चोर का दृष्टिकोण बदल गया: एक बदलाव की कहानी
आज की कहानी का शीर्षक है “चोर का दृष्टिकोण बदल गया ।” हम जो बन जाते हैं, हम उसे ही सत्य समझते हैं । लेकिन जब हमारे जीवन में ऐसी घटना घटती है या ऐसे लोग आते हैं, जिनके असर से हम पर गहरा प्रभाव होता है । और इस प्रभाव के कारण हमारा दृष्टिकोण बदल जाता है । यह कहानी एक चोर के बदलते दृष्टिकोण की है, जिसे एक अनोखे अनुभव ने जीवन की सच्चाई को समझाया। जब उसे अनमोल ज्ञान की मिली चमक, तो उसने चोरी के मार्ग को छोड़ दिया और ध्यान गुरुकुल की ओर मोड़ दिया।
चोर का दृष्टिकोण बदल गया: एक बदलाव की कहानी
एक बार की बात है । एक चोर चोरी करने के इरादे से एक घर में घुसा । जैसे ही वह कमरे में घुसने वाला था, उसने देखा कि घर के लोग तो जाग रहे हैं । वह कमरे के बाहर ही रुक गया ।
घर में एक बुजुर्ग पति-पत्नी रहते थे, जो कि आपस में बाते कर रहे थे ।
पति बोला- अब हम दोनों बुजुर्ग हो गए हैं, हम लोगों को संन्यास ले लेना चाहिए ।
पत्नी बोली- अब हमारा है ही कौन! सन्यास ले ही लेना चाहिए ।
पति बोला- हम सन्यास तो ले लेंगे, पर यह घर और संपत्ति किस को देंगे, हमारी तो कोई संतान भी नहीं है ।
पत्नी बोली- जब सब कुछ छोड़ना ही है, तो क्यों इस बारे में सोचे कि इस घर का क्या होगा ! हम इसे ऐसे ही छोड़कर निकल जाते हैं।
पति बोला- नहीं, इससे अच्छा है हम इसे किसी काबिल इंसान को दे देते है । जिससे कि उसका भी भला हो ।
पत्नी बोली- ऐसा करते हैं हमारे घर से कुछ ही दूरी पर एक गुरुकुल है । जहाँ पर बहुत ही साफ मन के विद्यार्थी रहते है । उनमें से किसी एक को अपनी घर-संपति सौप देते है और हम दोनों संन्यास के लिए निकल जाते हैं ।
पति को पत्नी का यह सुझाव अच्छा लगा इसलिए वह कहने लगा- ठीक है, मैं सारे कागज देख लेता हूंँ और तुम भी अपने बाकी काम निपटा लो । सुबह ही हम गुरुकुल जाते हैं और द्वार के पास हमें जो भी पहला विद्यार्थी दिखेगा, हम उसे ही अपनी सारी संपत्ति दे देंगे ।
ऐसा कह कर दोनों सोने के लिए चले गए ।
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चोर खड़ा होकर दोनों की बाते सुन रहा था । वह सोचने लगा, कि मैं रोज-रोज की चोरी करके क्यों मुसीबत अपने सर पर लेता रहूँ । इससे अच्छा है, मैं ही वह पहला विद्यार्थी बन जाता हूंँ, जिसे यह लोग अपनी सारी संपत्ति देना चाहते हैं ।
चोर तुरंत गुरुकुल गया और वहाँ जाकर उन्हें एक गुरु मिले। वह उनसे कहने लगा, मुझे यहाँ पर शिक्षा प्राप्त करनी है, इसलिए मैं यहाँ रहना चाहता हूंँ ।
गुरु बोले- यह गुरुकुल तो हर किसी के लिए खुला हुआ है, तुम्हारी शिक्षा कल से प्रारंभ हो जाएगी ।
ऐसा सुनकर चोर मन ही मन खुश हुआ वह सोचने लगा, कल मैं द्वार पर सबसे पहले ही खड़ा हो जाऊँगा । जिससे कि उस पति-पत्नी की नजर मुझ पर पड़े और वह मुझे ही अपनी सारी संपत्ति दे दे ।
सूरज निकल आया, सुबह हो गई और वह दोनों दंपत्ति भी अपने घर से गुरुकुल की तरफ आ रहे थे ।
चोर द्वार पर ही सबसे पहले खड़ा हो गया, ताकि दोनों दंपत्ति की नजर उस पर ही पड़े । लेकिन समस्या यह थी कि वह लोग उस द्वार से आए ही नहीं, वह किसी दूसरे द्वार से आए ।
चोर ने जब देखा तो पाया कि उसका नंबर तो सबसे आखरी में हो गया है । वह दोनों दंपति द्वार पर खड़े थे और उनकी नज़र एक शिष्य पर गई जो की सबसे पहले खड़ा था ।
वह बुजुर्ग व्यक्ति शिष्य से बोले- शिष्य, हम तुम्हें अपनी सारी संपत्ति देना चाहते हैं क्योंकि हम संन्यास लेना चाहते हैं ।
शिष्य बोला- पर आप क्यों अपनी संपत्ति मुझे देना चाहते हैं ?
