जीवन में उम्मीद बनाएं रखें | Motivational Hindi Story
Motivational Hindi Story: आज कि हमारी कहानी हैं “जीवन में उम्मीद बनाएं रखें” क्योंकि बिना उम्मीद के, जीवन सुनसान सा लगता है। उम्मीद से ही रौशनी और सफलता की दिशा मिलती है। जब तक आप में उम्मीद है, तब तक आप किसी भी मुश्किल को पार कर सकते हैं। जीवन में उम्मीद बनाएं रखना एक शक्तिशाली क्षमता है, जो आपको हर कदम पर साथ देगी।
जीवन में उम्मीद बनाएं रखें – Motivational Hindi Story
एक समय की बात है, एक गांव में एक गरीब परिवार अपने संघर्ष से गुजर रहा था। इस परिवार में तीन सदस्य थे – पति, पत्नी, और एक छोटी सी बच्ची। गरीब व्यक्ति को नौकरी नहीं मिल रही थी, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति बहुत तंगी में थी।
बच्ची कभी-कभी अपने माता-पिता से पूछती थी, “हमारे घर में सब कुछ कब ठीक होगा?” वह दूसरों के घरों को देखती, जहाँ सब ठीक रहता था, और वह अपने घर में हर दिन नई परेशानी का सामना करती थी। उन्हें रोज़ यह सोचना पड़ता था कि आने वाला कल कैसे बीतेगा और खाना कहाँ से आएगा।
पिता अपनी बेटी का हौसला बुलंद करने के लिए रोज घर से बाहर ले जाकर एक पहाड़ दिखाकर कहते, “बेटा! इस पहाड़ को देखो, यहां उपर वाला रहता हैं उनसे प्रार्थना करो की वो सब कुछ ठीक कर दे।”
वह बच्ची हर रोज़ प्राथना करती की सब ठीक हो जाए और दुआ करती की उसके पिता की जॉब लग जाए।
एक दिन उसकी दुआ का असर हुआ और उसके पापा की सेना में जॉब लग गई।
तीनों बहुत खुश हुए और उन्हें लगा की अब सब ठीक हो जाएगा। लेकिन समय हमेशा एक जैसा नहीं रहता।
कुछ दिनों बाद इस राज्य पर दुसरे राज्य ने आक्रमण कर दिया। जो सैनिक पिता थे उन्हें अब युद्ध लड़ने जाना था। जब वे अपने परिवार से प्यार लेकर विदा हो रहे थे तब उनकी बच्ची उनसे गले लगकर रोने लगी और कहने लगी, “पापा! आप मत जाओ। मैंने आपके लिए ऐसी नौकरी मांग ली जिसके कारण आपके जान पर बन आई, मत जाओ! हमारे साथ रहो।”
पिता उसे समझाते हैं, “मुझे जाना होगा मेरी बच्ची! इस राज्य के लिए जान भी चली जाए तो कोई बात नहीं है।” ये सब सुनकर बच्ची और ज्यादा रोने लगी ।
जब उसके पिता चलने लगे तब बच्ची ने कहा, “पापा वो जो पहाड़ पर उपर वाला रहता हैं न! उन्हें मेरी ये एक चिट्ठी दे देना और कह देना मेरी विश को पूरी कर दें।
पिता मुस्कुराए और सोचे इसने तो वाकई मान लिया हैं की पहाड़ पर ऊपर वाला रहता हैं।
उसके बाद, वह चिट्ठी बैग में रख कर घर से रवाना हो गए, अपने बाकि सैनिकों से मिले और जो टुकड़ी थी वह युद्ध के लिए निकल गई।
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बच्ची के पिता को पता था की वे लोग युद्ध को नहीं जीत पाएंगे क्योंकि उनकी तरफ के काफ़ी सैनिक मरे जा रहे थे। पिता के सरहद पहुंचने से पहले एक पोस्ट ऑफिस आता था। सैनिक पिता ने एक चिट्ठी डाली और उस पर लिख दिया, “बेटा माफ करना यहां कोई उपर वाला नही रहता हैं मैं तो सिर्फ़ तुम्हारा हौसला बढ़ा रहा था।”
