जीवन का सत्य
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हमारा पूरा जीवन एक चक्र है जिसमें हम पैदा होते हैं बड़े होते हैं बूढ़े होकर मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं। आज की कहानी में हम आपको बताने वाले है जीवन का सत्य ।

जीवन का सत्य । गौतम बुद्ध की प्रेरणादायक कहानी

एक बार की बात है, बुद्ध अपने अनुयायियों के साथ बैठे हुए थे, तभी एक वृद्ध मनुष्य वहाँ पर आया । उसने बुद्ध के सामने हाथ जोड़े । वह कभी जोरों से हंस रहा था और कभी जोरों से रो रहा था। ऐसा देखकर अनुयाई बोले- गुरुजी यदि आप कहे तो हम इस वृद्ध को यहाँ से ले जाते हैं क्योंकि यह कभी हँस रहा है कभी रो रहा है लगता है कोई पागल है ! कहीं आपको कोई चोट ना पहुँचा दे ।

वृद्ध व्यक्ति बोला- नहीं मैं पागल नहीं हूँ ! मैं हँस इसलिए रहा हूंँ क्योंकि मुझे इस संसार चक्र का रहस्य पता चल चुका है और रो इसलिए रहा हूंँ कि यह मुझे वृद्धावस्था में पता चला है । ऐसा कहकर वह फिर हँसने लगा और फिर थोड़ी देर बाद रोने लगा ।

बुद्ध अपने शिष्यों से बोले- इन्हें ज्ञान की प्राप्ति हो गई है, तुम्हें भी इनसे जाकर कुछ सीखना चाहिए ।
शिष्य बोले- गुरुजी, आपको सचमुच लगता है, कि यह हमें कुछ सीखा पाएँगे?

बुद्ध बोले- यह बूढ़ा व्यक्ति अपनी जवानी के दिनों में यहाँ आया था, उस वक्त इसने मेरा बहुत विरोध किया था, लेकिन अब जब यह आया है तो जीवन से बहुत कुछ सीख कर आया है । इसलिए तुम दोनों जाओ इनसे कुछ ज्ञान प्राप्त करो और जितने भी दिन इनके पास बचे हैं इनकी सेवा करो ।

अनुयाई बोले- जी गुरु जी! जैसी आपकी इच्छा ।
वह उस वृद्ध को अपनी कुटिया में ले गए, भोजन आदि कराया और आराम करने को कहा । जब वृद्ध की नींद पूरी हो गई तब शिष्य उनके पास आए और पूछने लगे, “आप हमें बताइए आपको कौन-सा ज्ञान प्राप्त हो चुका है ?

वृद्ध बोला – “मुझे जीवन का सत्य प्राप्त हुआ है ।”

पहला चक्र बचपन

जब मैं छोटा था तब बहुत जिद्दी हुआ करता था । मुझे हमेशा महंगे खिलौने चाहिए होते थे । उसके लिए मैं अपनी माँ से बहुत जिद्द किया करता था, जब मेरी माँ मुझे समझाती थी कि मुझे इतने महंगे खिलौने लेकर धन को बर्बाद नहीं करना चाहिए उसकी कदर करनी चाहिए। तब मेरे मन में यह विचार आता था कि मेरी माँ अगर मुझसे दूर चली जाए तो जो मुझे पसंद है वह मैं कर सकता हूंँ ।

दूसरा चक्र जवानी

जब मैं थोड़ा वयस्क होने लगा, मेरी शादी हो गई और मुझे एक पुत्र की प्राप्ति भी हो गई । भगवान ने मेरी इच्छा पूरी कर दी फिर मैंने सोचा मेरा दूसरा पुत्र भी हो जाए तो अच्छा होगा । भगवान ने मेरी यह इच्छा भी पूरी कर दी ।
इसके बाद मैं अपने पिताजी के काम में सहयोग देने लगा । मैं चाहता था की काम में होने वाले निर्णय मैं खुद लूँ । मुझे उनकी टोका-टाकी करना बिल्कुल भी पसंद नहीं था । मेरे पिताजी की तबीयत खराब हो गई वह बिस्तर पर पड़े थे ।

मैंने उनसे कहा- पिताजी! अब आपकी तबीयत खराब हो चुकी है, अपना सारा कारोबार आप मुझे दे दीजिए । कुछ दिनों बाद पिताजी का देहांत हो गया । उनके देहांत के बाद मैंने उनकी इतनी भव्य-यात्रा निकाली की पूरी दुनिया देखती रह गई । मैं भीतर ही भीतर इस पर गर्व कर रहा था । मैंने अपने पिताजी की अंतिम यात्रा में इतना पैसा खर्च किया है। कुछ समय बाद मेरी माँ भी गुज़र गई ।