बुजुर्ग व्यक्ति बोला- क्योंकि धन ही दुखों की जड़ है, इसलिए हम अपनी संपत्ति तुम्हें देना चाहते हैं ।
शिष्य बोला- यदि धन ही दुखों की जड़ है, तो आप यह मुसीबत मेरे गले क्यों डालना चाहते हैं ? मुझे माफ कीजिए, मैं आपकी संपत्ति नहीं ले सकता ।
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ऐसा सुनकर उन्होंने उस शिष्य के बाद खड़े दूसरे शिष्य से कहा- हम तुम्हें अपनी संपत्ति देना चाहते हैं ।
दूसरा शिष्य बोला- नहीं! मैं आप लोगों की संपत्ति नहीं ले सकता । मुझे तो जीवन-भर सन्यासी का जीवन जीना है और भला संन्यासियों को धन की क्या आवश्यकता पड़ती है!!
ऐसी अमूल्य ज्ञान की बातें चोर ने अपने जीवन में कभी-भी नहीं सुनी थी । उन शिष्यों का उत्तर सुन-सुन कर उसके अंदर धन को लेकर वैराग्य उत्पन्न हो गया था । ऐसी शांति उसे कभी अपने जीवन में महसूस नहीं हुई थी । उसे ऐसा लग रहा था कि जैसे वह एक ऐसी जगह आ गया है, जिसकी उसे शायद तलाश थी, पर उसे खुद ही नहीं पता था ।
एक- एक करते हुए उस दंपति ने सभी शिष्यों से पूछा, लेकिन सबने ही उनकी संपत्ति लेने से इनकार कर दिया । सबसे अंतिम में उसे चोर का नंबर आया ।
उन्होंने फिर उस चोर से कहा- अब तुम ही हमारी आखिरी उम्मीद हो । क्या, तुम हमारी संपत्ति ले सकते हो?
चोर बोला- यदि आप दोनों इस दरवाजे से आते, जो कि मेरे ठीक पीछे है तो शायद मैं आपकी संपत्ति ले लेता । लेकिन यह शायद ईश्वर का खेल ही था, कि आप उस दरवाजे से आए । मैं कल ही गुरुकुल में आया हूंँ, लेकिन इन शिष्यों की बातें सुन-सुन कर आज सचमुच कुछ समझ में आया है । आप मुझे माफ करें! मैं भी आपकी संपत्ति नहीं ले सकता, क्योंकि मुझे वह ज्ञान की संपत्ति मिल गई है । जिसकी मैंने कामना तक नहीं की थी । अब मैं ‘मैं’ नहीं रहा मेरा दृष्टिकोण बदल चुका है ।
ऐसा सुनकर दोनों दपत्ति अपने घर की ओर लौट गए ।
और वह चोर हमेशा गुरुकुल में रहने लगा ।
यह कहानी हमें यह बताती है जब एक चोर का दृष्टिकोण अपने जीवन को लेकर बदल सकता है । तो हम भी अपने जीवन के अनुभवों और घटनाओं के आधार पर अपने जीवन के दृष्टिकोण को बदल सकते हैं । यदि हमारे जीवन में बहुत सारी परेशानियां है तो हम उसे परेशानियों की तरह न देखकर, उसे एक ऐसा मौका समझे, जिसमें हम उसका हल निकाल सकते हैं । जीवन में सब कुछ बदल सकता है, यदि हम अपनी उस नजर को बदल दे, जो कि हमेशा समस्या की तरफ देखती है । समाधान तो सिर्फ व्यक्ति के अपने सही दृष्टिकोण में होता हैं ।
उम्मीद करते हैं आपको हमारी एक बदलाव की कहानी पसंद आयी होगी । आप हमें social media पर भी follow कर सकते हैं CRS Squad, Think Yourself और Your Goal