मुझे दूसरी स्त्री क्यों अच्छी लगती है? Osho ke Vichar

Osho ke Vichar
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Osho ke Vichar : दुनिया में सबसे खूबसूरत चीज आजादी होती है । एक आजाद इंसान ही अपनी जिंदगी को कैसे चलाना है, खुद तय कर सकता है । लेकिन हमारी अगर भीतर से यह चाहत है कि हम दूसरों को कैद करना चाहते हैं, तो हम कभी आजाद नहीं हो सकते। आज की कहानी इसी विषय पर है । शुरू करते हैं Osho ke Vichar की एक प्रेरणादायक कहानी “आजादी से प्यार करो ।”

Osho ke Vichar की एक प्रेरणादायक कहानी

सुधीर एक जिज्ञासु इंसान था और वह अपने जीवन का बड़ी ही बारीकी से निरीक्षण करता था । यूँ तो उसके जीवन में कोई कमी नहीं थी पैसा था, एक पत्नी थी, बच्चे थे । लेकिन फिर भी उसकी जिज्ञासा, उसके भीतर निरंतर चलती ही रहती थी ।
सुधीर आज बहुत खुश था, क्योंकि वह आज ओशो का प्रवचन सुनने के लिए जा रहा था । उसके जीवन में बहुत सारा बदलाव ओशो को सुनकर ही आया था ।

आज उसके भीतर एक और सवाल उपजा था और वह इस सवाल का जवाब जानने के लिए, वहां पहुंचा जहां प्रवचन होने वाला था ।
एक बहुत बड़ी सभा लगी थी, जहां पर बहुत सारे लोग थे और सामने ओशो माइक लिए बैठे थे । लोग ओशो से किसी भी प्रकार का सवाल पूछ सकते थे, क्योंकि वहां कोई नैतिक वर्जना नहीं थी कि यह सवाल गलत है या सही । व्यक्ति ईमानदारी से वही सवाल पूछा करते थे, जो उनके मन में उठते थे, बिना किसी मिलावट के ।

सुधीर के हाथ में माइक आया और उसने पूछा – भगवन! मैं आपसे यह पूछना चाहता हूंँ, कि मेरी पत्नी बहुत अच्छी है लेकिन उसके बाद भी मुझे दूसरी स्त्री क्यों अच्छी लगती है? इसका क्या कारण है? कई बार मुझे आत्मग्लानि महसूस होती है मैं ऐसा सोच भी कैसे सकता हूंँ, पर जब मैं ईमानदारी से अपना सामना करता हूंँ तब मैं यही पता हूंँ कि मुझे कोई और स्त्री अपनी पत्नी के सामने अच्छी लगती है ।

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ओशो बोले- क्योंकि तुमने पत्नी से अपना रिश्ता बना लिया है, जिससे हम अपना रिश्ता बना लेते हैं हम उसे मानसिक रूप से गुलाम कर देना चाहते हैं ।
और कोई दूसरी स्त्री इसलिए अच्छी लगती है, क्योंकि उससे तुम्हारा कोई रिश्ता नहीं है वह तुमसे आजाद है । असल में हर व्यक्ति को आजादी से प्यार होता है ।

सच बताऊं! तो तुम्हें वह स्त्री भी अच्छी नहीं लगती । यदि तुम उस स्त्री से आगे चलकर शादी कर लो, तो तुम्हें कोई और अन्य स्त्री अच्छी लगने लगेगी । इसका सीधा-सा मतलब यही है जो चीज दूर होती है, वही हमें खास लगती है और जब उस खास चीज को हम अपने पास ले आते हैं, वह हमारे लिए मामूली हो जाती है ।

ओशो फिर बोले- ना तुम्हारी पत्नी खास है, ना वह दूसरी स्त्री खास है ना तुम खुद ही खास हो । “कोई भी इधर खास नहीं है बस सबको यह भ्रम होता है, कि दूसरे में ऐसा कुछ रहस्य है जो कि उसे खास बना रहा है ।”

सुधीर बोला- हाँ भगवन ! आप सत्य ही रहते हो । पर यह सब जानने के बाद भी हमारा भ्रम दूर नहीं होता और हमारा मन हमेशा किसी दूसरे व्यक्ति की ओर झुक जाता है ।

ओशो बोले- जब तुम्हारा मन किसी भी व्यक्ति या चीज की तरफ झुकने लगे, तो तुम्हें खुद से यही कहना है कि मुझे किसी से प्यार नहीं है असल में मुझे आजादी से प्यार है । पर मुझे अंदर से महसूस नहीं हो रहा है कि मुझे आजादी से प्यार है और वह इसलिए महसूस नहीं हो रहा है क्योंकि आजादी बहुत महंगी है, उसकी कीमत चुकानी पड़ती है । और जैसे ही मैं उसकी कीमत को चुकाने के बारे में सोचता हूंँ । हर बार मेरा अहंकार टूटता है और अपने अहंकार यानी अपने ‘मैं’ को बचाने के लिए मैं बार-बार यही करता हूंँ ।

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बस बार-बार खुद को यही समझाते जाओ और एक दिन तुम खुद ही समझ लोगे, कि सब कुछ व्यर्थ ही है ।

सुधीर बोला- बहुत-बहुत धन्यवाद भगवान! असल में आप किसी सवाल का जवाब नहीं देते, बल्कि हमारे सवालों को गिरा देते हैं फिर जवाब देने की आवश्यकता ही नहीं पड़ती ।

ओशो का जवाब सुनकर सुधीर की समझ और विकसित होने लगी। और वह समझने लगा था कि यह सिर्फ हमारे मन के खेल है इसमें कुछ नहीं रखा है । आजादी का सच्चा मतलब यही है कि अपने उन विचारों को खुद से अलग कर देना, जिनके होने या ना होने से हमारी जिंदगी को कोई फर्क नहीं पड़ता ।

यह कहानी हमें यह सीखने की कोशिश कर रही है कि हम कुछ पा लेने को आजादी कहते हैं लेकिन सबसे बड़ी आजादी तो उन व्यर्थ चीजों को त्यागने में है, जिसे हमने बेवजह ही अपने सर पर बिठा रखा है । इसलिए व्यर्थ के सवालों, चीजों और लोगों को अपने जीवन से बाहर निकालो, क्योंकि तुम्हें तो सिर्फ आजादी से प्यार है ।


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