देखते देखते मैं नगर का एक अमीर इंसान बन गया । मेरे पुत्र बड़े हो गए। मैंने अपने दोनों बेटों का विवाह कर दिया ।
इन दिनों मेरी पत्नी मुझे बुद्ध के पास ले गई, बुद्ध की बातें सुनकर मैं क्रोध से भर गया क्योंकि मैं उनकी किसी भी बात से सहमत नहीं हो पा रहा था ।

बुद्ध कह रहे थे चोरी मत करो, झूठ मत बोलो, ज्यादा धन इकट्ठा मत करो, संयम से काम लो । उनकी यह बातें मुझे बिल्कुल पसंद ना थी इसीलिए मैंने उनके खिलाफ लोगों को भड़काना शुरू कर दिया । उनका ज्ञान मेरे पूरे जीवन को ही गलत ठहरा रहा था।

तीसरा चक्र बुढ़ापा

वक्त गुजरने लगा और मैं बूढ़ा होने लगा । मैंने जीवन के अंतिम चरण की तरफ अपना कदम बढ़ाया ।
अंतिम चरण पर आते-आते मेरी पत्नी ने भी मेरा साथ छोड़ दिया उसकी भी मृत्यु हो गई । अब मैं अकेला-अकेला रहने लगा । मैं ठीक उसी स्थिति में आ गया, जिस स्थिति में मेरे पिताजी थे । मैं बिस्तर पर पड़ा हुआ था । तभी मेरे दोनों पुत्र एक-एक करके आए और कहने लगे सारा कारोबार आप मेरे नाम कर दीजिए क्योंकि मैं ही इसको संभालने के लायक हूंँ ।

जैसे मैं अपने पिताजी के पास गया था कारोबार अपने नाम करवाने वैसे ही मेरे पुत्र मेरे पास आये है कारोबार अपने नाम करवाने । और इसके बाद उनके पुत्र भी मेरे बेटो के बूढ़े होने पर ऐसा ही करेंगे ।

जैसा व्यवहार हम अपने माता पिता के साथ करते है वैसा ही व्यवहार हमारी आने वाली पीढ़ी हमारे साथ करेगी । यह चक्र ऐसे ही चलता रहेगा । यही जीवन का सत्य है । जो आपने अपने जीवन में किया है वैसा ही आपको भोगना होगा ।

मेरे बच्चे कारोबार के लिए लड़ने लगे इसलिए मैं बुद्ध के पास आ गया ।

मुझे सब समझ तो आया, लेकिन अब मुझे यह समझ नहीं आ रहा कि बुढ़ापे में यदि मुझे ज्ञान भी हुआ है तो उसका क्या फायदा है ? वह अपनी बात समाप्त कर बुद्ध के पास पहुँचे ।

वृद्ध बुद्ध से बोले- बुद्ध आपकी कहीं हुई हर बात सत्य थी। पर सत्य मुझे तब पता चल रहा है जब मेरे पास जीने की उम्र ही नहीं बची । क्या अब इस सत्य का कुछ लाभ है ?

बुद्ध बोले- तुम्हारे पास जितनी भी साँसें बची है। जितना भी वक्त बचा है उसे वर्तमान में जिओ, ख़ुद को शरीर की तरह नही बल्कि आत्मा की तरह देखने का प्रयास करो, और जो ज्ञान तुम्हे प्राप्त हुआ है उस ज्ञान को लोगों तक पहुंचाओ ताकि जो गलतियां तुमने की वो कोई और न करें, यही तुम्हारे लिए उत्तम है ।

जैसा व्यवहार आप अपने बड़ो के साथ करेंगे वही व्यवहार चलकर एक दिन आपको अपने बच्चो से मिलेगा । यही जीवन चक्र है और यही जीवन का सत्य है । जो आपने दिया है वही आपको मिलेगा इसलिए आप अपने बड़ो से वैसा व्यवहार करें, जैसा व्यवहार आप खुदके लिए चाहते है ।

उम्मीद करते हैं आपको हमारी गौतम बुद्ध की प्रेरणादायक कहानी “जीवन का सत्य ।” पसंद आयी होगी । आप हमारे WhatsApp Group को Join करके हमसे जुड़ सकते है Chand Kumar Blog WhatsApp Group
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