज्ञान ज्ञान नही रह जाता। एक ज्ञानी अज्ञानियों से भी सहानुभूति रखता है।

उम्मीद करते हैं आपको हमारी Moral Story in Hindi “आयु से मनुष्य के ज्ञान को कभी नही आंकना चाहिए।” पसंद आयी होगी ।

आप हमें social media पर भी follow कर सकते हैं CRS SquadThink Yourself और Your Goal


Share this Post to Your Friends

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *