जिंदगी से निराश एक चित्रकार की कहानी – Motivational Story in Hindi

जिंदगी से निराश एक चित्रकार की कहानी
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आज की कहानी का शीर्षक है “एक चित्रकार की कहानी ।” निराशा जब भी जीवन में आती है, तब हम खुद को लोगों से दूर करने लगते हैं। लेकिन इससे इसका समाधान नहीं होता, बल्कि धीरे-धीरे निराश रहना हमारी आदत बन जाती है । इसलिए जीवन को आगे बढ़ने से कभी नहीं रोकना चाहिए ।

जिंदगी से निराश एक चित्रकार की कहानी – Motivational Story in Hindi

एक समय की बात है, शेखर नाम का एक व्यक्ति नए शहर में आया था । वह अपने लिए एक किराए का मकान ढूँढ रहा था, तभी उसकी नजर एक मकान पर पड़ी और उसने दरवाजा खटखटाया ।

मकान मालिक ने दरवाजा खोला और पूछा- कौन हो तुम, क्या चाहिए ?
शेखर ने कहा- मुझे किराए के लिए कमरा चाहिए, क्या आपके घर में कोई कमरा खाली है ?
मकान मालिक ने कहा- हाँ, बिल्कुल !!
मकान मालिक ने उसे अंदर आने को कहा और उसे एक कमरा दिखा दिया ।
शेखर को वह कमरा पसंद आ गया और वह अपना सामान लेकर वही शिफ्ट हो गया ।

शेखर एक बार रेलिंग पर था उसकी नजर उसके बगल वाले कमरे पर गई ।
शेखर ने मकान मालिक से पूछा- यह बगल वाला कमरा भी खाली है क्या ?
मकान मलिक ने कहा-
यह कमरा खाली नहीं है, यहाँ पर एक चित्रकार रहता है ।
शेखर बोला- ओह अच्छा !!!

मकान मालिक बोला- क्या बताऊँ, बेचारा यूँ ही भटक रहा था मैंने पूछा तो कहने लगा- मेरे माँ-बाप बचपन से ही नही है, मेरा आख़िरी सहारा मेरी प्रेमिका थी, लेकिन वह मुझे छोड़ कर चली गई। मेरा इस दुनिया में अब कोई नहीं हैं। तब से यह मेरे साथ हैं सुबह-शाम मैं इसे भोजन दे देता हूँ । दिन-रात कमरे में बैठकर यह बस अपनी प्रेमिका की तस्वीरें बनाता रहता है ।

यह सब सुनकर शेखर की दिलचस्पी बढ़ गई । वह उस चित्रकार से मिलना चाहता था ।
वह चित्रकार के कमरे की तरफ बढ़ा। शेखर ने दरवाज़ा खटखटाया । चित्रकार ने दरवाज़ा खोला ।

चित्रकार ने कहा- तुम कौन हो ?
शेखर ने कहा- मैं तुम्हारे बगल वाले कमरे में रहने वाला किरायदार हूँ ।
शेखर झट से कमरे के अंदर चला गया । उसने चारों तरफ तस्वीरें ही तस्वीरें देखी, वह बोल उठा तुम्हारी प्रेमिका की तस्वीरें बहुत अच्छी है ।

चित्रकार ने कहा- तुम्हे कैसे पता, ये मेरी प्रेमिका है ?
शेखर ने कहा-
मकान मालिक ने तुम्हारे बारे में बताया था । तुम्हारा इस दुनिया में कोई नही है । एक तुम्हारी प्रेमिका थी वो भी तुम्हें छोड़कर चली गई । और तुम उसकी ही तस्वीर बनाते रहते हो ।

शेखर ने कहा- क्या हम दोस्त नहीं बन सकते ?
चित्रकार ने कोई उत्तर नही दिया। शेखर रोज़ उससे बात करने के लिए आया करता था । धीरे-धीरे दोनों की बातें भी शुरू होने लगी।

चित्रकार तो जैसे बोलना ही भूल गया था, लेकिन शेखर के साथ रहते-रहते वह बोलने लगा था हँसने लगा था । लेकिन फ़िर भी उसकी दुनिया उस कमरे की चार दीवारे और अपनी प्रेमिका की तस्वीरों तक सीमित थी।

एक दिन चित्रकार ने शेखर से कहा – उस दिन तुमने मुझसे पूछा था । आज मैं तुमसे पूछता हूंँ, क्या तुम मेरे दोस्त बनोगे ?
दोनों ने मुस्कुराते हुए एक-दूसरे को गले लगा लिया ।

रोज़ की तरह शेखर चित्रकार के पास आया ।

शेखर ने कहा- आज मेरी छुट्टी हैं, चलो कहीं घूमने चलते हैं ।
चित्रकार ने कहा- मेरा मन नही करता कुछ करने का । मैं भीतर से बहुत निराश हो चुका हूँ । मेरा जीवन मुझे बेकार लगता हैं।

शेखर ने कहा- इन्ही सब बातों की वजह से तुम जीवन में आगे नहीं बढ़ पा रहे हो । अरे ! तुम अभी जवान हो, क्यूँ ऐसे एक कमरे में बैठे रहते हो ? मैं एक बात कहूँ अगर तुम बुरा ना मानो तो ।

चित्रकार ने कहा- हाँ कहो ।
शेखर ने कहा- तुम यहाँ बिना पैसें दिए कब से रह रहे हो, तुम्हें अच्छा लगता है मुफ़्त में रहना ?
यह सुनकर चित्रकार की आँखें झुक गई, उसे आत्मग्लानि महसूस हो रही थी ।
चित्रकार ने कहा- मैं क्या करूँ। लंबे समय से एक ही कमरे में रहने की मुझे आदत हो गई है, अब मुझे कैसे कोई काम मिलेगा ।

शेखर बोला- तुम बहुत अच्छे चित्र बनाते हो । यहाँ से तुम्हें नई शुरुआत करनी है अपनी प्रेमिका की यादों से बाहर निकलो और प्रकृति को देखो, उसके चित्र बनाओ । कैसे तुम जीवन में आगे बढ़ जाओगे और धीरे-धीरे तुम्हारा दुख पीछे छूट जाएगा तुम्हें पता भी नहीं चलेगा ।

शेखर की यह बात चित्रकार के दिल में उतर गई । यह सुनते ही वह कमरे से बाहर निकला और आसमान की तरफ देखने लगा। उसकी आँखों के सामने उसकी कल्पनाओं के नए-नए चित्र उभरने लगे ।
चित्रकार बोल उठा- हाँ, तुम ठीक कहते हो । मैं चित्र बनाऊँगा प्रकृति, पशु-पक्षियों के चित्र । मेरे भीतर कि कला ही मेरी समस्या का समाधान कर सकती है ।

इस तरह चित्रकार ने अपनी प्रेमिका की तस्वीर बनाना बंद कर दिया और प्रकृति से संबंधित चीजों की तस्वीरें बनाने लगा । तस्वीर बनाते-बनाते वह बहुत निपुण हो गया। उसने अपनी तस्वीरों को बेचना शुरू कर दिया । धीरे-धीरे उसके पास पैसे आने लगे ।
अब वह लोगों से मिलने से नहीं कतराता था । आहिस्ता-आहिस्ता उसकी निराशा जाती रही और वह खुश रहने लगा ।
चित्रकार ने शेखर का धन्यवाद किया क्योंकि उसको उसके गम से निकालने वाला वही था ।

इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि किसी गम के चलते हमें अपनी जिंदगी को नहीं रोकना चाहिए। यदि हम खुद को कष्ट देंगे, तो जीवन भी हमसे नाराज हो जाता है इसलिए कहा भी गया है- जीवन आगे बढ़ते रहने का नाम है ।

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