पिता ने सोचा की यह चिट्ठी वापस घर भेज देता हुं बच्ची को मिल जायेगी और वह समझ जायेगी पापा झूठ बोलते थे पहाड़ के पास कोई ऊपर वाला नही रहता हैं, फिर क्या पता मैं इस युद्ध से वापस लौट ही ना पाऊं। इस चिट्ठी के साथ बच्ची की लिखी चिट्ठी को भी बिना पढ़े उसी पोस्ट ऑफिस में डाल दी ।
बहुत भीषण युद्ध हुआ लगातर दो-तीन महिने तक चला । इसके पिता के साथ गए एक-एक सैनिक बारी-बारी से मर रहे थे और गांव में खबर फैल गई थीं इस राज्य की टुकड़ी खत्म हो गई है। वही टुकड़ी जिसमे इस लड़की के पिता के गए थे।
घर में दुख का माहौल छा गया । बच्ची ने ऊपर वाले को कोसते हुए कहा, “हे भगवान! तुमने ये क्या कर दिया? तुमने तो मेरे पिता को ही मुझसे छीन लिया।”
तीन-चार महिने बीत चुके थे एक दिन अचानक दरवाजे पर एक व्यक्ति आ कर खड़ा होता हैं। हाल-बेहाल, दुबला-पतला फटे कपड़ो में जैसे उस व्यक्ति को किसी ने बहुत मारा हो।
बच्ची दौड़ कर गई और उस व्यक्ति के गले लग गई और रोने लगीं। वह पहचान चुकी थीं वह व्यक्ति कोई और नही बल्कि उसके पिता ही है। अपनी बच्ची से मिलने की खुशी में उसके पिता भी रो रहे थे।
उसके बाद दोनों एक दुसरे से बात करने लगें। तब पिता अपनी बच्ची को बताने लगे कि सामने वाली जो सेना थी वो उन्हें बंदी बना कर ले कर गई थीं । खूब मारा-पीटा था कैसे भी बचते बचाते घर वापस आया हुआ।
पिता और पुत्री का मिलन हो ही रहा था तब तक दरवाजे पर एक डाकिया वाला आया उसके हाथ में एक चिट्ठी थी। डाकिया बोला, “माफ करिएगा युद्ध के कारण रास्ते बंद थे इसलिए चिट्ठी लेट पहुंची है।”
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डाकिया वाले के हाथ में वही चिट्ठी जो पुत्री ने पिता को जाते समय उपर वाले को देने के लिए कहां था। और पिता ने युद्ध पर जाते समय डाकिया को यह लिख कर दे दिया था की माफ करना उपर वाला नही होता हैं मैं तुम्हारा हौसला बढ़ाने के लिए झूठ बोलता था।
पिता के हाथमें जब चिट्टी आयी तो वे बहुत भावुक हो गए और सोचा पढता हूँ कि आखिर मेरी बेटी ने इसमें क्या लिखा है?
जब उसने वह चिट्ठी खोली और पढ़ा तो उसके आंसू थमने का नाम नही ले रहे थे क्योंकि उस चिट्ठी में लिखा था, “हे उपर वाले मेरे पिता को सही सलामत युद्ध से घर वापस भेज देना।”
तो दोस्तों इस कहानी से हमें यह सिखने को मिलता हैं कि जैसे एक पिता ने अपनी बच्ची का हौसला बढ़ाने के लिए उसे एक उम्मीद दी चाहे वो उम्मीद झूठी थी लेकिन उस बच्ची का विश्वास सच्चा बना । वैसे ही आपको अपने बच्चे या हर उस इंसान को उम्मीद देनी चाहिए जो बिल्कुल हार चूका हैं, जो अंदर से टूटा हुआ हैं । आपको ऐसे लोगों को उम्मीद देनी चाहिए और अगर आप खुद टूट चुके हैं तो उस बच्ची की तरह उम्मीद ना छोड़े क्योंकि उस पहाड़ पर ऊपर वाला हो ना हो लेकिन हमारे ऊपर, ऊपरवाला जरूर हैं ।
उम्मीद करते हैं आपको हमारी Motivational Hindi Story “जीवन में उम्मीद बनाएं रखें” पसंद आयी होगी ।
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