घमंड चूर कर देने वाली कहानी | प्रेरणादायक कहानी
संसार में अनेक ज्ञानी है । आज हम बात करेंगे घमंड चूर कर देने वाली कहानी के बारे में जिसे पढ़कर आप जीवन में कभी किसी चीज़ पर घमंड नहीं कर पाएंगे । क्योंकि घमंड के कारण अपने भीतर छुपे हुए अंधकार का हमे तनिक भी ज्ञान नही होता। हमें जीवन-भर ये भ्रम रहता है कि इस संसार में हमसे ही रोशनी है। हम ही जीवन के सारे सम्मान और लोकप्रियता हासिल करने के लायक है, लेकिन ये कहानी हमे स्पष्ट कर देगी कि प्रतिभावान मनुष्य के भीतर भी अंहकार हो सकता है।
घमंड चूर कर देने वाली कहानी | प्रेरणादायक कहानी
एक गणितज्ञ जो की प्रतिभा के धनी थे, हर चीज को जोड़-घटाने में माहिर थे । उनकी ख्याति बहुत दूर-दूर तक फैली हुई थी, उन्होंने बहुत सारी किताबें लिखी हुई थी। इतने अथाह ज्ञान की वजह से उनके भीतर घमंड आ गया था।
उन्होंने जब एक महान् दार्शनिक के विषय में सुना, तो उनके मन में उनसे मिलने की इच्छा जगी। वह सोचने लगे देखे तो, ऐसा कौन-सा ज्ञानी है ! जो मेरे जैसे महान् गणितज्ञ, सत्य का ज्ञाता, वेदों का जानकार, इतनी सारी पुस्तकों का लेखक को परास्त कर सकता है । दूसरी तरफ दार्शनिक थे। जिनका ज्ञान देने का तरीका थोड़ा-सा अलग था। गणितज्ञ ने उनसे मिलने का अनेक बार प्रयास किया, किंतु दार्शनिक तरह-तरह के बहाने बनाकर, गणितज्ञ से कहते रहे कि उन्हें बहुत काम है, लेकिन यह सच नहीं था । दार्शनिक को कोई कार्य नहीं था, वह सिर्फ गणितज्ञ को इंतज़ार कराना चाहते थे।
तीन दिन बाद
तीन दिन इंतज़ार कराने के बाद, दार्शनिक गणितज्ञ से मिलने के लिए आए।
दार्शनिक ने गणितज्ञ से कहा- मैंने सुना है तुमने बहुत सारी किताबें लिखी है। तुम बहुत कुछ जानते हो, इसलिए मैं तुम्हें एक काग़ज़ और कलम देता हूँ । तुम जो कुछ भी जानते हो लिख दो, क्योंकि उन विषयों पर बात करने का क्या लाभ जो तुम जानते हो । अगर तुम उन विषयों पर लिख दोगे, जो तुम जानते हो, तो हम उन विषयों पर बात करेंगे जो तुम नहीं जानते। ऐसा करने से सही मायने में हम कुछ ज्ञान की बाते कर पाएँगे और समय भी बर्बाद ना होगा ।
ऐसा कह कर उन्होंने काग़ज़ और कलम गणितज्ञ के सामने रख दिया।
गणितज्ञ वैसे तो बहुत प्रतिभाशाली थे, लेकिन उन्हें समझ नहीं आ रहा था, कि आखिर वह इस काग़ज़ पर क्या लिखें । इंतजार करते हुए उन्हें कई घंटे बीत गए, लेकिन उन्हें समझ नहीं आया ।
गणितज्ञ ने कहा- मैंने जीवन में बहुत सारी पुस्तक लिखी है लेकिन इस कागज पर क्या लिखूं मुझे समझ नहीं आ रहा । मैं अपने भीतर एक अजीब-सी उलझन महसूस कर रहा हूँ, मैं सोच-सोच कर थक चुका हूंँ, मुझे नहीं समझ आ रहा इस काग़ज़ पर क्या लिखूँ।
दार्शनिक ने गणितज्ञ की ओर देखा ।
दार्शनिक ने कहा – मैंने सुना है तुमने तो सत्रह सौ पन्नों पर सत्य की व्याख्या की है और तुम्हें समझ नहीं आ रहा कि क्या लिखा जाए ? यह तो बहुत अजीब बात है !
यह सुनकर गणितज्ञ की आँखों से अजीब प्रकार के आँसू निकल आए जैसे कि पल-भर के लिए उनका ज्ञान कहीं उड़-सा गया हो, उसके भीतर खुद को लेकर एक प्रश्नचिन्ह-सा बन गया। जीवन में पहली बार वह एक ऐसी स्थिति में आया हो, जिसमे उसने खुद से ही सवाल किया और गहराई से सोचा-वाकई में क्या मैं कुछ नहीं जानता ?
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गणितज्ञ ने कहा – क्या मैं कुछ नही जानता ? मैंने अपनी पूरी जीवन-शक्ति ज्ञान को अर्जित करने पर लगा दी और आज मैं ये क्या महसूस कर रहा हूँ कि मैं कुछ नही जानता ।
दार्शनिक ने कहा – तुमने ज्ञान का पहला सबक ले लिया है कि तुम कुछ नहीं जानते, नहीं जानना एक शुरुआत है । अपने बीते हुए जीवन में जो भी कुछ तुमने जाना था, आखिर में जाना ही नहीं था । वह तो सिर्फ़ व्यवहारिक ज्ञान था, स्वयं का ज्ञान नही। ज्ञान के इतने बड़े समुद्र में व्यक्ति थोड़ा-सा ही जानता है लेकिन उसे अपने ज्ञान का घमंड हो जाता है कि वह बहुत कुछ जानता है। सच्चा ज्ञान तब होता है, जब समझ में आता है कि वह जितना जानता है वह बहुत कम ही है ।
“सबसे पहला ज्ञान यही है अपनी अज्ञानता को जानना।”
मनुष्य सब कुछ जान सकता है,लेकिन जो जान रहा है उसको नही जानता । अपने भीतर बैठे उस अंहकार को नही जानता, जो बहारी ज्ञान से घमंडी हो जाता है । उसकी नज़रे कभी खुद को नही देख पाती । वह सदैव यह देखता है कि लोगो की तुलना में उसने क्या इकट्ठा किया है, लेकिन उस ज्ञान के पीछे कितना अंहकार जमा हुआ है उसे देखने से वह वंचित रह जाता है।
उम्मीद करते हैं आपको हमारी प्रेरणादायक कहानी “घमंड चूर कर देने वाली कहानी” पसंद आयी होगी ।
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